Veer Savarkar: विनायक दामोदर सावरकर, एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जिनके नाम पर आज़ाद भारत मे सबसे ज्यादा राजनीति होती है, टिप्पणियां की जाती हैं और कथित माफीनामे को आधार बना कर विरोध तक किया जाता है. आज ऐसा ही कुछ भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने किया. मीडिया के साथ बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने सावरकर पर सवाल उठाए, सावरकर की चिट्ठी को दिखा कर  दावा किया कि सावरकर अंग्रेजों के साथ थे.


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सावरकर पर आज के नेताओ के तो विचार आपने सुन भी रहे हैं और देख भी रहे हैं लेकिन सावरकर के बारे में शहीद ए आज़म भगत सिंह के क्या विचार थे सबसे पहले आपको यह बताते है. आजादी के नायक सरदार भगत सिंह असेंबली धमाके के बाद 2 साल तक जेल में रहे थे जिसमें उन्होंने देश विदेश के कई स्वतंत्रता सेनानियों की लिखित पुस्तकें पढ़ी थी और इन पुस्तकों के जो अंश उन्हें अच्छे लगते थे उन्हें सरदार भगत सिंह अपनी डायरी और कागज़ नोट्स में लिखते थे. भगत सिंह ने जेल में जो डायरी लिखी थी उसमें ज्यादातर विदेशी लेखकों की किताबों के अंश ही लिखे थे और सिर्फ 7 भारतीय लेखक ऐसे थे जिनकी किताबों के अंश को भगत सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था. वीर सावरकर को छोड़कर जहाँ बाकी भारतीय लेखकों की किताबो के एक अंश भगत सिंह ने अपनी डायरी में लिखे थे तो वीर सावरकर एकमात्र ऐसे थे जिनकी  किताब "हिंदूपदपादशाही"  को पढ़ कर उसके कुल 6 अंश सरदार भगत सिंह ने अपनी डायरी और नोट्स में में लिखे थे. 



सरदार भगत सिंह ने जेल में जो डायरी और नोट्स लिखे थे उसकी Exclusive कॉपी ज़ी न्यूज़ के पास है. जिसे आपको भी आज जानना चाहिए. अपनी डायरी के पेज नंबर 103 पर आखिरी पैराग्राफ में सरदार भगत सिंह वीर सावरकर की किताब "हिंदूपदपादशाही" के पेज 165 पर लिखे सावरकर द्वारा लिखे वाक्य सन्त रामदास के मुगलो के खिलाफ युद्ध पर लिखे गए वाक्य "धर्मांतरित होने के बजाय मार डाले जाओ’ उस समय हिंदुओं के बीच यही पुकार प्रचलित थी. लेकिन रामदास ने खड़े होकर कहा, ‘नहीं, यह सही नहीं है’. धर्मांतरित होने के बजाय मार डाले जाओ- यह काफी अच्छा है लेकिन उससे भी बेहतर है ‘न मारे जायें और न ही धर्मांतरण किया जाए, हिंसक शक्ति को ही मार दें" को लिखते हैं.



सरदार भगत सिंह जब जेल में थे तब डायरी में कथन लिखने से पहले उन्होंने कुछ काग़ज़ के पन्नो पर भी कथन लिखे थे. इसी कड़ी में सरदार भगत सिंह के नोट्स के पेज नंबर 7 पर सावकार की इसी किताब "हिन्दूपदपादशाही" के पेज 219 पर लिखा हुआ कथन लिखा हुआ है कि "उस बलिदान की सराहना केवल तभी की जाती है जब बलिदान वास्तविक हो या सफलता के लिए अनिवार्य रूप से अनिवार्य हो. लेकिन जो बलिदान अंततः सफलता की ओर नहीं ले जाता है, वह आत्मघाती है और इसलिए मराठा युद्धनीति में उसका कोई स्थान नहीं था."



अपने काग़ज़ के नोट्स में सरदार भगत सिंह आगे सावकार की इसी किताब के 220 पेज पर लिखे  "इन मराठों से लड़ते हुए हवा से लड़ रहे हैं, पानी पर पानी खींच रहे हैं." वाक्य को लिखते हैं. साथ ही इसी में भगत सिंह आगे 226 पेज पर मौजूद सावरकर की किताब के वाक्य को जोड़ते हैं कि "वीरता के कार्य किए बिना, वीरता का प्रदर्शन किए बिना, साहस के साथ इतिहास बनाये बिना इतिहास लिखना हमारे वक्त का एक बुरा सपना है. वीरता को वास्तविकता बनाने का अवसर न मिलना हमारे लिए अफसोस की बात है."



जेल में लिखे अपने नोट्स में वीर सावरकर की किताब "हिन्दूपदपादशाही" के 231 पेज पर लिखे वाक्य "राजनीतिक दासता को कभी भी आसानी से उखाड़ फेंका जा सकता है. लेकिन सांस्कृतिक वर्चस्व के बंधनों को तोड़ना मुश्किल है" लिखते हैं



 


वीर सावरकर अपनी किताब "हिन्दूपदपादशाही" में थॉमस मूर की पंक्तियां "हे स्वतंत्रता, जिसकी मुस्कान हम कभी नही छोड़ते, जाओ उन आक्रामक, मूर्खों को बताओ ‘आपके मंदिर में एक युग से अधिक बहनेवाला रक्त प्रवाह हमारे लिए मीठा है जंजीरों में जकड़ी नींद से ज्यादा है" को लिखते हैं जिससे प्रभावित होकर सरदार भगत सिंह भी इसे अपने नोट्स में जगह देते हैं...



इतिहासकारों के मुताबिक सरदार भगत सिंह वीर सावरकर की राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका से किस कदर प्रभावित थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरदार भगत सिंह ने वीर सावरकर द्वारा 1857 के स्‍वतंत्रता संग्राम पर लिखी गयी किताब ‘1857- इंडिपेंडेंस समर ‘ का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करवाया था और इसे अन्य क्रांतिकारियों को बांटा भी था.


भगत सिंह के सावरकर के प्रति क्या विचार थे इसका एक उदाहरण कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली मतवाला मैगज़ीन में लिखे उनके लेख में मिलता है. जहाँ 15 नवंबर और 22 नवंबर 1924 को प्रकाशित अंक में सरदार भगत सिंह लिखते हैं कि "विश्वप्रेमी वह वीर है जिसे भीषण विप्लववादी, कट्टर अराजकतावादी कहने में हम लोग तनिक भी लज्जा नहीं समझते – वही वीर सावरकर। विश्वप्रेम की तरंग में आकर घास पर चलते-चलते रुक जाते कि कोमल घास पैरों तले मसली जाएगी."  यह लेख सरदार भगत सिंह ने बलवंत सिंह के छद्म नाम (Pen Name) से लिखा गया था.



सावरकर की देशभक्ति पर आज कांग्रेस के नेता राहुल गांधी सवाल उठा रहे हैं लेकिन उनकी दादी इंदिरा गांधी ने आज से 42 साल पहले 20 मई 1980 को सावरकर को "देश का महान सपूत" कहा था. स्वतंत्रवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सचिव पंडित बखले को लिखे अपने पत्र में इंदिरा गांधी ने कहा था  ब्रिटिश सरकार की "साहसी अवज्ञा" करने वाले वीर सावरकर का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विशेष स्थान है.


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