गुवाहाटीः असम में बीते 26 जून को एनआरसी ने एक अतिरिक्त ड्राफ्ट प्रकाशित कर कुल 1 लाख 2 हजार 4 सौ 62 लोगों के नाम अवैध भारतीय नागरिक मानते हुए नाम काटे गए हैं. इस ड्राफ्ट में कुछ ऐसे लोगों के नाम भी शामिल हैं जिनके भारतीय नागरिकता पर सवालिया निशान खड़ा करना हैरत की बात बताई जा रहीं हैं. इस अतिरिकत ड्राफ्ट से काटे गए नामों में से सबसे उल्लेखनीय नाम साहित्य अकादेमी अवार्ड विनर और गुवाहाटी के मालिगांव में एक सरकारी स्कूल में प्रधान अध्यापक के तौर पर काम करने वाले दुर्गा खातीवाड़ा और उनके परिवार का नाम शामिल हैं. 


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एनआरसी के सूत्रों के हवाले से कहा गया हैं की दुर्गा खातीवाड़ा डी वोटर (डाउटफुल वोटर) यानी असम के संदिग्ध मतदाता हैं. हैरान करने वाली बात हैं की 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे गए दुर्गा खातीवाड़ा को विदेशी न्याधिकरण कोर्ट (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल कोर्ट) से जून, 2015 ने अपने फैंसले में डी वोटर नहीं पाया और भारतीय नागरिकता के सारे साक्ष्य और दस्तावेजों को जायज़ मानते हुए डी वोटर के आरोप से मुक्त करते हुए वैध भारतीय नागरिक भी घोषित किया था.



दुर्गा खातीवाड़ा खुद हिंदी के शिक्षक हैं और गुवाहाटी मालिगावं के एक सरकारी स्कूल में इन दिनों प्रधान अध्यापक पद पर कार्यरत हैं और 2001 में असमिया लघु कथा लेखक दिनेश शर्मा की गल्पर गाछपेरा का नेपाली अनुवाद ब्रह्मपुत्र का छलहारु के लिए 2002 में साहित्य अकादेमी  पुरस्कार से नवाजे गए हैं. 



असम में नेपाली गोरखा समुदाय से एनआरसी से काटे गए ये कोई एकलौता मामला नहीं हैं , तेज़पुर जिले के चांदमारी में रहने वाले असम आंदोलन के प्रथम गोरखा शहीद वैजयंती देवी के परिवार की बहू का नाम भी इस लिस्ट में काटे जाने से असम गोरखा सम्मलेन ने नाराजगी ज़ाहिर की हैं. असम गोरखा सम्मलेन के अध्यक्ष और भाजपा के तेज़पुर से पूर्व सांसद राम प्रसाद शर्मा ने एनआरसी और असम के बॉर्डर पुलिस पर जान बूझकर नेपाली समुदाय से नाता रखने के कारण नेपाली लोगों को परेशान करने का आरोप लगाया.



असम गोरखा सम्मलेन के अध्यक्ष राम प्रसाद शर्मा ने भारत और नेपाल सरकार के 1951 की एक संधि का हवाला देते हुए बताया की गोरखाओं की भारत की रक्षा के लिए सेना में भी शामिल करने की नियम हैं और गोरखाओं ने हमेशा भारत की रक्षा के लिए कुर्बानियों दी हैं और 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अखिल असम छत्र संघठन (आसू) के बीच हुए असम एकॉर्ड के अनुसार केवल बांग्लादेशी नागरिकों के शिनाख्त और खदेड़ने के मसौदे पर पर ही भारतीय नागरिकता के पहचान के लिए 24 मार्च 1971 का डेडलाइन तय किया गया था. इसमें नेपाल से 1971, 24 मार्च के बाद भी असम में आये नागरिकों पर असम एकॉर्ड लागू नहीं होती हैं. 


बता दें की असम में अवैध रूप से रह रहें बांग्लादेशी नागरिकों की शिनाख्त और वापस बांग्लादेश को सुपुर्द करने के लिए असम आंदोलन 1979 से 1984 तक 6 वर्ष असम छात्र संगठन (आसू) ने किया था. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ 1985 में आसू के तब के अध्यक्ष प्रफुल्ला कुमार म्हणता के नेतृत्व में असम समझौता पर आम सहमति के हस्ताक्षर की गई थी की 1971 के 24 मार्च मध्यरात्रि के बाद असम में रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की शिनाख्त और वापस बांग्लादेश सुपुर्द की जाएगी.


हालांकि चौकाने वाली बात हैं कि बांग्लादेश सरकार से कोई भी प्रतिनिधि इस समझौते ना तो शामिल था और ना ही आज तक भारत सरकार और बांग्लादेश के बीच डेपोर्टेशन ट्रीटी (प्रत्यार्पण संधि) हुई है. ऐसे में अगर 31 जुलाई के बाद जिन नागरिकों को अवैध भारतीय नागरिक पाया जायेगा यानी जिनकी पहचान बांग्लादेशी नागरिक के तौर पर पहचान की जाएगी, उन्हें डिटेंशन कैंप में रहते हुए फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल कोर्ट का दरवाजा खट खटाने का मौका तो जरूर मिलेगा पर इसके बाद भी अगर ऐसे तमाम नागरिक अवैध भारतीय नागरिक पाए गए तो क्या इनकी वापसी बांग्लादेश हो पाएगी?


सबसे दिलचस्प अब ये बात सामने आई हैं कि 1971, 24 मार्च के बाद बांग्लादेश से आये अवैध नागरिकों की शिनाख्त के लिए रखी असम समझौते के तहत मानी गई तारीख असम में नेपाली मूल के लोगों पर लागू ही नहीं होती हैं और अगर ये तथ्य सही हैं तो फिर एनआरसी के प्रक्रिया पे सवालिया निशाान उठना गैर वाजिब नहीं हैं.


बता दें कि असम में हाल ही में एनआरसी के अतिरिक्त ड्राफ्ट से काटे गए नेपाली मूल लोगों में से साहित्य अकादेमी अवार्ड विनर दुर्गा खातीवाड़ा और उनके परिवार को अब ये डर सताया जा रहा हैं की अगर 31 जुलाई 2019 तक इनके नाम को फाइनल एनआरसी ड्राफ्ट में शामिल नहीं की जाती हैं तो इन्हें घोषित विदेशियों के लिए बनाये गए डिटेंशन कैंप में भेज दिए जाएंगे.


दुर्गा  खातीवाड़ा और असम गोरखा सम्मलेन ने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश  के अलावा असम के मुख्यमंत्री और एनआरसी के राज्य संयोजक आईएएस अधिकारी प्रतीक हजेला से पुनः सारे दस्तवाजें के साथ अपील करने की बात कही हैं और उसके लिए 31 जुलाई तक इंतज़ार करना होगा.