`Shiv Sena पान की टपरी नहीं... गद्दारों पर फैसला दिल्ली ने लिखा` सामना में उद्धव गुट ने विधानसभा स्पीकर पर निकाली भड़ास
News About Shiv Sena Eknath Shinde: उद्धव ठाकरे के गुट ने सामना में लिखे लेख के जरिए विधानसभा स्पीकर के फैसले पर अपना गुस्सा जाहिर किया है. इसमें कहा गया कि फैसला दिल्ली में लिखा गया था और सवाल खड़ा किया गया कि पार्टी बालासाहेब ठाकरे ने बनाई थी तो अधिकार किसका होगा.
Shivsena Case Verdict: 'शिवसेना की स्थापना बालासाहेब ठाकरे ने की थी... महाराष्ट्र के गद्दारों को लेकर फैसला पहले से तय हो चुका था. वैसा ही आया. इसमें कोई चौंकने वाली बात नहीं. विधानसभा अध्यक्ष द्वारा पढ़ा गया लंबा फैसला दिल्ली में उनके आकाओं द्वारा लिखा गया...' शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए विधायकों की पात्रता को लेकर विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर की है.
सामना के संपादकीय (Saamana Editorial Hindi) में सवाल उठाया गया कि जहां विधानसभा अध्यक्ष की नियुक्ति दिल्ली से की जाती हो और संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति पांच साल में चार पार्टियां बदलकर पद पर बैठा हो, उस व्यक्ति द्वारा शिवसेना जैसी पार्टी का स्वामित्व तय करना जरूर चौंकाने वाली बात है.
यह सुप्रीम कोर्ट का अपमान
लेख में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि शिंदे गुट द्वारा नियुक्त ‘व्हिप’ भरत गोगावले अवैध हैं. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल उठाया था. कोर्ट ने भी माना कि शिवसेना के सुनील प्रभु ही व्हिप हैं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और निर्देशों को खारिज कर दिया और शिंदे गुट की सभी अवैध गतिविधियों को मंजूरी दे दी. यह सुप्रीम कोर्ट का अपमान है. आरोप लगाया गया कि विधानसभा अध्यक्ष का यह फैसला संविधान, कानून की हत्या कर दिल्ली की मदद से महाराष्ट्र पर किया गया आघात है.
लेख में कहा गया, 'सिर्फ इसलिए कि किसी विधायक दल में दो गुट हो गए हैं, इससे यह तय नहीं होता कि उस पार्टी का स्वामित्व किसके पास है, लेकिन भारत के चुनाव आयोग ने उसी आधार पर शिवसेना का स्वामित्व उससे अलग हुए गुट को सौंप दिया और अब विधानसभा अध्यक्ष ने भी उसी गलत निर्णय पर मुहर लगा दी है.'
आगे पढ़िए सामना के संपादकीय का अंश
'शिवसेना की स्थापना बालासाहेब ठाकरे ने की थी. अब विधानसभा अध्यक्ष ने एलान किया- असली शिवसेना किसकी है, ये तय करने का अधिकार मुझे ही है. विधानसभा अध्यक्ष ऐसा किस आधार पर कहते हैं? जहां विधानसभा अध्यक्ष की ही नियुक्ति दिल्ली से की जाती हो और उस संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति पांच साल में चार पार्टियां बदलकर उस पद पर बैठा हो, उस व्यक्ति द्वारा शिवसेना जैसी महाराष्ट्र स्वाभिमानी पार्टी का स्वामित्व तय करना चौंकाने वाली बात है. विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का यह फैसला महाराष्ट्र में अराजकता निर्माण करने वाला और झूठ के गले में मणिहार पहनाने वाला है.
देखिए ये भारतीय लोकतंत्र का कैसा उपहास है. जिस पार्टी में आज 100 फीसदी तानाशाही और एकाधिकारशाही है, उस पार्टी द्वारा नियुक्त विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि शिवसेना में कोई लोकतंत्र नहीं है और गद्दारों को पार्टी से निकालने का अधिकार शिवसेना पक्ष प्रमुख को नहीं है, यह संसदीय लोकतंत्र का अब तक का सबसे बड़ा मजाक है.
