ZEE जानकारीः शिमला में जल संकट, देश के लिए खतरे की घंटी है
भारत के जल-संसाधन मंत्रालय के मुताबिक देश के 13 राज्यों के 300 ज़िलों में पीने लायक पानी की कमी है. इसीलिए हम ये कह रहे हैं कि भारत में पानी के विश्वयुद्ध की शुरुआत हो चुकी है.
अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा, और ये विश्वयुद्ध अब शुरू हो चुका है. चौंकिए नहीं, क्योंकि आपने हमेशा पानी को हल्के में लिया है. अपने जीवन को ठीक से जीने के लिए आपको हमेशा पानी मिलता आया है और आपने जाने अनजाने में उसे बर्बाद भी किया होगा. ऐसा करते हुए आपने कभी ये सोचा ही नहीं कि अगर एक दिन पानी आना बंद हो गया तो क्या होगा. शिमला के लोग आजकल सिर्फ पानी के बारे में सोच रहे हैं.
शिमला, हिमाचल प्रदेश की राजधानी है . शिमला देश का बड़ा और पसंदीदा पर्यटन स्थल है . ब्रिटिश भारत में शिमला को अंग्रेज़ों की Summer Capital का दर्जा हासिल था . आज भी गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए हज़ारों-लाखों की संख्या में लोग शिमला जाते हैं . लेकिन अब वहां के लोग एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. शिमला में पानी के सभी प्राकृतिक स्रोत लगातार सूख रहे हैं. प्राकृतिक स्रोत का मतलब होता है - वो जगह जहां पर पानी प्राकृतिक रूप से इकट्ठा होता है... जैसे...नदियां, तालाब, कुआं और बावली . शिमला में इन सभी जगहों पर पानी करीब-करीब खत्म ही होने वाला है . ये देश के लिए एक बहुत बड़ी घटना भी है और चेतावनी भी.
आपको याद होगा, हमने आपको South Africa के Capetown शहर के बारे में बताया था, जहां पर पानी का संकट इतना बड़ा हो गया था कि पानी के खत्म होने का दिन तय कर दिया गया था. वहां 16 अप्रैल 2018 के दिन को Day Zero कहा गया था. हालांकि किस्मत अच्छी थी कि Capetown में बारिश हो गई, जिसकी वजह से वहां Day Zero की तारीख, वर्ष 2019 तक टल गयी है. लेकिन जल संकट अब भी बना हुआ है. केपटाउन की तरह अब शिमला में भी Day Zero जैसे हालात बनने वाले हैं .
Capetown के जलसंकट का DNA टेस्ट करते हुए हमने पूरे देश को सावधान किया था . और दुख की बात ये है कि आज हमारी ये आशंका सही साबित हो गई. वैसे भारत में ये सिर्फ शिमला की तकलीफ नहीं है . देश के कई हिस्सों में पानी के लिए खूनी संघर्ष हो रहा है . इन तस्वीरों पर गौर कीजिए ये किसी गांव-देहात की तस्वीरें नहीं हैं.. पानी के लिए ये युद्ध, ये बहस, ये छीना-झपटी, देश की राजधानी दिल्ली में हो रही है. यहां के लोगों ने हमें बताया है कि पानी को लेकर यहां ज़बरदस्त झगड़े होते हैं और कई बार खून भी बहता है .
यहां के लोगों के चेहरे पर गुस्सा देखकर शायद आप भी चिंतित हो गये होंगे . और सोच रहे होंगे कि अगर किसी दिन आपके आसपास ऐसे हालात बन गये तो आप क्या करेंगे ?शिमला और दिल्ली के अलावा, मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले की तस्वीरें भी चौंकाने वाली हैं . डिंडोरी में पानी की तलाश में लोग कुएं के अंदर उतर रहे हैं . महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालकर कुएं के अंदर जा रही हैं . भूमिगत जल का स्तर कम होने की वजह से यहां कुएं पूरी तरह सूख चुके हैं. लेकिन इस सूखे हुए कुएं की सतह पर मौजूद कीचड़ जैसे गंदे पानी को भी लोग बर्तनों की मदद से बाल्टी में भर रहे हैं और इसी पानी से लोग अपनी प्यास बुझा रहे हैं .
पानी की कमी से देश में किस तरह के संकट आते हैं . इसकी कुछ तस्वीरें हरियाणा के पानीपत में नज़र आ रही हैं . वहां में यमुना नदी पूरी तरह सूख चुकी है . जिस जगह से हमारे संवाददाता ने Ground Report की है वो कोई खेल का मैदान नहीं है बल्कि यमुना नदी का River Bed है . यानी ये वो जगह है जहां पर यमुना नदी का पानी होना चाहिए . लेकिन यहां यमुना नदी एक छोटे से तालाब के रूप में नज़र आ रही है . इस जगह का धार्मिक महत्व भी है . अंतिम संस्कार के बाद बची हुई राख को लोग यमुना नदी के जल में प्रवाहित करते हैं . लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष मिलता है . लेकिन यहां तो नदी ही मरणासन्न नज़र आ रही है . लोग नदी की रेत में ही अस्थियों और राख को दबा रहे हैं . उन्हें उम्मीद है कि जब यमुना नदी का पानी आएगा तो सगे-संबंधियों को मोक्ष मिलेगा.
