नई दिल्ली: लोकतंत्र की परिभाषा होती है जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन जबकि अफगानिस्तान में तालिबान का तालिबान के लिए तालिबान द्वारा शासन शुरू हो गया है. लेकिन अब अफगानिस्तान के लोग ही इस क्रूर शासन के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं. ऐसी ही एक शक्तिशाली तस्वीर काबुल से आई है, जिसे आप इस समय दुनिया की सबसे शक्तिशाली तस्वीर भी कह सकते हैं.


दुनिया की सबसे शक्तिशाली तस्वीर


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काबुल में महिला पर एक तालिबानी इसलिए बन्दूक तान कर खड़ा हो गया ताकि ये महिला अपना प्रदर्शन बंद कर दे और तालिबान के आगे नाक रगड़ कर माफी मांग ले. तालिबान ने इन प्रदर्शनों पर रोक लगा दी है और प्रदर्शन करने वालों को कड़ी सजा देने की बात कही है. लेकिन फिर भी एक महिला बंदूक ताने तालिबानी आतंकी के सामने डटी रही.


दुनिया ने इस तरह की तस्वीर लगभग 32 वर्षों के बाद देखी है. 32 साल पहले 1989 में चीन के तियानेनमेन स्क्वॉयर (Tiananmen Square) पर लाखों छात्रों ने ऐसा ही प्रदर्शन किया था, जिसके बाद चीन ने सड़कों पर अपने टैंक उतार दिए थे और एक छात्र इन टैंकों के सामने जाकर खड़ा हो गया था.


चीन में कम्युनिस्ट शासन के इतिहास का ये सबसे बड़ा प्रदर्शन था, जिसमें 10 लाख छात्र आजादी और लोकतंत्र के लिए सड़कों पर उतर गए थे और काबुल में भी हजारों महिलाएं आजादी और लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन कर रही हैं. ये तस्वीरें दुनिया के उन बड़े देशों, नेताओं और उनकी सेनाओं को जरूर शर्मिंदा करेंगी, जो अफगानिस्तान को तालिबान के हाथों में सौंप कर भाग गए.


तालिबान के खिलाफ लोगों में गुस्सा


काबुल की सड़कों पर इस समय 6 हजार लड़ाके AK-47 जैसी खतरनाक राइफल्स के साथ खड़े हैं. लेकिन इसके बावजूद काबुल में महिलाओं का प्रदर्शन रुका नहीं है. आज लगातार तीसरे दिन काबुल में प्रदर्शन हुआ और महिलाओं ने रैली निकाल कर आजादी के नारे लगाए. काबुल के अलावा हेरात में भी प्रदर्शन हुए, जहां तालिबान की गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई है.


हेरात से विचलित करने वाली कुछ तस्वीरें भी आईं, जहां तालिबानियों ने एक व्यक्ति का सिर इसलिए फोड़ दिया क्योंकि वो अपना मोबाइल फोन उन्हें नहीं दे रहा था. इस व्यक्ति ने कहा कि वो मरना पसन्द करेगा लेकिन अपना मोबाइल फोन नहीं देगा. हम नहीं जानते कि तालिबानी शरिया कानून में मोबाइल फोन के इस्तेमाल को वर्जित मानते हैं इसलिए उन्होंने इस व्यक्ति को मारा या वो मोबाइल फोन की ताकत से डरते हैं. क्योंकि मोबाइल फोन ही एक ऐसी चीज है, जो तालिबान की क्रूरता को दुनिया के सामने लाया है. लेकिन इतना जरूर साफ है कि तालिबानी महिलाओं से भी डरते हैं और मोबाइल फोन से भी डरते हैं.


तालिबान इस वक्त काबुल में प्रदर्शनों की कवरेज करने वाले पत्रकारों को भी निशाना बना रहा है. पहले तालिबान ने ऐसे ही पांच पत्रकारों को बंधक बना लिया, फिर उन्हें बेरहमी से मारा गया और उनके हाथ पैर तोड़ दिए गए. इसके अलावा कुछ पत्रकारों के कैमरे भी छीन लिए गए. कुल मिलाकर जहां-जहां सच दिखाया जाता है वहां कैमरे छीनकर उन्हें नष्ट कर दिया जाता है या उन्हें खरीद लिया जाता है.


