Terrorism in Jammu Kashmir: पूरी दुनिया में कुल 195 देश हैं. इनमें से 92 देश ऐसे हैं, जो आतंकवाद को दुनिया के लिए गम्भीर चुनौती मानते हैं. 54 देश ऐसे हैं, जो आतंकवाद को रोकने के लिए सभी देशों के बीच सहयोग को जरूरी मानते हैं और 24 देश ऐसे हैं, जिनके द्वारा आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए गए हैं. इन सभी देशों में एक और बड़ी समानता ये है कि ये तमाम देश आतंकवाद को आतंकवाद के चश्मे से ही देखते हैं. 


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कश्मीर में हो रही टारगेट किलिंग्स


भारत शायद दुनिया का शायद इकलौता ऐसा देश होगा, जहां आतंकवाद के मुद्दे पर भी दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति होती है. जहां आतंकवादियों को भटका हुआ बता कर उनसे हमदर्दी जताई जाती है. जहां आतंकवादियों के मानव अधिकारों के लिए भी कई संस्थाएं अदालत पहुंच जाती हैं. लेकिन जब यही आतंकवादी किसी निर्दोष व्यक्ति की बेरहमी से हत्या कर देते हैं तो इस पर हमारे देश के एक खास वर्ग के बीच सन्नाटा छा जाता है.


असल में कश्मीर (Jammu Kashmir) में हिन्दुओं, प्रवासी मज़दूरों और दूसरे समुदाय के लोगों को लगातार चुन चुन कर मारा जा रहा है. इस साल कश्मीर में टारगेट किलिंग की 30 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 25 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि इनमें भी आधे से ज्यादा हिन्दू हैं. यानी आतंकवादियों ने इन लोगों को सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि ये हिन्दू थे और दूसरे राज्यों से कश्मीर में काम करने के लिए आए थे.


आतंकवादी नहीं चाहते घाटी में डेमोग्राफी बदले


आतंकवादी चाहते हैं कि कश्मीर में वहां के मुसलमानों को छोड़ कर किसी और धर्म के लोग वहां ना रहे, दूसरे धर्म का कोई व्यक्ति वहां नौकरी ना करे, अपने बच्चों को वहां पढ़ाए नहीं और अपना घर भी वहां ना बसाए. इसी सोच के तहत कश्मीर में लगातार टारगेट किलिंग्स की जा रही हैं. हालांकि इससे भी ज्यादा दुख की बात ये है कि बांदीपोरा की मौजूदा घटना को लेकर हमारे देश में चिंता जताई जा रही है और सरकार से सवाल पूछे जा रहे हैं.


हमारे देश के न्यूज़ चैनलों पर भी इस लम्बी लम्बी बहस हो रही हैं. आपको पता है, ये सब क्यों हो रहा है. ये सब इसलिए हो रहा है, क्योंकि इस घटना में मारा गया व्यक्ति एक खास धर्म से था. सोचिए ऐसा क्यों है कि जब आतंकवादियों द्वारा कश्मीर में किसी हिन्दू की हत्या की जाती है तो उस पर सन्नाटा छा जाता है लेकिन जब मरने वाला व्यक्ति एक खास धर्म से होता है तो उस खबर को ना सिर्फ नैशनल हेडलाइन बनाया जाता है बल्कि घंटों न्यूज चैनलों पर इसे लेकर बहस की जाती है.


हम ये नहीं कह रहे कि बांदीपोरा की इस घटना पर बात नहीं होनी चाहिए. बिल्कुल इस घटना पर बात होनी चाहिए और इसकी निंदा की जानी चाहिए. लेकिन हमारा सवाल ये है कि ऐसे गम्भीर मुद्दों पर धर्म के आधार पर बंटवारा कैसे किया जा सकता है?


