नई दिल्ली: 2002 से लेकर 2017 तक यानी करीब 15 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार अरबों का आसामी राम रहीम सलाखों के पीछे पहुंच ही गया. सजा का ऐलान सोमवार को किया जाना है, लेकिन उसे जेल पहुंचाना इतना आसान नहीं था. इस लड़ाई में सबसे अहम रोल निभाने वाली वो बहादुर बेटियां है जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर गुमनाम चिट्ठी लिखी. इसके बाद वो जाबांज जज और सीबीआई के आला अफसर जो आखिर तक डंटे रहे. वहीं गवाही देने वाली बेटियों, और पूरा सच के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति जिन्होंने पूरी बेबाकी से उस चिट्ठी को अपने अखबार में छापा, लेकिन बाद में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई और वो वकील जिन्होंने पूरी हिम्मत के साथ केस लड़ा और बाबा राम रहीम के ढोंग का पर्दाफाश किया. 


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लेकिन क्या आपको पता है कि बाबा के खिलाफ 5 वकीलों लेखराज ढोंट, अश्विनी बख्शी, आरएस चीमा और राजें सच्चर ने बिना फीस लिए ये केस लड़ा. बहादुल बेटियों का साहस देख वकीलों की इस टीम ने बिना फीस लिए ये पूरा केस लड़ा और इसे अंत में सफलता दिलाई. राम रहीम के ढोंग का पर्दाफाश हो चुका है. आज यानी सोमवार को उसके खिलाफ सजा का ऐलान होना है. रेप के दोषी बाबा को कम से कम सात साल की सजा होना तय माना जा रहा है. वहीं इस केस में वकीलों के अलावा इन चार लोगों ने सबसे अहम भूमिका निभाई है.


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अहम भूमिका निभाने वाली साध्वी


ये वो साध्वी बहने जिनके साथ राम रहीम ने घिनौना कृत्य किया. पीड़िता होने और सुरक्षा कारणों से हम आपको इनका नाम नहीं बता सकते. इन्होंने ही अपनी चिट्ठी से बाबा के ढोंग पर्दाफाश किया था हालांकि ये चिट्ठी गुमनाम रही, लेकिन इस चिट्ठी में लिखी दर्द भरी कहानी की गवाही देने के लिए बस यही दो साध्वियां हैं जो पूरे साहस के साथ बाबा के खिलाफ लड़ती रहीं. सूत्रों की माने तो सीबीआई पूछताछ में चिट्ठी से जुड़े सवालों पर 18 लड़कियों ने अपने साथ हुई ज्यादती की बात कुबूल की, लेकिन सीबीआई को सिर्फ दो ही लड़कियां मिलीं, जिन्होंने न सिर्फ अपने साथ हुई ज्यादती को खुलकर बताया, बल्कि यह बात अदालत में बताने का भी फैसला किया. इन्ही लड़कियों की बदौलत बाबा के ढोंग का पर्दाफाश हुआ.


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पत्रकार रामचंद्र छत्रपति


समाचार पत्र 'पूरा सच' के संपादक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हमेशा से ही अपने मजबूत इरादों के लिए जाने जाते थें. कहा जाता है कि जिस खबर में उन्हें जरा भी सच्चाई नजर आती थी वो बिना परवाह किए पूरी बेबाकी से अपने अखबार में छापते थे. पत्रकार छत्रपती ने पहली बार गुमनाम चिट्ठियों का जिक्र अपने अखबार में किया लेकिन इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. सीबीआई के मुताबिक बाबा के शूटर साधकों ने छत्रपति की 24 अक्टूबर 2002 को हत्या कर दी.


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रणजीत सिंह


तीसरा शख्स रणजीत सिंह है. रिपोर्ट्स की माने तो रणजीत उन दो बहनों में से एक का भाई था, जिनके साथ राम रहीम ने ज्यादती की थी. इस बात से गुस्साए रणजीत ने डेरा छोड़ दिया था. सूत्रों की माने तो पोल खुलने के डर से राम रहीम ने रणजीत सिंह हत्या करवा दी थी.


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फकीरचंद


इन सबमें चौथा बड़ा नाम फकीरचंद का रहा. एक जमाने में फकीरचंद डेरे का ही एक साधु हुआ करता था, लेकिन बाबा की काली करतूतों का पता चलते ही फकीरचंद डेरा छोड़ लोगों को जगाने में लग गया. कुछ दिन बाद ही फकीरचंद गुम हो गए और अब तक उनका कोई सु्राख नहीं मिला है. रिपोर्ट्स की माने तो सीबीआई फकीरचंद की गुमशुदगी की भी पैरवी कर रही है.