Science of offering Arghya to the Sun during Chhath: हमारी धरती पर उगता और डूबता सूर्य धार्मिक आस्था का बड़ा केन्द्र है. खासतौर पर चैत्र और कार्तिक महीने में. इन दोनों ही महीनों में सूर्य की उपासना 4 दिन के छठ व्रत के साथ पूरी होती है. ये वैसे तो देश के पूर्वी हिस्से में ज्यादा मनाया जाता है, लेकिन आज की हमारी स्पेशल रिपोर्ट किसी खास त्योहार या व्रत के बारे में नहीं, बल्कि सूर्य की चमत्कारी शक्तियों के बारे में है. वो कौन सी शक्ति है, जो सूर्य को हमारी परंपरा मे देवता बनाती है? ऐसा क्यों माना जाता कि खास तरीके से सूर्य की उपासना संतान प्राप्ति से लेकर असाध्य चर्म रोगों से मुक्ति दिलाती है? चलिए इस रिपोर्ट के जरिए समझते हैं सूर्य को लेकर आस्था के पीछे का पूरा विज्ञान.


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सूर्य को अर्घ्य देने का विज्ञान


पूरी धरती पर डूबते हुए सूर्य को नमस्कार करने का ये अनोखा विधान. सूर्य की ऐसी अराधना का विधान किसी परंपरा में नहीं मिलता. पूरी तरह प्राकृतिक संकेतों से भरा हुआ, 4 दिनों का बेहद कठिन छठ का व्रत. डूबते सूर्य के अर्घ्य के बाद उगते सूर्य को अंतिम नमस्कार के साथ छठ का ये व्रत संपन्न तो हो जाता है, मगर सूर्य की ऐसी कठिन उपासना के पीछे शक्ति का रहस्य हमारे जेहन में बना रहता है. 


सूर्य के इसी चमत्कारी रहस्य को लेकर हमारी जिज्ञासा हमें पटना के पास एक ऐसे सूर्य मंदिर में ले गई, जिसके इतिहास का सिरा द्वापर युग से जुड़ता है. ये ओलार का सूर्य मंदिर है. देश में सूर्य के 12 आर्क मंदिरों में से एक. आम सूर्य मंदिरों की तरह यहां भी श्रद्धालु यहां अपनी अपनी मन्नत लिए सूर्य के अर्घ्य की तैयारी में थे. 


क्या आपने देखा है पटना का ओलार मंदिर?


मंदिर के बारे में एक बड़ी मान्यता ये है कि यहां सूर्य की पूजा और इस तलाब में स्नान से कुष्ठ जैसा असाध्य चर्मरोग ठीक हो जाता है. इस मान्यता की पड़ताल में हमने जब यहां के जानकारों से बातचीत की, तो पता चला, सूर्य के इस उपासना स्थल का ताल्लुक द्वापर युग से है. इनके मुताबिक भगवान कृष्ण और जाम्बवती के पुत्र के साम्ब ने खुद यहां सूर्य उपासना की थी और कुष्ठ रोग से मुक्त हुए थे.


ये मान्यता पहले तो चौंकाती है, लेकिन ओलार मंदिर और यहां हुए चमत्कार का जिक्र साम्ब पुराण में भी मिलता है. एक कथा के मुताबिक कृष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्ब बहुत सुंदर थे. बांसुरी बजाते हुए अपने पिता कृष्ण की नकल उतारते थे. इससे नाराज कृष्ण ने उन्हें शाप दे दिया. दूसरी कथा के मुताबिक साम्ब ने गर्गाचार जैसे ऋषि को अपमानित किया था, इसकी वजह से उन्होंने कुष्ठ रोग से ग्रसित होने का शाप दिया. शाप के प्रभाव में साम्ब की सुंदरता कुष्ठ रोग से खत्म हो गई. तब उन्हें नारद मुनि ने ओलार में सूर्य मंदिर बनाकर उपासना की सलाह दी.


सूर्य की किरणों के मुताबिक मंदिरों का निर्माण


ओलार मंदिर के महंत ने भगवान श्रीकृष्ण की ये कथा बताते हुए उन मंदिर की मूर्तियों की तरफ भी इशारा किया, जो परिसर में ही संग्रहालय बनाकर रखी हुई हैं. इन मूर्तियों की जांच पुरातत्व विभाग कर चुका है. जांच में सामने आई इनकी काल गणना के मुताबिक ये मूर्तियां पांच हजार साल पुरानी है, जिन्हें मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़ दिया था. लेकिन महंत अवध बिहारी दास बताते हैं, सूर्य मंदिर ध्वस्त होने के बाद भी यहां सूर्य की अलौकिक शक्तियां बनी रही.


