नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की सीबीआई के विशेष निदेशक के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली यचिका पर वह 28 नवंबर को फैसला सुनाएगा. न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और एएम सप्रे की पीठ ने गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा. वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध किया. एनजीओ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अस्थाना की नियुक्ति इसलिए गैरकानूनी है क्योंकि आयकर विभाग की एक छापेमारी के दौरान मिली डायरी में उनका नाम सामने आया है.


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उन्होंने कहा कि डायरी में ऐसा जिक्र है कि अस्थाना को एक कंपनी की ओर से गैरकानूनी फायदा मिला है. और हाल में सीबीआई ने उस आरोपी कंपनी और कुछ सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ धनशोधन संबंधी प्राथमिकी दर्ज की है. अटॉर्नी जनरल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सीबीआई की प्राथमिकी में अस्थाना का नाम नहीं है और उनका करियर शानदार रहा है. उन्होंने कहा कि अस्थाना जो पहले सीबीआई में अतिरिक्त निदेशक के पद पर थे, उनके अंतर्गत 11 जोन आते थे.


राकेश अस्थाना होंगे CBI के विशेष निदेशक


वह अगस्तावेस्टलैंड, किंगफिशर, मोईन कुरैशी और हसन अली जैसे कई हाइप्रोफाइल घोटालों की निगरानी कर रहे थे. पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह इस मामले में फैसला सुनाएगी. अस्थाना की नियुक्ति को निरस्त करने की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने केंद्र को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक उनका एजेंसी से कहीं ओर तबादला कर दिया जाए. इसमें आरोप लगाया गया कि अस्थाना की नियुक्ति का फैसला गैरकानूनी और मनमाना है.


याचिकाकर्ता ने दावा किया कि अस्थाना की नियुक्ति में सरकार और चयन समिति ने सीबीआई के निदेशक की राय को नजरअंदाज किया जो कानून का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया कि सीबीआई के निदेशक के बाद विशेष निदेशक ही आता है और वह एजेंसी के पास मौजूद लगभग सभी अहम मामलों को देखता है.