Swati Maliwal Case: आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ मारपीट के आरोपी विभव कुमार की जमानत याचिका पर सोमवार को तीस हजारी कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने विभव कुमार की जमानत याचिका खारिज कर दी है. सुनवाई के दौरान स्वाति मालीवाल भी कोर्ट में मौजूद थीं. विभव कुमार के वकील ने ऐसी-ऐसी दलीलें दी, जिसे सुनकर स्वाति मालीवाल कोर्ट रूम में हीं रोने लगीं. सुनवाई के दौरान खुद स्वाति मालीवाल ने भी कोर्ट में अपनी बात रखी. स्वाति ने कहा कि जैसे ही मैंने FIR दर्ज कराई, उनके नेताओं ने एक दिन में कई कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मुझे बीजेपी का एजेंट का कहा. मुख्यमंत्री, विभव को लेकर मुंबई, लखनऊ लेकर गए. इनके पास ट्रोलिंग की पूरी फौज है. पार्टी के नेताओं से कहा गया कि जो स्वाति मालीवाल को सपोर्ट करेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा. विभव कोई आम आदमी नहीं है. जो सुविधा किसी मंत्री को मिलती है, वो विभव को हासिल है. अगर विभव को जमानत मिलती है और वो बाहर आता है तो मुझे और मेरे परिवार की जान को खतरा है.


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विभव कुमार के वकील की दलील


विभव के वकील की दलील देते हुए कहा कि 'आप मुझे ऐसे नहीं रोक सकते' कहते हुए स्वाति मालीवाल अंदर घुस आईं. उनके आने के बाद विभव ने पूछा कि किसके निर्देश पर उन्हें अंदर आने की इजाजत मिली है. विभव का ये पूछना बनता है, क्योंकि CM सुरक्षा को लेकर जवाबदेही उनकी भी है. सुरक्षाकर्मी तब अंदर गए और पूरे सम्मान के साथ उन्हें (स्वाति) बाहर ले जाया गया. ऐसे में इस तरह की घटना होने का सवाल ही कब (जैसा आरोप स्वाति लगा रही है) बनता है. स्वाति मालीवाल जब बाहर आ रही थीं, तब वो सामान्य थीं. उन्हें कोई दिक्कत नजर नहीं आ रही थी. विभव तो वहां पहले थे भी नहीं, वो बाद में आए. स्वाति के साथ अगर कुछ गलत सच में हुआ था तो उन्होंने उसी दिन शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई. क्यों तीन दिन बाद उन्होंने इस मामले को लेकर एफआईआर दर्ज कराई. स्वाति मालीवाल तो दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष रह चुकी हैं. एक महिला के अपने अधिकारों से बखूबी वाकिफ हैं. अगर उनके किसी अधिकार का उल्लंघन हुआ था तो उन्हें तुरंत शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी. जाहिर है, तीन दिन बाद जो FIR दर्ज कराई गई है. वो उन्होंने काफी सोच समझकर यह फैसला लिया है.


विभव के वकील ने कहा कि इस मामले में कोई Disrobe (कपड़ा उतारने) करने की मंशा नहीं थी. उस दिन स्वाति कुर्ती पहने हुई थीं, उन्होंने शर्ट नहीं डाली हुई थी. कोई ऐसी घटना नहीं, जिससे उन्हें Disrobe की मंशा जाहिर होती हो. जिन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है, वो गलत है. पांच दिन तक विभव पुलिस कस्टडी में रहे. ऐसी कोई बरामदगी पुलिस नहीं कर पाई है, जिससे उनके खिलाफ आरोप साबित होता हो.


स्वाति मालीवाल के वकील की दलील


सुनवाई के दौरान स्वाति मालीवाल की ओर से उनके वकील माधव खुराना ने अपनी दलील रखी. उन्होंने कहा कि जांच में विभव कुमार ने सहयोग नहीं दिया. सवालों के सीधे-सीधे जवाब वो नहीं दे रहे है. अगर स्वाति की मेडिकल जांच तीन चार दिन बाद भी हो रही है तो इसका मतलब ये नहीं कि उस जांच का कोई मतलब नहीं रहा. वो तब भी अहमियत रखती है. अगर स्वाति की ओर से अतिक्रमण (Trespassing) हुई है, जैसा कि विभव के वकील दलील दे रहे है तो सिक्योरिटी की ओर से ऐसी कोई शिकायत पुलिस में अभी तक क्यों नहीं दर्ज कराई गई.