तो फिर सूर्य मंदिर तोड़े जाने के बाद कैसे बची रही यहां अलौकिक शक्ति, ओलार मंदिर के इस रहस्य की पड़ताल अभी बाकी थी. ओलार मंदिर के इसी रहस्य से हमारी ज्ञिज्ञासा सूर्य की रहस्यमयी शक्ति को लेकर बढ़ी, जिसका जिक्र हमारी धार्मिक परंपराओं में मिलता है. 


दरअसल देश में सूर्य के 12 आर्क मंदिर हैं. आर्क का मतलब हम सबने मैथ्स के ज्योमेट्री चैप्टर में पढ़ा है. ये वृत की परिधि पर मार्क किए गए हिस्से होते हैं. जानकारों के मुताबिक देश में सभी सूर्य मंदिरों का निर्माण, सूर्य की किरणों के आर्क यानी कोण के आधार पर कराया गया है. खगोलीय गणना के मुताबिक सूर्य मंदिरों के ये कोण इंसानों पर सूर्य की किरणों के बेहतर प्रभाव के अध्ययन के बाद तय किए गए.


भगवान कृष्ण के बेटे ने की थी सूर्य उपासना


धरती पर पड़ने वाली सूर्य के किरणों की शक्ति का रहस्य अगर समझना हो, तो इसके लिए सबसे बेहतर उदाहरण है कोणार्क सूर्य मंदिर. 13वी शताब्दी यानी आज से करीब 8 सौ साल पहले बनाए गए इस अद्भुद मंदिर के नाम में ही सूर्य का अर्क और कोण है, जिसकी वजह से इसे कोणार्क नाम दिया गया. 
मंदिर के अन्दर सूर्य भगवान की मूर्ति को ऐसे रखा गया था कि उगते हुए सूर्य की पहली किरण उस पर आकर गिरती है. इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है. 


इसमें रथ में 12 जोड़ी पहिए हैं, जिसे 7 घोड़े खींचते हुए नजर आते हैं. ये 7 घोड़े 7 दिन के प्रतीक हैं. जबकि रथ 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक माने जाते हैं. रथ के 12 में से चार पहियों को अब भी समय बताने के लिए धूपघड़ी की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसी आधार पर ये माना जाता है, कि ये मंदिर सूर्य के साथ समय की गति को दर्शाता है. 
 
कोणार्क मंदिर के बारे में ये मान्यता है कि कृष्ण के बेटे साम्ब ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए यहां भी 12 साल तक सूर्य की उपासना की थी. यही मान्यता बिहार के ओलार मंदिर की भी है. ओलार मंदिर को पुराने समय में ओलार्क मंदिर कहा जाता था, जो देश के 12 आर्क सूर्य मंदिरों की कड़ी का हिस्सा है. ओलार मंदिर में सूर्य की चमत्कारी शक्ति को समझने से पहले, हम आपको बताते हैं, देश के उन 12 आर्क मंदिरों के बारे में, जो सूर्य किरणों के खगोलीय कोण गणना के आधार पर निर्मित किए गए हैं. 


सूर्य के 12 आर्क, 12 मंदिर


पहला उड़ीसा का कोणार्क


दूसरा देव का देवार्क


तीसरा ओलार का ओलार्क


चौथा पंडारक का पुण्यार्क


पांचवा अंगरी का औंगार्क


छठा काशी का लोलार्क, 


सातवां सहरसा का मार्केण्डेयार्क, 


आठवां उत्तराखण्ड कटलार्क,


नौवां बड़गांव का बालार्क 


दसवां चंद्रभागा नदी किनारे चानार्क, 


ग्यारहवां चिनाव नदी किनारे आदित्यार्क 


और बारहवां पुष्पावती नदी किनारे मोढेरार्क.


देश के आर्क सूर्य मंदिरों में ओलार का तीसरा स्थान


ओलार मंदिर का स्थान देश के आर्क सूर्य मंदिरों में तीसरा है, इस लिहाज से यहां सूर्य शक्ति की परिकल्पना भी उतनी ही अद्भुत है. ओलार मंदिर के बारे में सबसे बड़ी मान्यता यही है, कि यहां चैत्र और कार्तिक महीने में सूर्य उपासना से संतान की प्राप्ति होती है. तो क्या ये सिर्फ मान्यता है या इसके पीछे कोई सूर्य शक्ति की कोई तार्किक वजह भी है? 


