SIMI wanted to establish Islamic rule in India: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलफनामा दाखिल कर सरकार द्वारा स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर लगाए बैन को सही ठहराया है. सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि ऐसे किसी भी संगठन को इजाजत नहीं दी जा सकती जो देश में इस्लामिक शासन की स्थापना करना चाहता हो. 


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सरकार ने कहा कि आतंकवादी संगठन सिमी का मकसद राष्ट्रवाद को खत्म कर देश में इस्लामिक शासन व्यवस्था स्थापित करना है. लंबे समय से ये संगठन इस्लाम के प्रचार और जिहाद का समर्थन कर युवाओं को भड़काता रहा है. इस संगठन का देश के संविधान और राष्ट्र की अवधारणा में कोई विश्वास नहीं है. 


सरकार की तरफ से कोर्ट में दाखिल हलफनामे में ये भी लिखा है कि ये आतंकी संगठन मूर्तिपूजा के खिलाफ है और ऐसी धार्मिक परम्पराओं को खत्म करना अपनी जिम्मेदारी समझता है. ऐसे संगठन को धर्मनिरपेक्ष समाज में इजाजत नहीं दी जा सकती. सरकार ने कोर्ट को बताया है कि सिमी का पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब और नेपाल में भी नेटवर्क हैं. सिमी के जरिए हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर ए तोएबा जैसे संगठन देशविरोधी मंसूबों को अंजाम देते रहे हैं. 


सरकार ने बताया कि इस संगठन का गठन 25 अप्रैल 1977 को हुआ था. तब से ही ये जिहाद को बढ़ावा में लगा है. हालांकि, सरकार ने इस संगठन को 27 सितंबर, 2001 को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत बैन कर दिया था.


क्या है मामला?
दरअसल, 2019 में सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर सिमी पर लगे प्रतिबंध को 5 वर्षों के लिए बढ़ा दिया था. इसके विरोध में सिमी के पूर्व सदस्य होने का दावा करते हुए हुमाम अहमद सिद्दीकी ने एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी. याचिका के विरोध में सरकार ने हलफनामे के रूप में अपना जवाब दाखिल किया है और कहा कि सिमी पर लगे प्रतिबंध एकदम सही हैं.


केंद्र सरकार ने कहा, 'रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत यह बताते हैं कि प्रतिबंधित होने के बाद भी ये संगठन एक्टिव रहा है. इसके कार्यकर्ता मिलते रहे हैं और बैठक कर साजिश रचते रहे हैं. ये हथियार एकत्रित कर रहे हैं. ये भारत की अखंडता के लिए संकट खड़ा कर पाने में सक्षम हैं. ये लगातार अपने आकाओं के संपर्क में हैं. उनका मकसद हमारे कानून के खिलाफ हैं. ऐसे में किसी भी ऐसे संगठन को जो भारत में इस्लामी शासन स्थापित करने की सोच रखता हो, उसे किसी भी काम के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती.'


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