Supreme Court Of India: सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर जस्टिस' पर सख्त रुख अपनाते हुए इसे गंभीर सवालों के घेरे में खड़ा किया है. एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति के केवल आरोपी होने मात्र से उसके घर पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता. अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपी का दोष साबित होता है या नहीं, यह तय करना अदालत का काम है, और उसके मुताबिक सज़ा देना भी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है. 


कानून के शासन वाले देश में ऐसा नहीं.. 


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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत जैसे कानून के शासन वाले देश में किसी व्यक्ति की गलती की सज़ा उसके परिजनों के खिलाफ कार्रवाई करके या उसके घर को ढहाकर नहीं दी जा सकती. यह टिप्पणी उस समय आई जब अदालत में एक ऐसे मामले पर सुनवाई हो रही थी, जहां आरोपी के खिलाफ कार्रवाई के तौर पर उसका घर तोड़ दिया गया था.


नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता..


सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसी बुलडोजर कार्रवाई को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इस तरह की कार्रवाई को होने देना कानून के शासन पर बुलडोजर चलाने जैसा होगा. कोर्ट ने यह टिप्पणी गुजरात के जावेद अली नामक शख्स की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें याचिकाकर्त्ता का कहना था कि परिवार के एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के कारण म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने उनके घर को ढहाने की धमकी दी है. 


संबंधित पक्षों को नोटिस


कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया और संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है. बता दें कि बीते कुछ समय से कई राज्यों में ऐसे मामले सामने आए जब आरोपी या दोषी पाए गए शख्स पर स्थानीय प्रशासन ने अमुक के घरों पर बुलडोजर से कार्रवाई कर दी. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्यों में ये मामले खूब आए हैं. अब गुजरात में बीच ऐसी कार्रवाई देखने को मिल रही है. देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद ऐसी कार्रवाई रुकती है या नहीं.