Siraj ud-daulah and Mir Jafar: इतिहास में कई ऐसे वाकये हुए हैं जहां एक स्‍टोरी का अंत होता है लेकिन उसके साथ ही दूसरे नए दौर का आगाज होता है. ऐसी ही कहानी सन 1757 के प्‍लासी के युद्ध की है जब बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सत्‍ता चली गई और वहीं से ब्रिटिश राज की नींव पड़ी. उसके बाद अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक हिंदुस्‍तान पर राज किया. उसी लिहाज से नवाब सिराजुद्दौला को अंतिम स्‍वतंत्र नवाब कहा गया.


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नवाव सिराजुद्दौला (1733-1757)
बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान की सबसे छोटी बेटी के पुत्र सिराजुद्दौला थे. सन 1756 में नाना अलीवर्दी के इंतकाल के बाद इनको वारिस घोषित किया गया. इससे परिवार और रिश्‍तेदारी में कई लोग खासा नाराज थे. नवाब बनते वक्‍त सिराजुद्दौला की उम्र भी महज 23 साल की थी. सिराज ने नवाब बनते ही सेनापति मीर जाफर की जगह मीर मदान को तवज्‍जो दी. वर्षों से नवाब बनने का सपना संजोए मीर जाफर कदम से बहुत नाराज हो गया और रॉबर्ट क्‍लाइव के नेतृत्‍व वाली ब्रिटिश इंडिया कंपनी से पींगे बढ़ाने लगा. क्‍लाइव की नजर भरे-पूरे धनी बंगाल के खजाने पर थी. लिहाजा मीर जाफर और क्‍लाइव मिलकर साजिश रचने लगे. 


प्‍लासी का युद्ध (1757)
उसके बार सन जून, 1757 में अंग्रेजी हुकूमत ने बंगाल पर हमला बोल दिया. इसको इतिहास में प्‍लासी का युद्ध कहा जाता है. नवाब सिराजुद्दौला ने फौज का एक हिस्‍सा मुकाबला करने के लिए भेजा. वो पूरा हिस्‍सा इसलिए नहीं भेज सकते थे क्‍योंकि उनको उत्‍तर से अफगानियों और पश्चिम से मराठों के हमले का हमेशा खतरा बना रहता था. लिहाजा सिराज फौज के एक हिस्‍से के साथ राजधानी मुर्शिदाबाद से 27 मील दूर प्‍लासी पहुंचे. 23 जून, 1757 को हुई भीषण जंग में नवाब के विश्‍वासपात्र जनरल मीर मदान की मौत हो गई. नवाब ने फौरन पैगाम मीर जाफर के पास भेजा. क्‍लाइव के साथ मिलकर गद्दार बन चुके जाफर ने नवाब को गलत सलाह देते हुए फौरन जंग रोकने के लिए कहा. युवा नवाब सिराज ने उनकी बात मान ली. उनकी सेनाएं कैंप की तरफ लौटने लगीं. उधर जाफर ने क्‍लाइव को तुरंत संदेश भेजकर पूरी ताकत से हमला करने के लिए कहा. क्‍लाइव ने बिना चूक किए फौरन नवाब की सेनाओं पर हमला कर दिया. चूंकि सिराज की सेना इस अचानक हमले का सामना करने के लिए तैयार नहीं थी लिहाजा क्‍लाइव की जीत हुई और सिराज को हारकर भागना पड़ा. मीर जाफर उसी वक्‍त जाकर अंग्रेज कमांडर क्‍लाइव से मिला. क्‍लाइव ने उसको तत्‍काल मुर्शिदाबाद जाकर गद्दी पर कब्‍जा करने के लिए कहा. मीर जाफर को तय समझौते के तहत बंगाल का नवाब घोषित कर दिया गया. 


उधर सिराज ज्‍यादा दिन आजाद नहीं रह सके. एक फकीर की मुखबिरी के चलते वो पकड़े गए. मीर जाफर के बेटे मीर मीरान ने उनको मारने का हुक्‍म दिया और 2 जुलाई, 1757 को सिराजुद्दौला की हत्‍या कर दी गई. उसके बाद अगले दिन पूरे मुर्शिदाबाद में उनकी बॉडी को हाथी पर लादकर पूरे शहर में घुमाया गया. सिराजुद्दौला की कब्र पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के खुशबाग में स्थित है.


सिराज की मौत के बारे में रॉबर्ट ओर्मे ने अपनी किताब अ हिस्‍ट्री ऑफ द मिलिट्री ट्रांसेक्‍शन ऑफ द ब्रिटिश नेशन इन हिंदोस्‍तान में लिखा कि आधी रात के वक्‍त सिराज को उसी महल में मीर जाफर के सामने पेश किया गया जहां प्‍लासी की जंग से पहले खुद सिराज रहा करते थे. सिराज ने अपनी जान बख्‍श देने की गुजारिश की. उसके बाद उनको एक अलग कोने में ले जाया गया. मीर जाफर ने अपने दरबारियों के साथ विमर्श किया. उनके पास तीन विकल्‍प थे: सिराज को मुर्शिदाबाद में कैद रखा जाए. दूसरा उनको देश के बाहर भेज दिया जाए और तीसरा उनको मौत की सजा दी जाए. मीर जाफर का 17 साल का बेटा मीर मारान, सिराज को बख्‍शने के कतई मूड में नहीं था. उसने अपने पिता मीर जाफर को आराम करने की सलाह दी और कहा कि वो खुद इस मसले को संभाल लेगा. जब जाफर सोने चला गया तो मीरान ने अपने साथी मोहम्‍मदी बेग के साथ मिलकर सिराज की हत्‍या कर दी. 


बंगाल का खजाना
रॉबर्ट क्‍लाइव को सिराजुद्दौला के खजाने से पांच करोड़ मिले लेकिन उसने इससे भी ज्‍यादा की उम्‍मीद की थी. विलियन डैलरिंपिल ने अपनी किताब द अनार्की में कहा है कि क्‍लाइव को इस जीत से दो लाख 34 हजार पाउंड के बराबर धन मिला. इसके अलावा उसको 27 हजार पाउंड सालाना आमदनी देने वाली एक जागीर भी मिलने वाली थी.