नई सरकार पर चुप क्यों दुनिया?


जिस देश की सरकार में महिलाओं को कोड़े मरवाने वाला प्रधानमंत्री बन जाए, सुसाइड बॉम्बर्स तैयार करने वाला गृह मंत्री बन जाए और इस्लामिक जेहाद के नाम पर विमानों को हाईजैक कराने वाला रक्षा मंत्री बन जाए, उस देश में फिर ऐसे ही हालात होते हैं.


अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार का ऐलान हुए 24 घंटे बीत चुके हैं कि लेकिन अब तक दुनिया के किसी भी बड़े देश ने तालिबान की इस सरकार को ना तो खारिज किया है और ना ही इस सरकार को मानवता के लिए खतरा बताया है. दुनिया इस पर खामोश है और ये ठीक वैसा ही है, जैसे कोई व्यक्ति किसी की हत्या होने पर अपराधियों का विरोध ना करके अपनी आंख, कान और मुंह को बन्द कर ले.


सरकार में आतंकियों की भरमार


दुनिया के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता कि कल तालिबान की सरकार के जिन 33 सदस्यों का ऐलान हुआ, उनमें से 17 सदस्य ऐसे हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र (UN) ने अपनी Sanction List यानी प्रतिबंधित सूची में रखा है. ये वो 17 खतरनाक आतंकवादी हैं, जिन पर कई तरह के आर्थिक, कारोबारी और राजनीतिक प्रतिबंध हैं. इस सरकार में पांच ऐसे आतंकवादी भी मंत्री बने हैं, जिनके पिता, भाई और चाचा तालिबान में रहे हैं, यानी यहां भी भाई भतीजावाद है.


सरकार में रक्षा मंत्री बना मुल्ला याकूब, तालिबान के मुख्य संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा है. लोक निर्माण मंत्री बना मुल्ला अब्दुल मनान ओमारी, मुल्ला उमर का भाई है. रिफ्यूजी मिनिस्टर बना खलील उर रहमान हक्कानी, हक्कानी नेटवॅर्क के मुख्य संस्थापक जलालुद्दीन हक्कानी का सगा भाई है और गृह मंत्री बना सिराज़ुद्दीन हक्कानी, जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है.


इस सरकार में दो मंत्री ऐसे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी भी हैं और इन पर अमेरिका ने करोड़ों रुपये का इनाम रखा है. इनमें गृह मंत्री बने सिराज़ुद्दीन हक्कानी पर अमेरिका ने 10 मिलियन डॉलर यानी 75 करोड़ रुपये का इनाम रखा है. उसके चाचा खलील उर रहमान हक्कानी पर भी इतना ही इनाम रखा गया है.


इनामी आतंकी बन गए मंत्री


तालिबान की इस सरकार में 4 मंत्री ऐसे भी हैं, जिन्हें वर्ष 2015 में अमेरिका ने अपने एक सैनिक को हक्कानी नेटवर्क के कब्जे से छुड़ाने के लिए दुनिया की सबसे खतरनाक जेल ग्वांतानामो बे से छोड़ दिया था, जो क्यूबा में है लेकिन आज 6 साल बाद ये चारों आतंकवादी मंत्री बन गए हैं. अब्दुल हक वासीक को खुफिया मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है. मुल्ला नूरुल्लाह नूरी को आदिवासी मामलों का मंत्री बनाया गया है. मुल्ला मोहम्मद फजल उप रक्षा मंत्री बना है और खैरुल्लाह खैरख्वाह को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया है.


सोचिए, सूचना मंत्री एक ऐसे आतंकवादी को बनाया गया है, जिसके पास दुनियाभर में होने वाले जेहादी हमलों की सूचना पहले से होगी. सबसे बड़ी बात इस सरकार में आतंकवादियों के साथ ड्रग्स माफियां भी हैं, बड़े और खूंखार अपराधी भी हैं और ऐसे लोग भी हैं, जो शरिया कानून के नाम पर हजारों महिलाओं का दमन कर चुके हैं. लेकिन दुनिया फिर भी इस सरकार पर चुप है.


