नई दिल्ली:  उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को उस याचिका पर सोमवार को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया जिसमें अवैध रोहिंग्या मुसलमान आव्रजकों को वापस म्यांमार भेजने के फैसले को चुनौती दी गई है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर तथा न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के इस अभिवेदन पर विचार किया कि रोहिंग्याओं को उनके गृह देश वापस भेजने के सरकार के फैसले के मद्देनजर याचिका पर तत्काल सुनवाई करना आवश्यक है. दो रोहिंग्या आव्रजकों द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि वे म्यांमार में मुकदमे का सामना कर रहे हैं और उन्हें वापस भेजना विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन है. 


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म्यांमार के राखिन प्रांत से भारत आए हैं रोहिंग्या मुसलमान
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 18 अगस्त को रोहिंग्या आव्रजकों को वापस भेजने की योजना पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. ये लोग देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं. म्यांमार के राखिन प्रांत में हिंसा के बाद ये रोहिंग्या मुसलमान भारत भाग आए थे. वे जम्मू, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रह रहे हैं.


40 हजार रोहिंग्या अवैध रूप से रह रहे हैं
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर नौ अगस्त को संसद में कहा था कि यूएनएचसीआर में पंजीकृत 14 हजार से अधिक रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं. उन्होंने कहा था कि लगभग 40 हजार रोहिंग्या भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं.


केंद्र सरकार ने जताई थी चिंता
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को भेजे पत्र में कहा था कि पिछले कुछ दशकों में आतंकवाद में बढ़ोतरी लगभग सभी देशों के लिए एक गंभीर चिंता बन गयी है क्योंकि अवैध आव्रजकों को आतंकी संगठनों द्वारा भर्ती किए जाने की संभावना है.


केंद्र ने राज्यों से टास्क फोर्स का गठन करने को कहा था
केंद्र ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने के लिए जिला स्तर पर टास्क फोर्स का गठन करें.