EWS Quota: केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नामांकनों में आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले से जनरल और आरक्षित श्रेणियों की सीटों पर उपलब्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. चीफ जस्टिस यू यू ललित की अगुआई वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने एडमिशन और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. संविधान पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस  बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल हैं.


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103वें संविधान संशोधन का बचाव करते हुए केंद्र ने कहा कि ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले से जनरल और रिजर्व्ड कैटिगरी के लोगों के सीटों की कमी नहीं होगी. इससे पहले, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान पीठ को बताया था कि सरकार ने सीट बढ़ाने की मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए हायर सेंट्रल एजुकेशन इंस्टिट्यूट्स को 4,315 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए हैं.


सुनवाई के आखिर में बेंच ने लॉ अफसर से कहा कि वह प्रोफेशनल कोर्स करने वालों के लिए उपलब्ध स्कॉलपशिप का डेटा पेश करें. सातवें दिन की सुनवाई के दौरान जवाब दाखिल करने वाले लॉ अफसर ने कहा कि संसद को कार्रवाई करने के लिए ऐसे आंकड़ों की जरूरत होगी और ये मुद्दे संशोधन की संवैधानिकता को प्रभावित नहीं करेंगे. दूसरी ओर, शिक्षाविद मोहन गोपाल, रवि वर्मा कुमार, पी विल्सन, मीनाक्षी अरोड़ा, संजय पारिख और के एस चौहान सहित वरिष्ठ वकीलों और अधिवक्ता शादान फरासत ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान संशोधन को रद्द करने का अनुरोध किया था.


तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने भी ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा कि क्लासिफिकेशन के आधार पर इकोनॉमिक क्राइटेरिया नहीं हो सकता. और सुप्रीम कोर्ट को इंदिरा साहनी (मंडल) के फैसले पर फिर से विचार करना होगा अगर वह इस आरक्षण को बरकरार रखने का फैसला करता है.


दूसरी ओर, अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने यह कहते हुए संशोधन का बचाव किया कि इसके तहत दिया गया आरक्षण अलग था और इसके लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत कोटा के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई.



 


(इनपुट-PTI)


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