अगर वैदिक गणना के लिहाज से देखें, तो कार्तिक महीने में सूर्य की किरणें सेहत के लिए अच्छी होती है. सूर्य की किरणें कार्तिक मास में सृजन की शक्ति से भरी होती हैं. कार्तिक महीने में इंसानों में प्रजनन शक्ति चरम पर होती है. इस महीने सूर्य की किरणों में विटामिन डी की मात्रा ज्यादा होती है. प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सूर्य को जल देने से शरीर पर सूर्य किरणों के 7 रंगों का असर पडता है.


बेटे को करवाती हैं नटुआ नृत्य


वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक भी सूर्योदय के साथ जल में खड़े होकर सूर्य को जल अर्पित करना सबसे लाभकारी होता है. ओलार मंदिर के महंत भी ये बताते हैं, सूर्य उपासना के साथ संतान उत्पति की संभावना के पीछे सिर्फ आस्था नहीं, इसके पीछे लंबा अध्यनन है. इसकी एक झलक आप इस तस्वीर में भी देख सकते हैं.यहां बहुत सारी महिलाएं गोद में अपने नवजात को लेकर आई हैं. इनका मानना है, कि संतान होने की मुराद इसी सूर्य मंदिर में मन्नत मांगने के बाद पूरी हुई है. 


परंपरा के मुताबिक मन्नत पूरी होने के बाद ये यहां अपना आंचल बिछाकर उस पर नटुआ नृत्य कराती हैं. ये तो हुआ सूर्य चमत्कार के रहस्य का एक पहलू. दूसरा पहलू है कुष्ठ जैसे असाध्य चर्मरोग को ठीक करने में सूर्य शक्ति का प्रभाव. जैसा कि ओलार और कोणार्क के सूर्य मंदिरों के बारे में मान्यता है कि यहां श्रीकृष्ण के पुत्र राजा साम्ब सूर्य उपासना कुष्ठ रोग से मुक्त हुए थे. इस रहस्य की पड़ताल के दौरान हमने जाना ओलार के एक तलाब के बारे में, जिसके पानी चमत्कारी शक्तियां हैरान करती हैं. 


तालाब के पानी का रहस्य


ओलार के सूर्यमंदिर के सामने ये तालाब अब छोटा सा बचा है, लेकिन इसके पानी की शक्तियां अब भी बेहद चमत्कारी मानी जाती हैं. यहां आया हर श्रद्धालु यही मानता है- इसमें स्नान से उन्हें चर्म रोगों से छुटकारा मिलता है. तालाब के पानी में गंधक? इस रहस्य को समझने के दौरान हमें एक ऐसा तथ्य मिला, जिसे विज्ञान भी नकार नहीं सकता. मंदिर के पुजारी बताते हैं, कि पानी में गंधक की इस मात्रा की जानकारी पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों को मिली थी. 


सूर्य शक्ति और गंधक का रहस्य


अगर आप अब भी इसे आस्था मान रहे हैं, तो यहां कुछ वैज्ञानिक तथ्य जान लीजिए. ज्योतिष शास्त्र में गंधक को सूर्य का उग्र पदार्थ माना गया है. रसायन शास्त्र में गंधक को ज्वलनशील पदार्थ माना गया है. गंधक का इस्तेमाल आयुर्वेद की कई दवाओं में भी होता है. शोधित गंधक से मिले पानी से नहाने से चर्मरोग ठीक होता है. 


ओलार के सूर्यमंदिर में दूसरी चमत्कारी शक्ति यहां चढ़ाए जाने वाले दूध की मानी जाती है. सूर्य देवता पर दूध चढ़ाने के बाद इसे खास तरीके से प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. 


तो क्या सूर्यदेवता की मूर्तियों में कोई खास पदार्थ है, जो दूध में मिलकर इसे चर्मरोग के लिए चमत्कारी बना देता है? ये सवाल वैज्ञानिक जांच का विषय है, लेकिन यहां ओलार मंदिर में आस्था का सैलाब देखकर यही लगता है कुछ सवालों को लोगों के विश्वास पर छोड़ देना चाहिए. लोग यहां मन्नतें पूरी होने को सूर्य देवता का चमत्कार मानते हैं, तो यही सही.