अमेरिका ने अफगानिस्तान युद्ध पर 20 साल में 2 ट्रिलियन डॉलर यानी 150 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इनमें से काफी सारा पैसा उसने पाकिस्तान को भी दिया. लेकिन आज पाकिस्तान खुल कर तालिबान का समर्थन कर रहा है और उसकी खुफिया एजेंसी ISI का चीफ काबुल में है.


पाकिस्तान के लिए फायदे का सौदा


प्रधानमंत्री बनने वाले मुल्ला हसन अखुंद के पाकिस्तान के साथ काफी अच्छे रिश्ते हैं. उसे एक तस्वीर में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ देखा जा सकता है और एक तस्वीर में वो पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री सरताज अजीज के साथ दिख रहे हैं. मुल्ला हसन अखुंद तालिबान की लीडरशिप काउंसिल रहबरी शूरा के प्रमुख हैं और अब प्रधानमंत्री भी बन गए हैं. इससे पाकिस्तान को दो फायदे होंगे, पहला तालिबान सरकार में उसका पूरा दखल रहेगा और दूसरा फायदा ये कि कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए उसे तालिबान का पूरा समर्थन मिलेगा.


मुल्ला हसन अखुंद का प्रधानमंत्री बनना इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि वो संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित लिस्ट में हैं और उसकी छवि इस्लाम के एक विद्वान की है. बहुत कम लोग जानते हैं कि मुल्ला हसन ने ही 2001 में बाम्यान में बुद्ध की प्राचीन मूर्ति को बम धमाके में उड़ाने का आदेश दिया था. ये तब की बात है, जब वो मंत्री था. लेकिन अब वो प्रधानमंत्री है, इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि अफगानिस्तान आने वाले दिनों में दुनिया का सबसे बड़ा मदरसा बन जाएगा, जहां मंत्री आतंकवाद कल्याण की योजनाएं बनाएंगे और घर-घर जेहाद पहुंचाने के लिए नई-नई नीतियों का ऐलान करेंगे.


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उदाहरण के लिए तालिबान सरकार में शिक्षा मंत्री बने शेख मौलवी नुरुल्लाह ने कहा है कि अफगानिस्तान में लोगों को उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं है. उनके मुताबिक जब उनके जैसे लोग बिना उच्च शिक्षा हासिल किए प्रधानमंत्री और मंत्री बन सकते हैं तो फिर ज्यादा पढ़ाई का क्या मतलब. इस बयान से आप समझ सकते हैं कि तालिबान आने वाले दिनों में अफगानिस्तान को कितना पीछे ले जाएगा और वहां नौजवानों को आतंकवाद में PhD कराने की पढ़ाई होगी.


आजादी के नाम पर होगा मजाक


हालांकि तालिबान ने अपने सुप्रीम लीडर हिब्तुल्लाह अखुंदज़ादा के नाम से एक बयान जारी किया है. इसमें तीन बड़ी बातें कहीं गई हैं. पहली बात ये कि तालिबान सभी अंतरराष्ट्रीय कानून, समझौतों और प्रस्तावों का पालन करेगा लेकिन शर्त ये है कि ये कानून, समझौते और प्रस्ताव इस्लाम धर्म के मुताबिक हों. दूसरी बात ये कि अफगानिस्तान में मानव अधिकारों की रक्षा की जाएगी और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाएगा. लेकिन यहां भी ये अधिकार और सुरक्षा इस्लाम धर्म के मुताबिक तय होगी. और आखिरी बात ये कि तालिबान लोगों को आजादी देगा लेकिन ये आजादी शरिया कानून के मुताबिक मिलेगी.


सरल शब्दों में कहें तो अफगानिस्तान में इस बार भी कुछ नहीं बदलेगा और लोगों को शरिया कानून मानना ही होगा. क्योंकि अगर आजादी शरिया कानून के हिसाब से मिलेगी तो वो आजादी नहीं, आजादी के नाम पर लोगों के साथ मजाक होगा.