नई दिल्ली: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को कथित तौर पर शिथिल किए जाने के विरोध में दलित संगठनों के राष्ट्रव्यापी बंद के चलते कई राज्यों में जनजीवन प्रभावित हुआ जबकि कई जगह प्रदर्शन ने हिंसक मोड़ ले लिया. इन घटनाओं में करीब 10 लोगों की मौत भी हुई है. दलित आंदोलन के इस हद तक जाने के पीछे राजनीतिक दलों का समर्थन होना भी बताया जा रहा है. ऐसे में जेहन में सवाल उठना लाजिमी है कि अपने राजनीतिक हित के लिए फैसले लेने वाली पार्टियां आखिरकार दलितों के पीछे क्यों खड़ी हैं. सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक क्यों दलितों के साथ खुद को दिखाने की कोशिश कर रहा है. इन तमाम सवालों के तह में जाने पर पता चलता है कि राजनीतिक पार्टियों का दलित प्रेम साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

देश में हैं 20 करोड़ एससी/एसटी 
हमारे देश में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की एक बड़ी आबादी है. साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 20 करोड़ है. इतना ही नहीं इस वक्त लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के 131 सांसद हैं. इनमें सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 67 सांसद इसी वर्ग से आते हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां इस दलित विरोध प्रदर्शन के बहाने 2019 के आम चुनाव में अपनी खोई हुई ताकत हासिल करने की उम्मीदें लगाए हुए हैं. वहीं सत्ताधारी बीजेपी भी समाज के इतने बड़े वर्ग को चुनाव से पहले नाराज नहीं करना चाहती है.


ये भी पढ़ें : भारत बंद: पिता को कंधे पर लेकर पहुंचा अस्पताल, फिर भी नहीं बचा पाया जान


यूपी में दलितों के सहारे है मायावती की राजनीति
दलितों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के लिए बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने केंद्र सरकार को दोषी ठहराया है. इसके पीछे की वजह यह है कि मायावती पूरी राजनीति दलितों के सहारे ही चलती है. उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी 20 प्रतिशत है, जिनका ज्यादातर वोट मायावती को जाता है. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने सत्ता हासिल करने के लिए मायावती से हाथ मिला लिया है. ऐसे में वह भी खुद को दलित हितैषी दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.


ये भी पढ़ें : भारत बंदः कई राज्यों में हुए हिंसक प्रदर्शन में 9 लोगों की मौत, हालात तनावपूर्ण


बिहार में दलित+MY समीकरण बिठाने की कोशिश में लालू की पार्टी
बिहार में दलितों का कुल वोट बैंक करीब 13 फीसदी है, जिसमें से 10 फीसदी महादलित हैं. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव समझ चुके हैं कि बिहार में सत्ता हासिल करने के लिए उन्हें मुस्लिम+यादव+दलित का समीकरण बिठाना होगा. नीतीश कुमार से नाता टूटने के बाद से लालू और उनके बेटे लगातार खुद को दलितों के करीब दिखाने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि साल 2019 का लोकसभा चुनाव हो या 2020 का विधानसभा चुनाव दोनों में दलित वोटर बिहार में निर्णायक भूमिका में नजर आ सकते हैं.


ये भी पढ़ें : SC/ST एक्‍ट पर सुप्रीम कोर्ट खुली अदालत में करेगा सुनवाई, अटॉर्नी जनरल बोले- देश में इमरजेंसी जैसे हालात


एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक चुनावों में पड़ सकता है असर
लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं. कर्नाटक में कांग्रेस के सामने सत्ता में बने रहने की चुनौती है. वहां चुनाव प्रक्रिया जारी है, ऐसे में कांग्रेस कर्नाटक 18 फीसदी दलितों को नाराज नहीं करना चाहेगी. इसके अलावा मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की 15 फीसदी और अनुसूचित जाति की करीब 6 फीसदी आबादी है. पंजाब में करीब 31 फीसदी दलित है और यहां कांग्रेस की सरकार भी है, इसलिए यहां आंदोलन का इतना गहरा असर देखने को मिला. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी SC/ST समाज के लोगों बड़ी आबादी है. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है, ऐसे में वह SC/ST समाज के इतने लोगों के नाराज करके विधानसभा चुनाव में जाने की भूल नहीं करेगी.