सरकारी वकील की दलील


सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि विभव कुमार के फोन की जांच जरूरी है. ये पता करने के लिए कि अपनी सर्विस खत्म होने के बाद भी वो किस हैसियत से CM आवास पर काम कर रहे थे. साथ ही ये भी पता करना जरूरी है कि इस दरम्यान किन-किन लोगों से उन्होंने बात की. हो सकता है कि जो वीडियो फुटेज गायब हुआ हो, वो उनके फोन में मिल जाए. विभव ने मुंबई जाकर फोन फॉर्मेट किया है. सरकारी वकील ने आगे कहा कि विभव जमानत के हकदार नहीं हैं. जांच में उन्होंने सहयोग नहीं दिया. मोबाइल का पासवर्ड शेयर नहीं किया. अगर जमानत मिलती है तो वो सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं.


सरकारी वकील ने आगे कहा कि विभव कुमार की पूरी अर्जी इस पर आधारित है कि पुलिस की ओर से Crpc 41 के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है. अगर ये बात सही भी है तो इसके लिए कानूनी राहत के दूसरे विकल्प है, जमानत की अर्जी नहीं है. जहां पर ये घटना हुई है, उस जगह के वीडियो फुटेज गायब हैं. इसके पीछे कोई तकनीकी वजह भी हो सकती है और ये संभव है कि जानबूझकर उन फुटेज को गायब किया गया हो. जहां तक इस केस में आईपीसी 308 लगाने का सवाल है, वो यहां जायज है. आरोपी को अगर ये जानकारी है कि उसकी दी चोट से मौत हो सकती है तो फिर ये धारा लग सकती है.


एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अतुल श्रीवास्तव ने दलील देते हुए कहा कि क्या स्वाति मालीवाल ऐसे आदमी की इमेज खराब करेंगी, जो खुद परमानेंट कर्मचारी नहीं है. स्वाति मालीवाल अंदर भी सिक्योरिटी के साथ गई हैं. सिक्योरिटी उन्हें वेटिंग रूम तक एस्कॉर्ट करके गई. फिर इस केस में अनाधिकृत प्रवेश (Trespassing) का मामला बनता कहां है. और अगर वाकई स्वाति ने अनाधिकृत प्रवेश की थी तो फिर उस वक़्त ही 100 नंबर पर कॉल क्यों नहीं की गई.


अतुल श्रीवास्तव ने आगे कहा कि इस केस में एक अकेली महिला को पीटा गया. छाती पर, गर्दन पर उन्हें हिट किया गया. उसे घसीटा गया, जिसके चलते उसका सर सेंटर टेबल से भी टकरा गया. जिस तरह की चोट उन्हें लगी है, क्या वो मौत की वजह नहीं बन सकती. महिला को इस तरह से पीटा गया कि उनके बटन तक खुल गए. विभव के वकीलों का आरोप है कि स्वाति वहां एक सोची समझी साजिश के तहत गई थीं. ये देखिए कि वो ये आरोप किस पर लगा रहे है. राज्यसभा सांसद हैं. DCW की हेड रह चुकी हैं. पार्टी ने कभी उन्हें लेडी सिंघम कहा था और अब आरोप लगा रहे है कि विभव कुमार की इमेज खराब करने के लिए वो वहां गई थीं. विभव का कद इतना बड़ा हो गया है कि अगर कोई पार्टी का सांसद CM से मिलना चाहे तो इसके लिए भी विभव की मंजूरी जरूरी है. सिक्योरिटी का कहना है कि विभव की इजाजत जरूरी है. कायदे से देखा जाए तो विभव का वहां रहने का कोई तुक ही नहीं है, उन्हें पहले ही नौकरी से बर्खास्त किया जा चुका है.