Supreme Court on Morbi Bridge Collapse: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुजरात के मोरबी पुल हादसे (Morbi Bridge Collapse) को बड़ी त्रासदी बताते हुए हाईकोर्ट (Gujarat High Court) से कहा है कि वो इस मसले पर नियमित अंतराल पर सुनवाई करें, ताकि इसके गुनाहगारों पर कानून का शिंकजा कसा जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की पहले से सुनवाई कर रहे गुजरात हाईकोर्ट से कहा कि वो इस मसले से जुड़े कुछ और अहम पहलुओं पर भी विचार करें.


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याचिका में इन पहलुओं पर कोर्ट का ध्यान


जांच के लिए स्वतंत्र आयोग का गठन हो. नगरपालिका के अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए. ब्रिज के रखरखाव की जिम्मेदारी वाली कंपनी के अधिकारियों की जवाबदेही तय हो. उनकी गिरफ्तारी हो और पीड़ित परिवार को उचित मुआवजा मिले. हादसे में अपने भाई बहन को खोने वाले दिलीप चावड़ा के वकील गोपाल शंकर नारायणन ने इन पहलुओं पर कोर्ट का ध्यान दिलाया था.  


कोर्ट में दायर याचिकाओं में मांग


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में इस मसले को लेकर दो याचिकाएं दायर हुई थी. वकील विशाल तिवारी की ओर से दायर याचिका में हादसे की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग का गठन की मांग की गई थी. इसके अलावा मांग की गई थी कि तमाम राज्य कमेटी का गठन करें, जो अपने यहां पुराने स्मारकों/पुलों के जोखिम का आकलन करें, ताकि सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. वहीं, दूसरी याचिका इस हादसे में परिजनों को खोने वाले दिलीप भाई चावड़ा की ओर से दायर की गई थी.


नियमित सुनवाई की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट


पीड़ित परिवार की ओर से पेश वकील गोपाल शंकर नारायणन ने कहा कि इस मसले पर हाईकोर्ट तीन बार सुनवाई कर रहा चुका है,लेकिन अभी तक हाईकोर्ट ने नगरपालिका अधिकारियों की जवाबदेही तय करने, अजंता मैन्युफैक्चरिंग के बड़े लोगों पर कार्रवाई जैसे पहलुओं को लेकर अपना आदेश नहीं दिया.


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी कहा कि इस हादसे में 141 लोगों की मौत हुई है. इनमें 47 बच्चे शामिल हैं. ऐसे हादसे के लिए जिम्मेदार कंपनी, अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि हाईकोर्ट नियमित अंतराल पर सुनवाई करें.
 
याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने को कहा


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिकाकर्ताओ से कहा कि चुकि इस मसले पर गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) पहले से ही स्वंत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है. लिहाजा याचिकाकर्ता हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर अपनी बात रख सकते हैं. इसके बावजूद अगर याचिकाकर्ताओं को किसी भी स्टेज पर सुप्रीम कोर्ट के दखल की जरूरत लगती है तो वो सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते है.


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