RSS यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ... ये नाम आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी परिचय का मोहताज नहीं है. इस नाम ने जो मुकाम हासिल किया वो एक दिन दो दिन नहीं, एक दो दशक नहीं बल्कि करीब 100 साल के वक्त में हासिल हुआ है. हर दशहरे पर RSS अपना स्थापना दिवस मनाता है. इसी दशहरे के दिन एक और संगठन का भी स्थापना दिवस होता है, जो संगठन आधी आबादी यानी महिलाओं का संगठन है. करीब-करीब RSS जितना ही लंबा संघर्ष करने वाला ये हिंदू महिलाओं का संगठन अब लगातार अपना दायरा बढ़ा रहा है. इस संगठन को RSS की महिला विंग बताया जाता रहा लेकिन महिलाओं के आत्मसम्मान से जुड़ा ये संगठन RSS के समानांतर ही चलता रहा है. इस महिला संगठन का सूत्र फेमिनिज्म’ नहीं ‘फेमिलिज्म’ की विचारधारा और “स्त्री राष्ट्र की आधारशिला है.”


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राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना दशहरे के दिन 1925 में हुई तो राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना दशहरे के दिन ही 1936 में वर्धा (महाराष्ट्र) में हुई... उस वक्त महिलाओं का पढ़ना-लिखना तो दूर की बात, घर से बाहर निकलना तक आसान नहीं था. उस वक्त एक महिला थी जो सोच रही थी कि कैसे हिंदू महिलाओं को सशक्त और स्वावलंबी बनाया जाए. ऐसा क्या किया जाए कि परिवार की देखभाल करने के साथ-साथ हिंदू महिलाएं अपने बच्चों को अच्छे संस्कार भी दे सकें और देश-समाज के लिए योगदान भी दे सकें. वह थीं- लक्ष्मीबाई केलकर. बाद में लक्ष्मीबाई महिलाओं में 'मौसीजी' कहलाई और आज तक जब भी उनके नाम का ज़िक्र आता है उन्हें मौसीजी का संबोधन ही मिलता है.



लक्ष्मीबाई केलकर यानी 'मौसीजी' से शुरू हुआ समिति का ये सफर सरस्वती बाई आप्टे, ऊषा ताई और प्रमिला ताई से होता हुआ वी शांताकुमारी उर्फ शांताक्का तक पहुंच गया है. 2012 से संचालक की भूमिका निभा रही शांताक्का बेंगलुरू में शिक्षिका थी लेकिन 1995 में VRS लेकर पूरी तरह से राष्ट्रीय सेविका समिति को समर्पित हो गईं. उनका मानना है कि हिंदू जीवन मूल्‍यों को जीवन में उतार कर और नवीन तकनीक के उपयोग के साथ आगे बढ़ना है. नये भारत के निर्माण में महिलाओं को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आने की आवश्यकता है और समाज का काम करना है और सेविका जहां रहती हैं वहां आजू-बाजू के घरों में / वातावरण में सकारात्मकता का निर्माण करना है.


शिक्षिका, वकील, अधिकारी और तमाम वो क्षेत्र जहां महिलाएं काम कर रही हैं, वहां की तमाम नामी-गिरामी महिलाएं इस संगठन से जुड़ चुकी हैं. अब समिति लगातार देश की युवा पीढ़ी को अपने साथ जोड़ने का अभियान चला रही है.