G 20 Summit: यही है 21वीं सदी के भारत की ताकत, जी-20 सम्मेलन से दुनिया भर को खास संदेश
G 20 Summit News: जी 20 सम्मेलन में भारत ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि 21वीं सदी हम सबके लिए अवसर लेकर आया है. हम सभी सदस्य देशों को वैश्विक स्तर पर इस भाव के साथ आगे बढ़ना है जो वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को जमीन पर उतारने में मदद करे. हमें ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना है जिसमें मतभेदों को सुलझाने का रास्ता विवाद की जगह बातचीत हो.
G 20 Summit 2023: राजधानी दिल्ली में दो दिनों तक चलने वाले जी 20 समिट का आगाज 9 सितंबर को हुआ. समिट(G 20 Summit Delhi) के पहले दिन सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग के मुद्दे पर चर्चा हुई और कुछ फैसले लिए गए. वो फैसले भारत की ताकत का अहसास कराता है कि अब हम निर्णय लेने और उसे प्रभावित करने की क्षमता भी रखते हैं. जिस तरह से दो आर्थिक गलियारों को बनाए जाने की सहमति बनी और उसके साथ ही यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत(india on ukraine russia crisis) ने एक बार स्पष्ट तौर पर कहा कि 21वीं सदी में लड़ाई के लिए कोई जगह नहीं है. हमें परस्पर सहयोग के जरिए आगे बढ़कर वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार करना है.
भारत ने क्या कहा
भारत ने पश्चिम देशों से कहा कि यूक्रेन में रूस के आक्रामक नजरिए पर अगर हम इस सम्मेलन में लचीला रुख अपनाते हैं तो जी 20 के लिए एक घोषणा पर पहुंचने में मदद मिलेगी. इससे यह भी संकेत मिलता है कि यदि भारतीय पक्ष कोई विकल्प तलाशने में विफल होता तो न केवल शिखर सम्मेलन के विफल होने का जोखिम था, बल्कि एक वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय शक्ति बनने की चीन के प्रयासों को और गति मिलती. एक असफल G20 और एक ऊर्जावान ब्रिक्स की विपरीत छवियां पेश की जातीं. पश्चिम को बताया गया कि यदि यह लचीला होगा तो न केवल इस खतरे को टाला जा सकता है बल्कि रचनात्मक रूप से आगे बढ़ सकते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए भारत सदस्य देशों तो तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहा जिसका प्रभाव साझा घोषणापत्र में दिखाई भी दिया.
यूक्रेन -रूस संकट पर नजरिया साफ
भारत ने रूस से यह भी कहा कि वह मास्को की चिंताओं को भी ध्यान में रखेगा. घोषणापत्र में ऐसी भाषा शामिल न हो जो स्पष्ट रूप से यूक्रेन में उसकी आक्रामकता के बारे में बात करती हो. एक अधिक सामान्य फ्रेमिंग अपनाए जो सभी राज्यों को खतरे से दूर रहने की आवश्यकता के बारे में बात करे.बल का प्रयोग न केवल क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ बल्कि किसी भी राज्य की राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ भी क्षेत्र हासिल करने के लिए.बदले में ना हो यह मास्को के लिए न केवल घोषणा के पाठ पर सहमत होने के लिए बल्कि अपने मित्र, बीजिंग को भी साथ निभाने के लिए मनाने के लिए बाध्य था.यदि वह फिर भी सहमत नहीं हुआ तो मॉस्को को समझना होगा कि भारत और वैश्विक दक्षिण में उसे कैसा माना जाएगा.रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने समझा कि उनका पुराना मित्र लचीलेपन के बदले में आंशिक अंतरराष्ट्रीय मुक्ति का मौका दे रहा है.