Strength and Weakness of Mig 21: भारतीय वायु सेना का फाइटर जेट MIG-21 बायसन 28 जुलाई की रात को राजस्थान के बाड़मेर में क्रैश हो गया था. इस दुर्घटना में विंग कमांडर मोहित राणा और Flight Lieutenant अद्वितीय बल शहीद हो गए. वायु सेना के इन दोनों पायलट ने Training Sortie के लिए राजस्थान के उत्तरलाई एयरबेस से उड़ान भरी थी और वो इस दौरान एक ट्रेनर एयरक्राफ्ट उड़ा रहे थे. ये एयरक्राफ्ट था मिग-21 बायसन. वायु सेना में Flight Training या Training Sortie के लिए ट्रेनर एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया जाता है. 


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अंतिम वक्त में नहीं खुल पाया पैराशूट


इस दुर्घटना में जो मिग-21 बायसन क्रैश हुआ, वो 2 सीटों वाला लड़ाकू विमान था. आशंका है कि ये दुर्घटना विमान के इंजन में आग लगने की वजह से हुई. इस हादसे के दौरान दोनों पायलट ने खुद को एयरक्राफ्ट से इजेक्ट करने की भी कोशिश की लेकिन उनका पैराशूट खुल नहीं पाया. इसके बाद विमान एक जोरदार धमाके के साथ नीचे जा गिरा. विमान के मलबे से काफी दूर दोनों पायलट का पार्थिव शरीर मिला. बड़ी बात ये है कि इस हादसे में आम नागरिकों की भी जान जा सकती थी.


दरअसल, जब फाइटर जेट (MIG-21) में आग लगी, उस समय ये फाइटर जेट उत्तरलाई एयरबेस से लगभग 40 किलोमीटर दूर बाड़मेर के भीमड़ा गांव के ऊपर था. इस गांव में ढाई हजार लोग रहते हैं. यानी अगर ये फाइटर जेट इस गांव के ऊपर क्रैश हुआ होता तो ये हादसा काफ़ी बड़ा हो सकता था.



ढाई हजार लोगों की बचाई जान


विमान उड़ा रहे विंग कमांडर मोहित राणा और Flight Lieutenant अद्वितीय बल के सामने दो ही रास्ते थे. या तो वो तुरंत विमान से खुद को इजेक्ट कर उसे ढाई हजार की आबादी वाले गांव पर गिरने देते या वो अपनी जान दांव पर लगा कर उसे हर हाल में गांव से दूर ले जाते. मोहित राणा और अद्वितीय बल ने जोखिम उठाया. वो इस विमान को गांव से लगभग दो किलोमीटर दूर एक ऐसे क्षेत्र में ले गए, जो पूरी तरह खाली था. शायद इसी वजह से वो समय पर खुद को विमान से इजेक्ट भी नहीं कर पाए.


हालांकि ये इस तरह की पहली घटना नहीं है. जनवरी 2021 से लेकर अब तक 6 मिग-21 (MIG-21) विमान दुर्घटना का शिकार हो चुके हैं, जिनमें कुल पांच पायलट शहीद हुए हैं. इन विमानों को हमारे देश में फ्लाइंग कॉफिन यानी आसमान में उड़ते हुए ताबूत भी कहा जाता है. ऐसा क्यों कहा जाता है, अब आप इसकी पूरी कहानी समझिए.


करीब 60 साल पुराने हैं मिग-21


1960 के दशक में भारत में Chevrolet कम्पनी की एक कार लॉन्च हुई थी, जिसका नाम था 'Impala' (इम्पाला). तब इस कार को लेकर हमारे देश में काफी क्रेज था. लेकिन समय बदला और फिर नई नई गाड़ियां आती चली गईं. आज आपके पास भी नए Model वाली कोई नई गाड़ी या मोटरसाइकल होगी. लेकिन सोचिए 50-60 साल पहले खरीदी गई कोई गाड़ी आपको आज भी इस्तेमाल करनी पड़ती तो क्या होता? शायद ये गाड़ी हर समय खराब रहती, आए दिन उसमें कोई ना कोई परेशानी आती और ज्यादा सम्भावना ये है कि वो गाड़ी हर समय खड़ी रहती. यानी 50- 60 साल पुरानी गाड़ी आज भी उसी स्थिति में नहीं चलाई जा सकती है. यही बात मिग सीरीज के लड़ाकू विमानों पर लागू होती है.


पूर्व एयरफोर्स चीफ बीएस धनोआ ने भी वर्ष 2019 में इस बात का ज़िक्र किया था. उन्होंने कहा था कि भारतीय वायुसेना 44 साल पुराना मिग-21 विमान (MIG-21) उड़ा रही है, जबकि कोई इतने समय तक अपनी कार भी नहीं चलाता है. राजस्थान में परसों जिस दुर्घटना में देश ने अपने दो वीर जवानों को खो दिया, वो इसी सीरीज के विमान को उड़ा रहे थे.