हमारे महान पूर्वजों ने हर प्राचीन परंपरा को प्रकृति से जोड़ा था. ताकी लोगों को प्रकृति के महत्व का अहसास होता रहे . पुराने ज़माने से नदियों की आरती होती है, पेड़ों की पूजा होती है. लेकिन ये संस्कार भी प्रकृति के संतुलन को बिगड़ने से रोक नहीं पाए. हिमाचल प्रदेश में कुल 30 ऐसे शहर हैं जहां पानी के प्राकृतिक स्रोत लगभग सूखते जा रहे हैं . लेकिन शिमला की स्थिति इसलिए सबसे बुरी है क्योंकि ये हिमाचल प्रदेश का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है . वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक शिमला शहर की आबादी 1 लाख 69 हज़ार है जबकि अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी में इस शहर को सिर्फ 25 हजार लोगों के लिए बनाया था .
आम तौर पर हिमाचल प्रदेश में नवंबर से जनवरी के महीने में बर्फबारी होती है . जब गर्मियों में ये बर्फ पिघलती है तो शिमला के प्राकृतिक स्रोत अपने आप पानी से भर जाते हैं . शिमला की जलवायु की एक ख़ास बात ये है कि यहां तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने पर बारिश होती है . लेकिन शिमला में पानी का संकट इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि इस बार हिमाचल प्रदेश में सिर्फ एक दिन के लिए ही बर्फबारी हुई.
शिमला को एक दिन में 3 करोड़ 20 लाख लीटर पानी की जरूरत होती है. और गर्मियों के मौसम में जब पर्यटकों की संख्या बढ़ती है तो ये ज़रूरत 4 करोड़ 50 लाख लीटर प्रति दिन तक पहुंच जाती है. वहां के प्राकृतिक स्रोतों में जो पानी इकठ्ठा होता है.. उसे एक बड़े टैंकर में इकट्ठा किया जाता है . और वहीं से पानी को शहर के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाया जाता है . लेकिन अब प्राकृतिक स्रोतों में पानी खत्म होने वाला है . आजकल शिमला के लोगों को सिर्फ 2 करोड़ लीटर पानी प्रति दिन मिल रहा है जो ज़रूरत से करीब आधा है.
नदी और जलवायु के मामले में भारत एक बहुत भाग्यशाली देश है . भारत में साल के 4 महीने बारिश होती है . देश में 10 बड़ी नदियां हैं . और इन नदियों से भी सैकड़ों छोटी-छोटी नदियों का जाल पूरे भारत में बिछा हुआ है . हमारे देश की दो महान नदियों... यानी - गंगा और यमुना का ज़िक्र हमारे देश के राष्ट्रगान जन-गण-मन में भी है. भारत की संस्कृति में जल को वरुण देव की संज्ञा दी गई है . हमारे पूर्वज पानी के महत्व को समझते थे . इसीलिए उन्होंने नदियों की पूजा देवियों की तरह की . बारिश के मौसम में ये नदियां पानी से पूरी तरह भर जाती हैं और देश के 133 करोड़ लोगों को जीवन देती हैं . लेकिन अब मुश्किल ये है कि हमारे देश में बारिश के पानी का संग्रह नहीं हो पा रहा है . ये पानी नदियों के रास्ते बहकर समुद्र में मिल जाता है .
हमारे इतिहास में बार-बार उन राजाओं और सम्राटों की तारीफ़ की गई है जिन्होंने तालाब बनवाए . आज की चकाचौंध वाले आधुनिक युग में लोगों को तालाब का महत्व पता ही नहीं है . जबकि सही बात ये है कि तालाब में इकट्ठा हुआ पानी ही भूमिगत जलस्तर में बढोत्तरी करता है . इसीलिए हमारे पूर्वजों ने तालाब और सरोवर बनवाने पर बहुत ज़ोर दिया था . लेकिन अब हमारे देश में तालाबों को मिट्टी से पाटकर इमारतें बनाई जा रही हैं . जिससे भारत में भूमिगत जल का स्तर लगातार बहुत तेज़ी से घट रहा है .World Bank की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 तक भारत के 21 शहरों में भूमिगत जल पूरी तरह खत्म हो जाएगा .
World Resources Institute की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 54 प्रतिशत ज़मीन में भूमिगत जल का स्तर बहुत तेज़ी से घट रहा है . वर्ष 2030 तक भारत को डेढ़ लाख करोड़ Cubic meter पानी की ज़रूरत होगी . अभी भारत को 74 हज़ार करोड़ Cubic meter पानी हर वर्ष मिल रहा है . Central Ground Water Board के आंकड़ों और Pre-monsoon water level data के विश्लेषण से ये पता चलता है कि भारत के 61 प्रतिशत कुओं का जलस्तर बहुत कम हो चुका है .
भारत के जल-संसाधन मंत्रालय के मुताबिक देश के 13 राज्यों के 300 ज़िलों में पीने लायक पानी की कमी है. इसीलिए हम ये कह रहे हैं कि भारत में पानी के विश्वयुद्ध की शुरूआत हो चुकी है. पानी के बिना भारत का गला सूख रहा है और यहां के लोगों को और सिस्टम को इसका एहसास तक नहीं है. अगर ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन आपके घर में भी पानी आना बंद हो जाएगा. उस दिन आप क्या करेंगे ? आज हम इस सवाल के साथ आपको छोड़ रहे हैं. इसके बारे में सोचिएगा. (यानी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान)