पटना: बिहार में अबकी बार विधानसभा चुनावों में RJD के 15 साल बनाम JDU 15 साल की जंग थी. लोगों को 'जंगलराज' और 'सुशासन' के बीच में चुनाव करना था.


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बिहार में जोरदार रही 'का बा-सब बा' की जंग
चुनाव में एक ओर 'बिहार में का बा' का मुद्दा था, तो दूसरी ओर 'बिहार में सब बा' का दावा था. इस जंग में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को सबसे आगे मान रहे थे. बिहार में चुनाव प्रचार के हर दौर में नीतीश कुमार ने अपने सुशासन की दुहाई दी और जनता से समर्थन मांगा. लेकिन जमीनी हकीकत का अहसास उन्हें शायद चरण दर चरण और रैली दर रैली होने लगा था. तभी तो आखिरी चरण में नीतीश कुमार ने अपना आखिरी दांव खेला.


नीतीश ने चला था आखिरी दांव
नीतीश कुमार ने तीसरे चरण के चुनाव से पहले रैली को संबोधित करते हुए कहा कि ये उनका आखिरी चुनाव है और अंत भला तो सब भला. नीतीश कुमार के इस बयान के आते ही राजनीतिक पंडितों ने इसके मायने तलाशने शुरू कर दिए. किसी ने इसे आखिरी चरण से जोड़ा तो कोई उनके संन्यास का ऐलान करने लगा. वहीं कईयों को इसमें सहानुभूति वाली सियासत नज़र आई. उधर विपक्ष ने इस बयान को अपनी कामयाबी बताते हुए लोगों से नीतीश को रिजेक्ट करने की मांग की. 


तेजस्वी के मुद्दे पड़ गए नीतीश पर भारी
RJD नेता तेजस्वी यादव ने बिहार में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया. इसके साथ ही नीतीश कुमार को 'थका हुआ' बताकर लोगों से नौजवानों की सरकार लाने की अपील की. कोरोना की वजह से विभिन्न राज्यों से बिहार के मजदूरों के पलायन का मुद्दा भी नीतीश पर भारी पड़ा. यही वजह रही कि  नीतीश की अगुवाई वाले एनडीए को महा एक्जिट पोल में तीन अंकों तक भी पहुंचना नसीब नहीं हुआ. उसे एक्जिट पोल में 100 से भी कम सीटें मिलती दिख रही हैं. 


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JDU को अब भी जीत की उम्मीद
लेकिन पार्टी को अब भी भरोसा है कि बिहार में उन्हीं की सरकार बनेगी. नीतीश को उम्मीद है कि उनका मुख्यमंत्रित्व काल आगे भी जारी रहेगा. उनकी यह उम्मीद कितनी पूरी होगी, इसका पता 10 नवंबर को चलेगा. जब बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजे सामने आएंगे. 


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