Teesta Setalvad: सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत लेकिन लोअर कोर्ट ने दिया बड़ा झटका, कम नहीं हो रही तीस्ता सीतलवाड़ की मुश्किलें
Teesta Setalvad plea in Gujarat riots 2002: विवादित सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बावजूद संकट अभी टला नहीं है. उनके खिलाफ दर्ज केस को खत्म करने की सीतलवाड़ की याचिका पर गुजरात की लोअर कोर्ट ने बड़ा झटका दे दिया.
Teesta Setalvad Plea in Gujarat Riots 2002 Case Dismissed: गुजरात में अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने राज्य में 2002 में हुए दंगों के संबंध में कथित रूप से सबूत गढ़ने के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की आरोपमुक्त करने का आग्रह करने वाली याचिका खारिज कर दी है. गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एआर पटेल ने अभियोजन और बचाव पक्ष से 24 जुलाई से मामला शुरू करने (मुकदमे की कार्यवाही शुरू करने) का निर्देश दिया. सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने भी तीस्ता सीतलवाड़ की याचिका का विरोध किया और कहा कि उन्होंने दंगा पीड़ितों का विश्वास तोड़कर निर्दोष लोगों को फंसाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड़ को दी जमानत
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इसी मामले में सीतलवाड़ को जमानत दे दी थी. तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad), राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार और भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट को जून 2022 में शहर की अपराध शाखा ने जालसाजी और 2002 दंगों के मामले में गुजरात सरकार के अधिकारियों को फंसाने के इरादे से झूठे सबूत गढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किया था.
गुजरात सरकार ने याचिका का किया विरोध
न्यायाधीश ए आर पटेल ने पहले श्रीकुमार (Teesta Setalvad) की आरोपमुक्त करने का आग्रह करने वाली याचिका खारिज कर दी थी. भट्ट ने अब तक ऐसी राहत की गुजारिश नहीं की है. सीतलवाड़ की याचिका का विरोध करते हुए गुजरात सरकार ने आरोप लगाया था कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री (नरेन्द्र मोदी), वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों सहित निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए दंगा पीड़ितों के नाम पर हलफनामे तैयार किए.
गवाहों ने लगाया था धोखेबाजी का आरोप
सरकार ने कहा कि उसने गवाहों के बयानों पर भरोसा किया है, जिसमें सीतलवाड़ के एनजीओ ‘सिटीजन फॉर पीस’ (Citizen for Peace) में काम करने वाले रईस खान पठान के साथ-साथ नरेंद्र ब्रह्मभट्ट और दंगा पीड़ित कुतुबुद्दीन अंसारी शामिल हैं. ब्रह्मभट्ट ने दावा किया था कि दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने कथित तौर पर कार्यकर्ता को 30 लाख रुपये दिए थे. सरकार ने सीतलवाड़ द्वारा तैयार किए गए दंगा पीड़ितों के हलफनामों और अदालत के समक्ष दर्ज किए गए उनके बयानों में "विरोधाभास" को भी रेखांकित किया.
'गढ़े हुए सबूत' नहीं माने जा सकते: सीतलवाड़
सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि आरोपी के खिलाफ आरोपपत्र दायर करने के लिए पर्याप्त सबूत और कारण हैं. निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने के आरोपों को खारिज करते हुए सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) के वकील ने कहा था कि जिन हलफनामों को झूठा बताया गया है, उन पर गवाहों ने हस्ताक्षर किए थे और विभिन्न अदालतों के समक्ष दायर किए गए थे. बचाव पक्ष ने कहा कि इसलिए इन हलफनामों को 'गढ़ा गया सबूत' नहीं माना जा सकता. सीतलवाड़ सामाजिक कार्यकर्ता के वकील ने कहा था कि इन हलफनामों के आधार पर अदालतों ने गवाहों की गवाही को रिकॉर्ड किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने पीएम मोदी को दी थी क्लीन चिट
ज़किया जाफरी की ओर से दायर याचिका पर 24 जून 2022 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले के एक दिन बाद सीतलवाड़, भट्ट और श्रीकुमार के खिलाफ फर्जी सबूत गढ़ने का मामला दर्ज किया गया था. ज़किया ने आरोप लगाया था कि गोधरा की घटना के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों के पीछे बड़ी साजिश थी. वह कांग्रेस के दिवंगत पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं जिनकी दंगों के दौरान हत्या कर दी गई थी. जून 2022 में शीर्ष अदालत ने (अब प्रधानमंत्री) नरेन्द्र मोदी और राज्य के अन्य पदाधिकारियों को दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा था.