विष्णु शर्मा/जयपुर: लोगों को न्याय देने वाले कोर्ट खुद न्याय के लिए तरस रहे हैं. दरअसल कोर्ट और जजों के आवासीय भवनों के लिए जमीनों के एक दर्जन से ज्यादा मामले सरकारी दांवपेच में उलझे हुए हैं. इन मामलों को सुलझाने के लिए मुख्य सचिव स्तर पर भी प्रयास हो चुके हैं.


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राजस्थान में पिछले दिनों बड़ी संख्या में नए कोर्ट खोले गए. इन कोर्ट को स्थापित करने के लिए भवन और जजों के लिए आवासीय परिसर की जरूरत महसूस की गई. इसके बाद जिला प्रशासन की ओर से कोर्ट भावनाओं और अधिकारियों के आवास के लिए जमीन आवंटित की गई. 


वहीं, इनमें कई जगह कोर्ट भवन और अधिकारियों की आवास बन गए. जबकि एक दर्जन से ज्यादा जगह मामले जमीनों आवंटन में ही अटक गए. कहीं जिला प्रशासन की मंजूरी नहीं मिली, कहीं वन विभाग के दांव पेच में अटक गया मामला, कहीं राज्य सरकार स्तर पर एनओसी नहीं मिल पाई.


साथ ही, कोर्ट भवन और जजों के आवासीय परिसर को लेकर 17 जनवरी 2019 को आदेश भी दिया. इसके बाद कोर्ट बिल्डिंगों एवं न्यायिक अधिकारियों के आवास के लिए भूमि चिह्निकरण और आवंटन करने के संबंध में मुख्य सचिव डीबी गुप्ता की अध्यक्षता में 4 सितम्बर को बैठक भी हो चुकी है. बैठक में मुख्य सचिव ने अधिकारियों को उनके विभागों में अटके कोर्ट और न्यायिक अधिकारियों के आवासीय जमीनों के मामले तुरन्त सुलझाने के निर्देश दिए.


मुख्य सचिव ने निर्देश दिया है कि कोर्ट बिल्डिंगों और जजों के आवासीय भवनों के लिए प्रस्तावित भूमि जिस विभाग के अधीन आवंटित हो चुकी है. यदि उक्त विभाग को पहले यह जमीन निशुल्क आवंटित की गई तो उसे निशुल्क ही प्राप्त किया जा सकता है. यदि पहले यह जमीन संबंधित विभाग ने शुल्क देकर ली है तो उसे वहां की  वर्तमान डीएलसी की दर के आधे मूल्य में प्राप्त की जा सकती है. ग्रामीण क्षेत्र में डीएलसी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.