विधानमंडल में बहुमत के आधार पर इसी विधानसभा अध्यक्ष ने फैसला सुनाया कि शिवसेना शिंदे गुट की है. अवैध तरीके से नियुक्त किए गए अध्यक्ष से किसी कानूनी फैसले की उम्मीद नहीं थी. बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को एक बेईमान गुट को सौंपकर विधानसभा अध्यक्ष ने महाराष्ट्र के साथ बेईमानी की है. विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि इस दावे की पुष्टि करने वाले कोई दस्तावेज, सबूत नहीं मिलते कि शिवसेना उद्धव ठाकरे की है, शिवसेना के संविधान में पक्ष प्रमुख का पद नहीं है इसलिए उन्हें पार्टी के बारे में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है. फिर डेढ़ साल पहले भाजपा के टेस्ट ट्यूब से पैदा हुए शिंदे गुट से विधानसभा अध्यक्ष को शिवसेना के स्वामित्व और विचारधारा के कौन से दस्तावेज मिले?
राहुल नार्वेकर के पास संविधान के मद्देनजर एक ऐतिहासिक निर्णय देने का बड़ा अवसर था. इस तरह के फैसले से उनका नाम भारतीय न्याय के क्षेत्र में हमेशा के लिए अंकित हो जाता, लेकिन उन्होंने दिल्ली के मालिकों द्वारा लिखा गया फैसला पढ़ने में ही अपने आपको धन्य माना. उन्होंने शिंदे के 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने से इनकार कर दिया और इसके लिए घटिया कारण बताए. पार्टी शिंदे की और उनके विधायक योग्य हैं, यह तय करने में उन्होंने 16 महीने लगाए.
राहुल नार्वेकर ने आंध्र प्रदेश के बहुमत वाले एन. टी. रामाराव सरकार को अवैध रूप से बर्खास्त करने वाले तत्कालीन राज्यपाल रामलाल की तरह काम किया. इस समय देश में अयोध्या के राम मंदिर के उद्घाटन के दीये जलाने की जोरदार तैयारी चल रही है और ऐसे वक्त में महाराष्ट्र में लोकतंत्र का दीया बुझा दिया गया है. विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने दो राजनीतिक बयान दिए- यह सच नहीं है कि गद्दार विधायकों ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है और घाती विधायकों ने कोई अनुशासनहीनता या पार्टी विरोधी गतिविधियां नहीं की हैं. यह बात विधानसभा अध्यक्ष ने अपने फैसले में ही कही है.
शिवसेना कोई पान की टपरी नहीं
पार्टी विरोधी गतिविधियां की गई हैं या नहीं, ये उस पक्ष के प्रमुख तय करेंगे. विधानसभा अध्यक्ष को यह अधिकार किसने दिया? शिवसेना पार्टी ठाणे के नुक्कड़ की पान टपरी नहीं कि कोई भी ऐरा-गैरा जाकर उस पर अवैध रूप से कब्जा कर ले. विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का यह फैसला यानी संविधान, कानून की हत्या कर दिल्ली की मदद से महाराष्ट्र पर किया गया आघात है.
विधानसभा अध्यक्ष ने सुबह ही कहा था कि ‘बेंचमार्क’ फैसला दिया जाएगा लेकिन उनका यह फैसला दुनियाभर में लोकतंत्र के मुख पर कालिख पोतनेवाला है. उन्होंने इतिहास रचने का अवसर गंवा दिया. महाराष्ट्र का एक गुट दिल्ली का गुलाम है और वह लोकतंत्र को, जनमन को गुलाम बनाने की कोशिश में लगा हुआ है. शिवसेना के बेईमान विधायक पहले सूरत गए, वहां से गुवाहाटी फिर गोवा, आखिर में मुंबई लौटे. यह पार्टी विरोधी गतिविधियों की पराकाष्ठा ही है. विधानमंडल में उन्होंने पार्टी का आदेश नहीं माना.
चोर मंडली को मान्यता...
‘हमारे साथ दिल्ली की महाशक्ति है. चिंता मत करो’, ऐसा शिंदे घाती विधायकों से बार-बार कहते रहे, लेकिन राहुल नार्वेकर संविधान के पद पर झूठ बोलते हैं कि इन सब से भाजपा का संबंध नहीं है. महाराष्ट्र की चोर मंडली को मान्यता देने के लिए संविधान को पैरों तले रौंदा गया. जिन्होंने ऐसा किया, उन्हें महाराष्ट्र की जनता माफ नहीं करेगी! फिलहाल इतना ही!'