Shiv Sena News: महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर आखिरकार 34 याचिकाओं पर बुधवार को अपना फैसला सुनाएंगे. ये याचिकाएं जून 2022 में पार्टी में विभाजन के बाद शिवसेना के दो गुटों ने एक दूसरे के खिलाफ दायर की थीं. इन याचिकाओं में कुल 54 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है. शिवसेना में हुए इस विभाजन के बाद प्रदेश की उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को जाना पड़ा था.


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स्पीकर का फैसला बुधवार शाम 4 बजे के आसपास आने की उम्मीद है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले महाराष्ट्र की राजनीति में इस फैसले से उथल-पुथल मचना तय माना जा रहा है. फैसला खिलाफ आने की सूरत में दोनों गुट सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए तैयार बैठे हैं. आज आने वाले बड़े फैसले से पहले इस पूरे विवाद का इतिहास जानना दिलचस्प होगा.


शिवसेना में दो फाड़
जून 2022 में शिंदे के नेतृत्व में अन्य विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, जिसके बाद शिवसेना दो फाड़ हो गई थी. इस विभाजन से ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास आघाड़ी सरकार (एमवीए ) का पतन हो गया था, जिसमें कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी मुख्य घटक थे.


शिंदे के विद्रोह के कुछ घंटों बाद, उद्धव के समूह ने एक प्रस्ताव पारित कर उन्हें विधायक दल के नेता पद से हटा दिया और उनकी जगह अजय चौधरी को नियुक्त किया. सुनील प्रभु को पार्टी का मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया.


उसी दिन, शिंदे समूह ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें पुष्टि की गई कि शिंदे विधायक दल का नेतृत्व करना जारी रखेंगे और भारतशेत गोगावले को मुख्य सचेतक नियुक्त किया, जिसे एमवीए सरकार के पतन के बाद अध्यक्ष चुने गए नारवेकर ने 3 जुलाई, 2022 को स्वीकार कर लिया.


दोनों गुट ने एक दूसरे के खिलाफ डाली अयोग्याताएं याचिकाएं
सेना में विभाजन के दो दिन बाद, प्रभु द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल नहीं होने के लिए शिंदे और 15 अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं का पहला सेट दायर किया गया था. 27 जून को, शिंदे सेना के 22 और विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं का एक और सेट दायर किया गया था. बाद में दो और विधायकों के खिलाफ याचिकाएं दायर की गईं, जिससे कुल संख्या 40 हो गई.


बदले में, शिंदे सेना ने 14 शिवसेना (यूबीटी) विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए याचिकाएं दायर कीं. प्रभु ने इन जवाबी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.


स्पीकर के सामने दोनों पक्षों ने क्या बहस की?
मामले की सुनवाई 20 दिसंबर को नागपुर में राज्य विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन समाप्त हुई. शिवसेना (यूबीटी) ने आरोप लगाया कि शिंदे और उनके साथ के विधायकों ने प्रभु द्वारा जारी व्हिप का पालन नहीं किया. इसके जवाब में सीएम के समूह ने दावा किया कि विधायकों को कभी कोई व्हिप नहीं मिला और कभी व्हिप जारी नहीं किया गया. इसलिए व्हिप का पालन करने या उल्लंघन करने का कोई सवाल ही नहीं है.


बता दें निर्वाचन आयोग ने विभाजन के बाद शिंदे की अगुवाई वाले गुट को ‘शिवसेना’ नाम और ‘धनुष बाण’ चुनाव चिह्न आवंटित किया था, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे की अगुवाई वाले गुट को शिवसेना (यूबीटी) नाम और चुनाव चिह्न के तौर पर ‘मशाल’ आवंटित किया गया था.


शिंदे सेना ने दावा किया कि उन्होंने एमवीए से बाहर निकलने का फैसला किया क्योंकि उनके समर्थक गठबंधन से नाराज थे. इसमें कहा गया है कि अपना समूह बनाना और सरकार में शामिल होना अयोग्यता को आमंत्रित करने वाले विधायी नियमों का उल्लंघन नहीं है. पार्टी के वकील, महेश जेठमलानी ने यह भी आरोप लगाया कि शिवसेना (यूबीटी) ने स्पीकर के समक्ष जो दस्तावेज और रिकॉर्ड प्रस्तुत किए, वे जाली थे.


बदले में शिवसेना (यूबीटी) ने तर्क दिया कि जब एमवीए का गठन हुआ था, तो विद्रोहियों ने उद्धव के सामने अपना विरोध दर्ज नहीं किया था.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मई 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि नार्वेकर को पार्टी के मूल संविधान पर भरोसा करना चाहिए. स्पीकर से याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए कहते हुए, अदालत ने 11 मई के अपने फैसले में कहा, '(अयोग्यता की कार्यवाही में) अपने निर्णय पर पहुंचने में, स्पीकर को पार्टी के संविधान के साथ-साथ किसी भी अन्य नियम और विनियमों पर विचार करना चाहिए जो पार्टी के नेतृत्व की संरचना निर्दिष्ट करते हैं.'


सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यदि प्रतिद्वंद्वी समूह पार्टी संविधान के दो या अधिक संस्करण प्रस्तुत करते हैं, तो अध्यक्ष को प्रतिद्वंद्वी गुटों के उभरने से पहले ईसीआई को प्रस्तुत संस्करण पर विचार करना चाहिए. दूसरे शब्दों में, अध्यक्ष को पार्टी संविधान के उस संस्करण पर विचार करना चाहिए जो दोनों गुटों की सहमति से ईसीआई को प्रस्तुत किया गया था. इससे ऐसी स्थिति से बचा जा सकेगा जहां दोनों गुट अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए संविधान में संशोधन करने का प्रयास करेंगे.'


अदालत ने स्पीकर से यह भी कहा कि उन्हें अपने फैसले को इस बात पर आधारित नहीं करना चाहिए कि विधानसभा में किस समूह के पास बहुमत है. स्पीकर को पहले यह निर्धारित करना चाहिए कि ईसीआई के आदेश से प्रभावित हुए बिना, कौन सा गुट एक राजनीतिक दल है.


अगर उद्धव के विधायक अयोग्य घोषित हो गए तो क्या होगा?
इस बीच सत्‍ता से हटने के बाद उद्धव कुछ हद तक जनता की सहानुभूति हासिल करने में कामयाब रहे हैं, जिसे वह चुनाव के दौरान कायम रखना चाहेंगे. यदि उनके विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, तो उनके पास जोर-शोर से यह दावा करने का अवसर होगा कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. वह बीजेपी को घेरने का प्रयास करेंगे भले ही अदालतों में कानूनी लड़ाई लंबी खिंच जाए. बीजेपी नहीं चाहेगी कि चुनाव से पहले उद्धव और 'कमजोर' सेना को कोई सहानुभूति मिले.


अगर फैसला खिलाफ गया तो शिंदे सेना पर क्या असर होगा?
यदि शिव सेना के विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाता है, तो यह बीजेपी को मुश्किल स्थिति में डाल देगा क्योंकि शिंदे के साथ सरकार बनाते समय उसने दावा किया था कि यह कदम संविधान के अनुसार है. इससे विपक्ष को चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना का मुकाबला करने के लिए जरूरी बढ़त मिल जाएगी और उसका तर्क मजबूत होगा कि राज्य सरकार का गठन 'असंवैधानिक और अवैध रूप से' किया गया था. अयोग्यता की कार्यवाही के नतीजे सरकार को अस्थिर नहीं करेंगे क्योंकि अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ है.