वर्ष 1963 में मिली थी पहली खेप


मिग सीरीज के लड़ाकू विमान पिछले 50 वर्षों से भारतीय वायु सेना की रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं. भारतीय वायु सेना को वर्ष 1963 के बाद से 850 से अधिक मिग लड़ाकू विमान मिल चुके हैं. यही नहीं ये विमान 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध, फिर 1971 के युद्ध, और फिर 1999 के कारगिल युद्ध में देश के लिए निर्णायक भूमिका निभा चुके हैं.


इन विमानों की उम्र भले 50 वर्ष से ज्यादा हो गई है लेकिन आज भी एक अपग्रेडेड मिग 21 विमान आसमान में किसी भी आधुनिक विमान को टक्कर दे सकता है. इसका सबूत पूरी दुनिया वर्ष 2019 में देख चुकी है, जब भारतीय वायु सेना के Wing Commander अभिनंदन वर्धमान ने एक मिग-21 बायसन से पाकिस्तान के पांचवीं पीढ़ी के आधुनिक विमान F-16 को मार गिराया था.


संक्षेप में कहें तो मिग सीरीज के इन विमानों (MIG-21) की लड़ने की क्षमता आज भी बरकरार है और ये अचूक है लेकिन Safety के मामले में इस विमान का Record ज्यादा अच्छा नहीं है. इसे आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.


आधे विमान अब तक हो चुके हैं क्रैश


वर्ष 2012 तक आते आते भारत के 872 मिग विमानों के बेड़े में से लगभग आधे विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके थे. वर्ष 2003 से 2013 के बीच यानी 10 वर्षों में 38 मिग 21 विमान क्रैश हो गए. अगर आज से पिछले 10 वर्षों की बात करें तो इस समय अवधि में भी 20 मिग 21 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए. महत्वपूर्ण बात ये है कि वर्ष 1970 से लेकर आज तक भारतीय वायु सेना के 180 से अधिक Pilot मिग विमानों की उड़ान के दौरान शहीद हो चुके हैं. इसके अलावा इन दुर्घटनाओं में 40 नागरिकों की भी जान गई है. मिग सीरीज विमानों की दुर्घटनाओं के पीछे पांच कारण माने जाते हैं.


इन 4 वजहों से बढ़ रहे हैं हादसे


पहला कारण- मिग सीरीज़ के विमानों (MIG-21) की ताकत ही उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है. जैसे इसकी स्पीड. आसमान में ये विमान 2500 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से उड़ सकते हैं, जो इसे सबसे तेज फाइटर जेट्स की श्रेणी में लाकर खड़ा करते हैं. इसके अलावा लैंडिंग के समय भी मिग विमानों की स्पीड लगभग 350 किलोमीटर प्रति घंटा होती है, जो काफी अधिक है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इसी स्पीड की वजह से इस विमान को ऑपरेट करना बहुत मुश्किल हो जाता है और दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है.


दूसरा कारण है इस सीरीज के विमानों का डिज़ाइन. दरअसल एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इस विमान की Canopy आकार में बहुत छोटी है. Canopy असल में विमान के उस हिस्से को कहते हैं, जहां बैठ कर Pilot विमान को ऑपरेट करता है. कहा जाता है कि आकार में इस हिस्से के छोटा होने से कई बार Pilot को रनवे नहीं दिख पाता है. ऐसे में चूंकि विमान की स्पीड काफी ज्यादा होती है. शायद इस वजह से भी कई बार दुर्घटनाएं होती हैं.


तीसरा कारण है इन विमानों की लम्बी उम्र. भारत को वर्ष 1963 में मिग सीरीज का पहला विमान मिला था लेकिन कई दशकों के बाद भी ये विमान भारतीय वायु सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. हालांकि कई मिग विमान (MIG-21) ऐसे भी हैं, जो रिटायर हो गए हैं और आज Museum और ढाबों की शोभा बढ़ा रहे हैं. ऐसा ही एक मिग 21 विमान हरियाणा के रोहतक में एक ढाबे के बाहर खड़ा है. 


चौथा कारण है मिग विमानों को बनाने वाला Russia भी वर्ष 1990 से इनका निर्माण नहीं कर रहा है. इसलिए इन विमानों को सेवा में बनाए रखने के लिए भारत को Israel और दूसरे देशों से इसके Spare Parts लेने पड़ते हैं. ऐसे में दूसरी कम्पनियों के Spare Parts इस्तेमाल करने से भी दुर्घटनाओं की सम्भावना बढ़ जाती है.


आखिरी कारण ये है कि मिग सीरीज के विमान Single Engine वाले लड़ाकू विमान हैं, जिसकी वजह से जब उड़ान के दौरान इंजन में खराबी होती है तो इसे सपोर्ट करने के लिए दूसरा इंजन विमान में नहीं होता और यही वजह है कि दुर्घटनाओं को रोकना मुश्किल होता है.


भारतीय वायुसेना के लिए मिग-21 जरूरी क्यों


हालांकि आज ये समझना भी ज़रूरी है कि 50-60 वर्ष पुराने मिग लड़ाकू विमान (MIG-21) भारतीय वायु सेना में अपनी सेवाएं आज भी क्यों दे रहे हैं? तो इसका सबसे बड़ा कारण है लाल फीताशाही. असल में मिग विमानों के बेड़े को तेजस विमानों से रिप्लेस करना था, जो भारत में ही विकसित हो रहे हैं. लेकिन इस विमान को विकसित करने में वर्षों की नहीं बल्कि दशकों की देरी हुई.


भारतीय वायु सेना को इस समय 42 Squadron की ज़रूरत है. एक Squadron में 18 फाइटर जेट होते हैं. Two Front War यानी अगर भारत एक समय में पाकिस्तान और चीन दोनों से युद्ध लड़ता है तो उसे 42 Squadron की जरूरत होगी. यानी कम से कम 756 विमान चाहिए होंगे. लेकिन हम इस संख्या से अभी पीछे हैं.


इन तमाम स्थितियों को देखते हुए ही भारत ने फ्रांस से Rafale की 2 Squadrons Fly Away Conditions में खरीदी हैं. Fly Away Conditions का मतलब है कि विमान पूरी तरह से तैयार है और उसका इस्तेमाल तत्काल शुरू हो सकता है.


चीन-पाकिस्तान से भिड़ने के लिए भारत की तैयारी


36 Rafale विमानों के अलावा भारत को 40 तेजस विमान भी मिलने वाले हैं. हालांकि इसके बावजूद अनुमान है कि इस साल तक भारतीय सेना के पास 29 Squadrons ही उपलब्ध हो पाएंगी. जबकि Two Front War में 42 Squadrons चाहिए होंगी.


अभी भारतीय वायु सेना के पास मिग-21 विमानों की चार Squadron हैं. जो श्रीनगर, उत्तरलाई, सूरतगढ़ और नाल में तैनात हैं. इन्हें अगले तीन वर्षों में रिटायर करने का लक्ष्य रखा गया है. यानी वर्ष 2025 तक वायु सेना से सभी मिग-21 विमान रिटायर हो जाएंगे.


इसकी शुरुआत सितम्बर से होगी. इसी साल सितम्बर महीने में श्रीनगर एयरबेस पर तैनात मिग-21 विमानों (MIG-21) की Squadron रिटायर होने वाली है. यहां हम आपको ये बता दें कि इन सभी Squadrons में मिग-21 के Upgraded बायसन एयरक्राफ्ट हैं.


बड़ी बात ये है कि मौजूदा दुर्घटना में हमारे देश ने अपने दो जाबांज वायु सैनिकों को खोया है. इनमें विंग कमांडर मोहित राणा हिमाचल प्रदेश के मंडी के रहने वाले थे. वो दिसम्बर 2005 में भारतीय वायु सेना में शामिल हुए थे और अपनी Squadron के फ्लाइट कमांडर भी थे. मोहित राणा को बेहद अनुभवी और कुशल पायलट माना जाता था. वो किसी भी तरह की विषम परिस्थिति में विमानों को बेहद आसानी के साथ संभाल लेने में माहिर माने जाते थे. इसी तरह Flight Lieutenant अद्वितीय बल जम्मू के रहने वाले थे और उनकी उम्र सिर्फ 26 साल थी.


पायलट को खोना वायुसेना के लिए ज्यादा दुखदाई


आपको यहां ये भी समझना चाहिए कि किसी भी देश की वायु सेना के लिए उसके फाइटर जेट से ज्यादा कीमती उसके पायलट होते है क्योंकि एक फाइटर पायलट को तैयार करने में वर्षों की मेहनत और करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं. इसे आप अमेरिका के उदाहरण से समझ सकते हैं. अमेरिका की वायु सेना एक पायलट को तैयार करने पर 45 से 87 करोड़ रुपये तक खर्च करती है. इसी तरह भारतीय वायु सेना में एक फाइटर पायलट को पहले दो साल की कड़ी ट्रेनिंग लेनी होती है और फिर इसके बाद उसे दो साल और Flight Training Observation में रखा जाता है. यानी एक पायलट को खोने का मतलब है वायु सेना की शक्ति का कम होना. इसके अलावा ऐसी दुर्घटनाओं से वायु सैनिकों के मनोबल पर भी गहरा असर पड़ता है और शहीदों के परिवार जो खोते हैं, उसका तो कोई हिसाब ही नहीं दिया जा सकता.


जब भी देश में कोई मिग-21 विमान (MIG-21) क्रैश होता है तो अक्सर इसी तरह की बहस होती है कि हमारे वायु सैनिक कब तक इन विमानों को उड़ाते रहेंगे. हमें लगता है कि अब इस बहस का समय जा चुका है और इस पर वायु सेना को कड़े फैसले लेने चाहिए. यानी जो सूरत है, वो बदलनी ही चाहिए.


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