Supreme Court Bulldozer Action Case: सुप्रीम कोर्ट देश भर में आरोपियों को सज़ा देने के लिए इस्तेमाल हो रहे 'बुलडोजर जस्टिस' पर लगाम कसने  के लिए अपनी ओर से दिशानिर्देश तय करेगा. यह दिशानिर्देश देश भर में लागू होंगे. कोर्ट इनके जरिए सुनिश्चित करेगा कि अवैध निर्माण को हटाए जाने की इजाज़त देने वाले स्थानीय कानूनों का दुरूपयोग ना हो और बुलडोजर कार्रवाई को अंजाम देने में पूरी क़ानूनी प्रकिया का पालन हो.


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निजी संपत्ति पर बुलडोजर कार्रवाई पर अभी रोक रहेगी


कोर्ट ने आज हुई सुनवाई में देश के विभिन्न राज्यों में हो रही बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखते हुए साफ किया कि उसका 17 सितंबर को दिया आदेश फिलहाल बरकरार रखेगा. इस आदेश के मुताबिक देश भर में अभी बुलडोजर कार्रवाई पर रोक रहेगी यानी इस दरम्यान कोर्ट की इजाज़त के बिना किसी की निजी संपत्ति, घर को नहीं ढहाया जाएगा. हालांकि सड़क, फुटपाथ या रेलवे लाइन की जमीन के अतिक्रमण को हटाए जाने पर कोई रोक नहीं है.


'सड़क के बीच किसी धार्मिक स्थल की इजाज़त नहीं'


सुप्रीम कोर्ट ने आज भी सुनवाई के दौरान साफ किया कि लोगों की सुरक्षा सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. अगर सड़क के बीच में कोई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या दरगाह जैसा धार्मिक स्थान भी है तो उसे हटाना होगा. रास्ते के बीच में धार्मिक स्थल की इजाजत नहीं दी जा सकती.


'सज़ा देने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं'


सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि सज़ा देने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं हो सकता है. किसी के घर को इसलिए नहीं ढहाया जा सकता है कि क्योंकि उस घर का कोई शख्स किसी केस में आरोपी या दोषी है.


'कोर्ट के दिशानिर्देश सभी धर्मों के लिए'


सुनवाई के दौरान सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सवाल उठाया कि  ये कहना ग़लत होगा कि बुलडोजर कार्रवाई के ज़रिए सिर्फ धर्म विशेष के लोगों को टारगेट किया जा रहा है. कोर्ट के सामने चुनिंदा घटनाओं का हवाला देते हुए ये तस्वीर पेश करने की कोशिश की गई है.


इस पर जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम सेक्युलर देश में रहते है. जाहिर है कि हमारे दिशानिर्देश पूरे देश के  लिए होंगे. हरेक धर्म को मानने वाले लोगों पर लागू होंगे. हम पहले ही साफ कर चुके हैं कि अगर अतिक्रमण सड़क पर, फुटपाथ पर है तो  उसे हटाने पर कोई रोक नहीं है. अगर अतिक्रमण है तो उस पर कार्रवाई क़ानून के मुताबिक होनी चाहिए. उसके मालिक के धर्म के आधार पर नहीं.


SG तुषार मेहता के सुझाव


कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान याचिककर्ताओं और राज्य सरकारों की ओर पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी ओर से दिशानिर्देश के लिए सुझाव रखें. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि म्युनिसिपल क़ानून के उल्लंघन की सूरत में अवैध निर्माण के मालिक को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजा जाना चाहिए. इसके लिए 10 दिन का वक्त मिलना चाहिए. सिर्फ प्रोपर्टी पर नोटिस चस्पा किया जाना काफी नहीं है. 


सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मेरी चिंता है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि इसका फायदा अवैध निर्माण करने वाले बिल्डर और दूसरे लोग न उठाने लगें. जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अगर मान लिया जाए कि किसी जगह पर दो अवैध ढांचे है ,लेकिन आप किसी एक ही ढांचे को इस आधार पर गिरा रहे हैं  कि उसमे रहने वाला किसी केस में आरोपी है तो फिर आप पर पक्षपाती होकर कार्रवाई करने का सवाल उठेगा ही.


'न्यायिक निगरानी में हो डिमोलिशन'


सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि क़ानून का दुरुपयोग रोकने के लिए ज़रूरी है कि डिमोलिशन की कार्रवाई न्यायिक निगरानी में हो. अवैध निर्माण के मालिक को रजिस्टर डाक के जरिए नोटिस दिया जाना चाहिए.नोटिस और डिमोलिशन के आदेश को पारदर्शिता के लिए ऑनलाइन पोर्टल पर भी डाला जाना चाहिए ताकि बुलडोजर कार्रवाई से प्रभावित होने जा रहे लोगो को समय रहते सूचना दी जा सके. डिमोलिशन की कार्रवाई की वीडियोग्राफी होनी चाहिए.


'महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को बेसहारा छोड़ना ठीक नहीं'


सुप्रीम  कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर डिमोलिशन का आदेश दिया जाता है तो उस पर अमल के लिए वक़्त दिया जाना चाहिए ताकि इस दरमियान वहां पर रहने वाले लोग वैकल्पिक इंतजाम कर सकें.


सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर आशंका जाहिर करते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसे दिशा निर्देश जारी करता है तो ऐसी सूरत में स्थानीय म्युनिसिपल कानून में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है.


इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि कोई अवैध निर्माण है. तब भी उसमें रहने वाले लोगों को वैकल्पिक इंतजाम करने का मौका दिया जाना चाहिए. महिलाओं, बच्चों और बुर्जुग लोगों को सड़क पर यूं बेसहारा छोड़ देना ठीक नहीं. ये किसी को अच्छा नहीं लगेगा.


याचिकाकर्ताओं की आपत्ति


इस केस में विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, सी यू सिंह, संजय हेगड़े, एमआर शमशाद, निज़ाम पाशा ने अपनी दलीलें रखीं. याचिकाकर्ताओ की ओर से आरोप लगाया गया कि विभिन्न राज्यों में चुनिंदा तरीके से टारगेट करके लोगों के घरों को ढहाया जा रहा है. कई केस में तो एफआईआर दर्ज होने के अगले ही दिन उसका घर बुलडोजर से ढहा दिया गया. इसलिए बेहतर होगा कि मनमाने तरीके से हो रही इन कार्यवाही पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपनी ओर से दिशानिर्देश तय करें. 


जमीयत ने मांग की कि कम से कम  60 दिन पहले नोटिस जारी होना चाहिए ताकि इस दरम्यान बुलडोजर कार्रवाई से प्रभावित होने वाले लोग कानूनी राहत के विकल्प आजमा सकें.