Brigadier Kuldip Singh Chandpuri Biography: 15 अगस्त को हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं. इस अवसर पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने देश के लिए मर-मिटने वाले भारतीय सेना के जवानों की याद में 'शौर्य' नाम से एक खास सीरीज शुरू की है. आज हम याद करेंगे 1971 के युद्ध के हीरो ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी को.


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भारत-पाक 1971 का युद्ध. एक तरफ पाकिस्तानी सेना के करीब 60 टैंक, जिसमें 2 किलोमीटर तक वार करने वाली मशीन गन और करीब 3 हजार पाक सैनिक. वहीं, दूसरी तरफ सिर्फ 120 भारतीय जवानों के साथ लौंगेवाला चौकी पर तैनात थे ब्रिगेडियर (तब मेजर) कुलदीप सिंह चांदपुरी. 


ऐसी स्थिति में भी लोंगेवाला मोर्चे के हीरो भारतीय सेना ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने अपने सैनिकों के साथ पाकिस्‍तानी सेना के तीन हजार सैनिकों को धूल चटा दी थी. ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी और उनके अदम्य साहस पर बॉलीवुड की मशहूर फिल्म बॉर्डर बनी है, जिसमें सनी देओल ने उनका किरदार निभाया था.


पत्नी को रेडियो पर पता चली युद्ध की बात


इतना ही नहीं, ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी की पत्नी सुरिंदर कौर को ये भी नहीं पता था कि 1971 के युद्ध में उनके पति कहां तैनात हैं. ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी की वीरता की कहानी उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से पता चली. ये बात सुरिंदर कौर ने इंटरव्यू के दौरान बताई थी.


जवानों को लड़ने के लिए ऐसे किया प्रेरित


युद्ध के बारे में बताते हुए ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि पाकिस्तानी सेना के हजारों सैनिकों और 40-50 टैंकों ने हमें घेर लिया था. वहां से बचकर निकलना बेहद मुश्किल था. ऐसे हालात में फैसला लेना मुश्किल था. उन्होंने बताया कि ऐसे वक्त में पोस्ट छोड़कर भाग भी नहीं सकते थे, क्योंकि इसकी इजाजत उनका धर्म नहीं देता था. इसके बाद मैंने अपने जवानों को लड़ने के लिए प्रेरित किया. लौंगेवाला चौकी पर सिख रेजिमेंट तैनात थी. चांदपुरी ने अपने जवानों को गुरु गोविंद सिंह और उनके बेटों की शहादत की मिसालें दीं और कहा कि अगर हम युद्ध छोड़कर भागेंगे तो यह पूरी सिख कौम पर कलंक होगा.


शुरू से ही सेना में नौकरी करना चाहते थे ब्रिगेडियर


ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का जन्म 22 नवंबर 1940 को हुआ था. उनके जन्म के समय उनका परिवार मौजूदा पाकिस्तान के मिंट गुमरी में रह रहा था. वर्ष 1947 में भारत - पाकिस्तान के बंटवारे के बाद उनका परिवार पंजाब के नवाशहर जिले के गांव चांदपुर में आकर बस गया. चांदपुरी काफी शुरुआत से ही एनसीसी (राष्ट्रीय कैडेट कोर) के साथ सक्रिय सदस्य के रूप में जुड़ गए थे. 1962 में होशियारपुर के सरकारी कॉलेज से स्नातक होने पर उन्होंने एनसीसी की परीक्षा पास की. 


कुलदीप सिंह चांदपुरी 1962 में ही भारतीय सेना में भर्ती हुए. ठीक एक साल बाद साल 1963 में उन्हें ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन में कमीशन किया गया था, यह भारतीय सेना की सबसे पुरानी और अत्यधिक सुशोभित इकाइयों में से एक है. भारतीय फौज में शानदार सेवाओं के लिए उन्हें महावीर चक्र और विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा गया. 17 नवंबर 2018 को उन्होंने अंतिम सांस ली.


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