मेजर शैतान सिंह: हाथ में लगी चोट तो पैर में बांधी मशीन गन, 1800 चीनी सैनिकों को उतारा मौत के घाट; 1962 के परमवीर की शौर्य गाथा
Major Shaitan Singh: 15 अगस्त को देश आजादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस (75th Independence Day) मनाने जा रहा है. इस मौके पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने `शौर्य` नाम से एक खास सीरीज की शुरुआत की है. इस सीरीज में हम आपको देश के लिए मर-मिटने वाले जवानों की शौर्य (Shaurya) गाथा बता रहे हैं.
Major Shaitan Singh Biography: 15 अगस्त को हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं. इस अवसर पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने देश के लिए मर-मिटने वाले भारतीय सेना के जवानों की याद में 'शौर्य' नाम से एक खास सीरीज शुरू की है. आज हम याद करेंगे 1962 के भारत-चीन के युद्ध के हीरो मेजर शैतान सिंह को.
16000 सैनिकों का किया मुकाबला
18 नवंबर 1962 की सुबह. चारों तरफ सफेद बर्फ की चादर. माइनस में तापमान, हड्डियां गला देने वाली ठंड. कोहरा इतना कि कुछ भी साफ दिखाई न दे. इस परिस्थिति में 17000 फीट की ऊंचाई पर चीन के नापाक मंसूबों को रोकने के लिए तैनात भारत के महज 120 सैनिक. हम बात कर रहे हैं 1962 के भारत-चीन युद्ध की. 18 नवंबर भारत के इतिहास में दर्ज बेहद खास तारीख है. इस दिन भारतीय सेना के एक जांबाज ने चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. हम बात कर रहे हैं परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की. मेजर शैतान सिंह ने अपने 120 सैनिकों के साथ मिलकर चीन के 16000 सैनिकों का मुकाबला किया. इतना ही नहीं इस युद्ध में 1800 चीनी सैनिकों को मार गिराया.
चीन ने चली चाल
मेजर शैतान सिंह 13 कुमाऊं बटालियन की 'सी' कंपनी को लीड कर रहे थे. उनकी बटालियन में 120 जवान थे. ये बटालियन लद्दाख के रेजांग ला (रेजांग पास) पर तैनात थी. इसी दौरान चीन ने एक चाल चली. भारतीय सैनिकों ने देखा कि उनकी तरफ हजारों आग के गोले आ रहे हैं. बटालियन का नेतृत्व कर रहे मेजर शैतान सिंह ने फायरिंग का आदेश दिया. थोड़ी देर में पता चला कि ये आग के गोले नहीं बल्कि लालटेन हैं, जो चीन ने भारतीय सेना को भ्रमित करने के लिए याक के गले में लटकाकर भारत की तरफ भेजी थीं.
भारतीय सेना के पास थे कम संसाधन
दरअसल, उस वक्त भारतीय सेना के पास काफी कम संसाधन थे. चीन इस बात को जानता था. इसलिए उसने ये चाल चली. जहां एक ओर चीनी सेना के पास कड़ाके की सर्दी में लड़ने के अनुभव से लेकर 16000 सैनिकों की फौज और अत्याधुनिक हथियार थे. तो वहीं भारत के पास 120 सैनिकों की टुकड़ी, 300-400 राउंड गोलियां और 1000 हथगोले ही थे. मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस से सीनियर अधिकारियों से मदद मांगी, तो उन्होंने कहा कि अभी फौज भेज पाना मुश्किल है. ऐसे में मेजर से अपनी बटालियन के साथ वहां से जान बचाने के लिए कहा गया. लेकिन मेजर ने भागना नहीं बल्कि लड़ना चुना. मेजर शैतान सिंह ने अपने जवानों से कहा कि जो जाना चाहता है जा सकता है और जो मेरे साथ लड़ना चाहता है वो यहां रुके.
18 घंटों तक किया दुश्मन का मुकाबला
मेजर शैतान सिंह ने जवानों में इतना जोश भर दिया कि पूरी बटालियन दुश्मनों से लड़ने के लिए तैयार हो गई. इसके बाद हथियारों और जवानों की कमी को ध्यान में रखकर लड़ने की रणनीति बनाई गई. मेजर ने प्लान बनाया कि जब चीनी सैनिक फायरिंग की रेंज में आएं, तभी उन पर गोली दागी जाए. मेजर ने एक गोली से एक दुश्मन को मारने का प्लान बनाया. इस रणनीति से भारतीय सैनिकों ने 16000 सैनिकों को खदेड़ दिया. रेजांग ला में ये जंग 18 घंटों तक चली. इस दौरान भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो गए और कई बुरी तरह जख्मी हो गए. मेजर शैतान सिंह के पास कोई चारा नहीं बचा था. उन्होंने अकेले पूरा मोर्चा संभाला और बंदूक लेकर चीनी सैनिकों पर टूट पड़े. इस दौरान मेजर को कई गोलियां लगीं.
पैर से बांधी मशीन गन
चीनी सेना ने लगातार गोलीबारी और बमबारी की. इस बमबारी में ही मेजर सिंह के हाथ में शेल का टुकड़ा आकर लग गया और वो घायल हो गए. दो जवान उन्हें एक बर्फीली पहाड़ी के पीछे ले गए. वहां कोई मेडिकल हेल्प नहीं थी. इसके लिए मेजर को पहाड़ी से नीचे ले जाना था. जवानों ने मेजर को समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी. इतना ही नहीं, मेजर ने जवानों को ऑर्डर दिया कि उन्हें मशीन गन लाकर दें. मेजर शैतान सिंह ने घायल होने के बावजूद अपने पैर से मशीन गन बांधी और चीनी सैनिकों पर फायरिंग करने लगे. उनके साथ जो दो सैनिक थे, उन्हें भी वापस भेज दिया और घंटों तक लड़ते रहे.
तीन महीने बाद मिला पार्थिव शरीर
इस घटना के बाद मेजर शैतान सिंह का कुछ पता नहीं चला. तीन महीने बाद जब रेजांग ला इलाके में बर्फ पिघली, तो भारतीय सैनिकों ने तलाशी शुरू की. इस तलाशी में मेजर शैतान सिंह का पार्थिव शरीर सेना को मिला. वो उसी पॉजिशन में थे, जिसमें वो चीनी सैनिकों से मुकाबला कर रहे थे. उनके पैरों में रस्सी से मशीन गन का ट्रिगर बंधा था. उनका पूरा शरीर बर्फ की वजह से जम गया था. मेजर शैतान सिंह के अलावा उनकी बटालियन के 114 सैनिकों के भी शव मिले. बाकी के सैनिकों को चीन ने बंदी बना लिया था.
परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित
मेजर शैतान सिंह और उनके 120 सैनिकों ने इस लड़ाई में करीब 1800 सैनिकों को मार गिराया था. इस इलाके में चीनी सेना भारत में न घुस सकी. इस बात को चीन की आधिकारिक रिपोर्ट में भी कबूल किया गया कि 1962 के युद्ध में चीन को सबसे ज्यादा नुकसान इसी इलाके में हुआ. मेजर शैतान सिंह राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले थे. उनका अंतिम संस्कार जोधपुर में ही किया गया. बाद में सरकार ने उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया.
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