बांदीपोरा में बिहारी मजदूर की गोली मारकर हत्या


बांदीपोरा में आतंकवादियों ने जिस प्रवासी मजदूर की हत्या की, उसका नाम मोहम्मद अमरेज था. उसकी उम्र सिर्फ़ 19 साल थी और वो चार महीने पहले ही अपने दो भाइयों के साथ कश्मीर में मजदूरी करने के लिए आया था. यानी उसका अपराध सिर्फ इतना था कि वो कश्मीर में आकर काम कर रहा था. उसे लगता था कि यहां भी उसे वही अधिकार हासिल होंगे, जो देश के दूसरे राज्यों में उसे मिलते हैं.


लेकिन आतंकवादियों ने टारगेट किलिंग के तहत उसे जान से मार दिया. पुलिस के मुताबिक मोहम्मद अमरेज को तीन गोलियां मारी गईं. जो बात सबसे ज्यादा परेशान करती है, वो ये है कि आतंकवादियों ने पहले इस बात की जानकारी जुटाई कि वो जिस व्यक्ति को मारने आए हैं, वो बिहार का रहने वाला है. जब इस बात की पुष्टि हो गई तो उन्होंने मोहम्मद अमरेज को बिल्कुल पास से गोली मारी.


यानी आतंकवादी चाहते थे कि इस हमले में मोहम्मद अमरेज किसी भी तरह बचे नहीं. पिछले 10 दिनों में टारगेट किलिंग की ये दूसरी बड़ी घटना है. इससे पहले 4 अगस्त को पुलवामा में बिहार के प्रवासी मज़दूरों पर आतंकवादियों ने ग्रेनेड अटैक किया था. जिसमें एक मज़दूर की मौत हो गई थी. इसके अलावा आपको याद होगा इसी साल दो जून को कश्मीर घाटी में आतंकवादियों ने एक हिन्दू बैंक मैनेजर की खुलेआम हत्या कर दी थी. इस बैंक मैनेजर का अपराध सिर्फ इतना था कि ये हिन्दू था और राजस्थान से कश्मीर में नौकरी करने के लिए आया था.


कश्मीर को सामान्य नहीं होने देना चाहते आतंकी


संक्षेप में कहें तो आतंकवादी कश्मीर को सामान्य नहीं होने देना चाहते. यहां हम एक और विचार आपके साथ साझा करना चाहते हैं. वो ये है कि आज आतंकवादी कश्मीर में ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं कि वहां भारत के दूसरे राज्यों के लोग ना तो काम कर सकें और ना ही वहां रह सकें. लेकिन विडम्बना ये है कि कश्मीरी मुसलमान भारत के किसी भी कॉलेज में पढ़ाई कर सकते हैं, किसी भी शहर में नौकरी कर सकते हैं, किसी भी राज्य में अपना घर बसा कर रह सकते हैं और हम इसका स्वागत करते हैं. यही भारत के लोकतंत्र की असली खूबसूरती है.


लेकिन अब सवाल ये है कि क्या कश्मीर में रहने वाले मुसलमानों की ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि वो वहां रहने वाले अपने हिन्दू भाइयों और प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए अपनी आवाज़ उठाएं? उनकी सुरक्षा के लिए खड़े हो जाएं?.. 1990 में जब कश्मीरी पंडितों की हत्याएं हुई और उन्होंने पलायन किया, तब कश्मीरी मुसलमानों ने ये सब होने दिया. लेकिन अब अपनी इस गलती को सुधारने के लिए उनके पास एक और मौक़ा है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि, क्या वो ऐसा करेंगे?


कश्मीर में हिन्दुओं और प्रवासी मज़दूरों की टारगेट किलिंग्स के पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला कारण तो यही है कि आतंकवादी कश्मीर की डेमोग्राफी में आ रहे बदलाव को किसी भी तरह रोकना चाहते हैं. डेमोग्राफी का मतलब ये है कि कश्मीर में कितनी आबादी रहती है, यहां किस किस धर्म के लोग रहते हैं, यहां की सरकारी नौकरियों में किस धर्म के लोगों का कितना प्रभाव है और यहां के लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है.


