अगर आपके पास बच्चों के साथ यौन शोषण से जुड़ा कोई वीडियो फोन में आया  है या फिर आप से ही गलती से ऐसा कोई वीडियो डाउनलोड हो गया है तो बेहतर होगा कि आप उसे तुरंत डिलीट कर दें. साथ ही पुलिस को इस बारे में तुरंत सूचना दें. अगर आप वीडियो को अपने पास रख रहे हैं या बंद कमरे में भी देख रहे हैं तो भी यह अपराध है.


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सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि बच्चों के यौन अपराध से जुड़ी सामग्री को डाउनलोड होकर अपने पास रखना और उसे देखना भी अपराध है. कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध की परिभाषा में ऐसे वीडियो को बनाना, उसे दूसरे शख्स के पास भेजना या व्यावसायिक इस्तेमाल करना ही शामिल नहीं है, अपने पास रखना भी अपराध है. यानि अगर आप वीडियो को डिलीट नहीं कर रहे है और आपके पास वीडियो है तो ये माना जाएगा कि आपका मकसद इसे आगे भेजने का है (भले ही आप वास्तव में ऐसा न करें.) और चूंकि मकसद ऐसा मान लिया जाएगा तो फिर ये अपराध की कैटेगरी में ही आएगा. सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 15(1) की व्याख्या इसी की है .


SC में मामला कैसे पहुंचा


सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करके दिया है .मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध से जुड़े कंटेंट को सिर्फ डाउनलोड करना या  फिर देखना पॉक्सो एक्ट या IT कानून के तहत अपराध के दायरे में नहीं आता.


हाई कोर्ट ने इसी आधार पर अपने मोबाइल फोन में यौन अपराध से जुड़े कंटेंट रखने के आरोपी 28 साल के शख्स के खिलाफ चल रहे केस को रद्द कर दिया था. इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के जरिए पता चला था कि इस शख्स के मोबाइल फोन में बड़ी संख्या में अश्लील वीडियो डाउनलोड हुए हैं. 


इनमें बच्चों के साथ यौन शोषण के अपराध से जुड़े वीडियो भी हैं. पुलिस ने उसके मोबाइल फोन को सीज कर फॉरेंसिक लैब को भेजा. 22 अगस्त 2020 को कंप्यूटर फॉरेंसिक एनालिसिस रिपोर्ट में पता चला कि दो नाबालिग बच्चों के एक महिला के साथ सेक्सुअल एक्टिविटी के वीडियो उसके मोबाइल में थे. रिपोर्ट के मुताबिक उसके मोबाइल में सैकड़ों दूसरे अश्लील वीडियो भी डाउनलोड किए गए थे. मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उस शख्स के सिर्फ वीडियो देखने भर से ये अपराध नहीं हो जाता. इसके चलते उसके खिलाफ चल रहा मुकदमा रद्द हो गया.


SC ने मद्रास HC के फैसले को रद्द किया


बच्चों के अधिकार के लिए काम करने वाली जस्ट राइट्स ऑफ चिल्ड्रेन अलायन्स और बचपन बचाओ आंदोलन जैसी संस्थाओं ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को गलत मानते हुए उसे रद्द कर दिया. कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ मुकदमे को बहाल करते हुए केस को वापस सत्र न्यायालय भेज दिया है.


SC ने जारी किए दिशानिर्देश


सुप्रीम कोर्ट  ने पॉक्सो कानून के तहत अपराध की परिभाषा को और व्यापक करने के लिए संसद को "चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी" शब्द को "Child Sexual Exploitative and Abuse Material" से बदलने के लिए अध्यादेश लाने का सुझाव भी दिया है. कोर्ट ने सभी अदालतों को "चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी" शब्द का इस्तेमाल न करने का निर्देश भी दिया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के मामलो में जागरूकता फैलाने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन करें.