Delhi High Court on Conversion: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि कानून में धर्मांतरण पर कोई रोक नहीं है. हर व्यक्ति को अपनी मर्जी से कोई धर्म भी अपनाने, उसे मानने का अधिकार है. इस लिहाज से कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर सकता है. ये उसका संवैधानिक अधिकार है. कोर्ट सिर्फ तब दखल दे सकता है जब किसी के साथ जोर जबरदस्ती की जाए.


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दिल्ली हाईकोर्ट की यह टिप्पणी बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आई है.


'विदेशी फंडिंग के जरिए हो रहा धर्मांतरण'


अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून बनाने की मांग की है. उपाध्याय का  कहना है कि लोगों को डरा-धमका कर, विभिन्न तरह के प्रलोभन देकर और यहां तक कि काला जादू और अंधविश्वास का सहारा लेकर धर्म परिवर्तन हो रहा है. ग्रामीण इलाकों में तो कई संस्थाएं बड़े पैमाने पर धर्मांतरण में लगी हैं. विदेश से उन्हें इसके लिए बाकायदा पैसा मिल रहा है. ये संस्थाएं ग्रामीण इलाकों में रह रहे वंचित तबके के लोगों को खासकर अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोगों का धर्मपरिवर्तन करा रही हैं. इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार को कानून बनाना चाहिए.


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'धर्मांतरण रोकने के लिए एक समान कानून नहीं'


अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि संविधान का आर्टिकल 14 कानून के समक्ष समानता की बात करता है, पर देशभर की तो छोड़िए, दिल्ली और आसपास के इलाकों में भी धर्मांतरण को लेकर कोई एक कानून नहीं है. उपाध्याय के मुताबिक डरा धमकाकर, लालच देकर धर्मांतरण गाजियाबाद  में अपराध है, पर पूर्वी दिल्ली में ऐसा नहीं है. इस तरह जादू टोने का सहारा लेकर धर्मांतरण गुरुग्राम में अपराध है, पर पश्चिमी दिल्ली में ऐसा नहीं है.


हाईकोर्ट के सवाल


सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सवाल खड़ा किया. जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहा कि आपने याचिका में कोई ऐसी घटना का हवाला नहीं दिया है, कोई दस्तावेजी सबूत नहीं दिया है, सिर्फ आशंकाओं के आधार पर याचिका दाखिल की है. आप बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की बात कर रहे हैं, लेकिन इसको लेकर आपके पास आंकड़ें कहां हैं.


सोशल मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल


अश्विनी उपाध्याय  ने इसके जवाब में सोशल मीडिया पर मौजूद आंकड़ों का हवाला दिया. इस पर कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया का डाटा कोई  विश्वनीय डाटा नहीं है. इसमें आसनी से तथ्यों में फेरबदल किया जा सकता है. बीस साल पहले की चीज सोशल मीडिया पर ऐसे दिखाई जाती है, जैसे कल की ही बात हो.


सुनवाई 26 जुलाई के लिए टली


सुनवाई के दौरान ASG चेतन शर्मा ने कहा कि अश्विनी उपाध्याय की याचिका जबरन धर्मांतरण को लेकर है, ये संजीदा मसला है. उन्होंने उम्मीद जताई कि याचिककर्ता अगली सुनवाई तक अपनी याचिका के पक्ष में सबूत रखेंगे ताकि कोर्ट अपना रुख साफ कर सके. बहरहाल कोर्ट ने सुनवाई 25 जुलाई तक टालते हुए कोई औपचारिक नोटिस तो नहीं जारी किया पर केंद्र से कहा कि इस दरमियान अगर वो चाहें तो कार्रवाई कर सकता है.


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