Center Vs Delhi Government: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर गुरुवार को फैसला सुना दिया. इससे पहले पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार दलीलें सुनने के बाद 18 जनवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. जानते हैं इस फैसले की पांच बड़ी बातें


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सेवाओं पर दिल्ली सरकार नियंत्रण
सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला देते हुए कहा कि सेवाओं पर दिल्ली सरकार के पास विधायी और शासकीय शक्तियां हैं.


पीठ ने 2019 के फैसले नहीं जताई सहमति
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि निर्वाचित सरकार का प्रशासन पर नियंत्रण जरूरी है. उसने न्यायाधीश अशोक भूषण के 2019 के फैसले से सहमति नहीं जतायी कि दिल्ली के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है.


संविधान की मूल संरचना को लेकर कही ये बात
पीठ ने कहा कि लोकतंत्र और संघीय ढांचा संविधान की मूलभूत संरचना का हिस्सा हैं और संघवाद अलग-अलग हितों के अस्तित्व को सुनिश्चित करता है.


एलजी की भूमिका पर कही यह बात
शीर्ष अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस से संबंधित मामलों को छोड़कर एनसीटी सरकार की सहायता और सलाह से बंधे हैं.


दिल्ली विधानसभा लोकतंत्र के सिद्धांत का प्रतीक
पीठ ने कहा कि दिल्ली की विधानसभा लोकतंत्र के सिद्धांत का प्रतीक है. इसमें कहा गया है कि वे निर्वाचित सदस्य हैं और अनुच्छेद 239एए की व्याख्या लोकतंत्र के हित को आगे बढ़ाने के तरीके से की जानी चाहिए.


बता दें पिछले साल छह मई को शीर्ष न्यायालय ने इस मुद्दे को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था. संविधान पीठ में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के अतिरिक्त न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल रहे.


(इनपुट - एजेंसी)