अनुच्छेद 370 हटाए जाने से बढ़ी बौखलाहट


जब तक जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू था, तब तक वहां देश के दूसरे राज्यों के नागरिक जमीन नहीं खरीद सकते थे, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन नहीं दे सकते थे. दलित और पिछड़ी जाति के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण नहीं मिलता था. अगर कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी दूसरे राज्य के नागरिक से शादी कर लेती थी तो परिवार की सम्पत्ति में उसका अधिकार समाप्त हो जाता था. इससे कश्मीर की डेमोग्राफी एक खास धर्म के आसपास सीमित हो गई थी. लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद ये व्यवस्था बदली है.


अब भारत के किसी राज्य का नागरिक कश्मीर में जमीन भी खरीद सकता है और वहां नौकरी करने के लिए भी जा सकता है. यही बात इस्लामिक कट्टरपंथियों और आतंकवादियों को परेशान कर रही है. जिसका जिक्र Kashmir Freedom Fighters नाम के एक आतंकवादी संगठन ने पिछले दिनों अपनी एक चिट्ठी में भी किया था. इसमें लिखा था कि अगर कश्मीर की डेमोग्राफी को बदला गया तो इसका अंजाम खतरनाक होगा.


आतंकवादियों द्वारा की जा रही टारगेट किलिंग्स का दूसरा बड़ा कारण है कश्मीर और वहां के लोगों के मन में उपजा राष्ट्रवाद और वहां लगातार बढ़ता पर्यटन. इस समय कश्मीर में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे आतंकवादी और खास तौर पर पाकिस्तान बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है. कश्मीर के बारामूला में गुरुवार को एक तिरंगा रैली निकाली गई. आपको जान कर हैरानी होगी कि ये तिरंगा रैली उस आतंकवादी के पिता द्वारा निकाली गई, जिसे इसी साल एक मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने मार दिया था.


स्थानीय लोगों में बढ़ रहे राष्टरवाद से आतंकी परेशान


इस आतंकवादी का नाम था, हिलाल अहमद शेख और वो आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का कश्मीर में कमांडर था. लेकिन उसके पिता अब्दुल हामिद शेख ने गुरुवार को बारामूला में स्कूली बच्चों के साथ तिरंगा रैली निकाल कर लोगों को उनके घरों में तिरंगा लगाने के लिए प्रेरित किया. अब्दुल हामिद शेख जम्मू कश्मीर के जल शक्ति विभाग में काम करते हैं. वो चाहते हैं कि कश्मीर के मन में तिरंगे को लेकर जो राष्ट्रवाद उपजा है, उससे हर मुसलमान जुड़े और देशभक्ति की एक मिसाल पेश करे. सोचिए ये बात आतंकवादियों को कैसे बर्दाश्त हो सकती है?


कश्मीर में बदलाव की ये तस्वीरें पाकिस्तान और खासतौर पर आंतकवादियों को काफी चुभ रही होंगी. आतंकवादी हमेशा से यही चाहते थे कि कश्मीर के लोग मुख्यधारा से अलग रहें और भारत के लोग कश्मीर आने से भी डरें.


पाकिस्तान को चुभ रहा कश्मीर में आ रहा बदलाव


इसके लिए इन आतंकवादियों द्वारा कश्मीर में डर का माहौल बनाने की कोशिश की गई. दूसरे राज्यों से आए मजदूरों और कश्मीरी पंडितों पर लगातार हमले भी किए गए हैं. लेकिन हमें लगता है कि ये आतंकवादी पूरी तरह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए. आज अगर आप देखेंगे तो इस समय कश्मीर के लोगों के दिलों में तिरंगा ट्रेंड कर रहा हैं. और वहां पर्यटन भी बढ़ा है.


कश्मीर में आ रहा यही बदलाव आतंकवादियों को चुभ रहा है और वो हिन्दुओं और प्रवासी मज़दूरों को अपना निशाना बना रहे हैं. हैरानी की बात ये है कि अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं ने अब तक कश्मीर में हो रही टारगेट किलिंग्स की निंदा नहीं की है. असल में इन देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं ने एक ऐसी व्यवस्था बना ली है, जिसमें हिंसा और आतंकवाद को वो केवल अपने चश्मे से देखते हैं. इसीलिए आज आपको इन देशों के दोहरे मापदंड भी समझने चाहिए.


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