Supreme Court: अगर कोई शख्स बहुत अमीर है तो उसके लिए शादी और तलाक दोनों ही बहुत महंगे होते हैं. इसकी मिसाल हाल ही में एक भारतीय मूल के अमेरिकी शख्स से मिली है. एक कामयाब आईटी कंसल्टेंसी सर्विस चलाने वाले शख्स ने साल 2020 में अपनी पहली पत्नी को गुजारा भत्ते के तौर पर 500 करोड़ रुपये देने पड़े. इसके बाद इस शख्स को अपनी दूसरी पत्नी को भी 12 करोड़ रुपये देने का आदेश हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिया है.


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शख्स की दूसरी शादी एक साल भी नहीं चली. 31 जुलाई 2021 को उसने दूसरी शादी के की थी लेकिन एक साल होने से पहले ही उसके इस रिश्ते में खटास पैदा हो गई. शादी को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पति की याचिका का जवाब देते हुए दूसरी पत्नी ने कहा कि उसे तलाकशुदा पहली पत्नी के बराबर गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. हालांकि जस्टिस बीवी नागरत्ना और पंकज मिथल की बेंच ने गुजारा भत्ता के मामले में पहली पत्नी के बराबर की मांग और अपने पति के बराबर अपनी संपत्ति की मांग करने की महिला की कोशिश पर नाराजगी जताई.


73 पन्नों का एक बड़ा फैसला लिखते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा,'हमें पार्टियों के ज़रिए दूसरे पक्ष के साथ जायदाद के बराबर के रूप में भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांगने पर गंभीर आपत्ति है. अक्सर देखा जाता है कि पार्टियां अपने जीवनसाथी की संपत्ति, स्थिति और आय को उजागर करती हैं और फिर एक ऐसी रकम मांगती हैं जो उनके जीवनसाथी की संपत्ति के बराबर हो.' उन्होंने पूछा कि जब पति-पत्नी की जायदाद अलग होने के बाद काफी कम हो गई तो ऐसी मांगें क्यों नहीं की गईं? बेंच ने कहा कि भरण-पोषण का कानून अलग हुई पत्नी को अभाव से बचाने, उसकी गरिमा बनाए रखने और सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए है. 


बेंच ने कहा,'कानून के मुताबिक पत्नी को उसी तरह से भरण-पोषण पाने का हक है, जैसा कि वह अपने वैवाहिक घर में साथ रहने के दौरान पाती थी.' बेंच के मुताबिक,'एक बार जब दोनों पक्ष अलग हो जाते हैं तो पति से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह जीवन भर अपनी वर्तमान स्थिति के मुताबिक उसका भरण-पोषण करे. अगर पति सौभाग्य से अलग होने के बाद जीवन में बेहतर कर रहा है तो उससे यह कहना कि वह हमेशा अपनी बदलती हालत के मुताबिक पत्नी की स्थिति बनाए रखे, उसकी अपनी व्यक्तिगत प्रगति पर बोझ होगा.' पीठ ने पूछा,'हमें हैरानी है कि अगर पति अलग होने के बाद कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की वजह से कंगाल हो जाता है, तो क्या पत्नी उसके साथ संपत्ति के बराबर होने की मांग करने को तैयार होगी.'


बेंच ने कहा,'महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथों में सख्त प्रावधान उनके कल्याण के लिए लाभकारी कानून हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने का साधन.'