Tipu Sultan rule: मैसूर के शासक टीपू सुल्तान को इतिहास में अक्सर एक स्वतंत्रता सेनानी और मैसूर टाइगर के रूप में जाना जाता है. वह हैदर अली के पुत्र थे, जिन्होंने हिंदू वाडियार वंश को हराकर मैसूर का राजा बनने का मार्ग प्रशस्त किया. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या टीपू सुल्तान वाकई स्वतंत्रता सेनानी थे, या फिर एक इस्लामी शासक जिनकी छवि अत्याचारी के रूप में जानी जाती है? क्या टीपू सुल्तान ने मंदिरों को तोड़ा और हिंदुओं का नरसंहार किया? यह ऐसी सच्चाई है जो सबको पता होनी चाहिए.


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टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर
असल में इतिहासकार विक्रम संपत ने अपनी नई पुस्तक 'टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर' (1760-1799)' में टीपू सुल्तान को लेकर कई लोकप्रिय धारणाओं को चुनौती दी है. उन्होंने अपने गहन शोध के आधार पर बताया कि टीपू ने हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ कई कदम उठाए, जिनमें मंदिरों को तोड़ना, धर्मांतरण के लिए मजबूर करना और धार्मिक हिंसा शामिल थी.


'टीपू सुल्तान का महिमामंडन नहीं करना चाहिए'
संपत का मानना है कि मुसलमानों को टीपू सुल्तान का महिमामंडन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका इतिहास बलपूर्वक धर्मांतरण और पूजा स्थलों को नष्ट करने का है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि टीपू की पहचान का इस्तेमाल किसी समुदाय को निशाना बनाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.


'उनका शासन एकपक्षीय नहीं था'
संपत संपत ने वीडी सावरकर की दो-खंडीय जीवनी और कई अन्य प्रमुख किताबें लिखी हैं. उन्होंने इस पर एएनआई पॉडकास्ट विद स्मिता प्रकाश में चर्चा की. उन्होंने टीपू के विवादित कार्यों और उनकी विरासत पर विस्तार से बात की. उन्होंने यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि उनका शासन एकपक्षीय नहीं था.


जयंती मनाने की भी आलोचना
इतना ही नहीं संपत ने राजनीतिक दलों द्वारा टीपू जयंती मनाने की भी आलोचना की और कहा कि टीपू की विरासत में हिंदुओं और ईसाइयों पर किए गए अत्याचार भी शामिल हैं. वह पाकिस्तान और कुछ भारतीय नेताओं के बीच टीपू की प्रशंसा को भी सवालों के घेरे में लाते हैं. (इस पूरी बातचीत का वीडियो यहां देख सकते हैं. https://www.youtube.com/watch?v=B-rZ_GKb9xk )