United Nations: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आए दिन संयुक्त राष्ट्र को सुनाते रहते हैं. इसी कड़ी में उन्होंने एक बार फिर से निशाना साधते हुए कहा कि यह वैसी 'पुरानी कंपनी’ की तरह है, जो बाजार के साथ पूरी तरह से तालमेल तो नहीं बिठा पा रहा, लेकिन जगह घेरे हुए है. विदेशमंत्री ने कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन में संवाद करते हुए कहा कि दुनिया में दो बहुत गंभीर संघर्ष चल रहे हैं, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र कहां है, अनिवार्य रूप से मूकदर्शक बना हुआ है.


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असल में जयशंकर ने ‘भारत और विश्व’ विषय पर आयोजित संवादात्मक सत्र में हिस्सा लिया और बदलती वैश्विक परिस्थितियों के बीच भारत की भूमिका और चुनौतियों पर चर्चा की. विदेश मंत्री ने कहा कि इसलिए, हम विकासशील होने के साथ-साथ विपरीत परिस्थितियों की दृष्टि से जरूरी रोड़ा भी हैं. उन्होंने इस दौरान श्रीलंका जैसे अपने पड़ोसियों सहित अन्य देशों की मदद के लिए भारत द्वारा उठाए गए कुछ कदमों का उल्लेख भी किया. 


PAK में द्विपक्षीय वार्ता की संभावना?


जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आगामी पाकिस्तान यात्रा के बारे में पूछे जाने पर एक बार फिर अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ किसी भी द्विपक्षीय वार्ता की संभावना को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि मैं वहां एक निश्चित काम, एक निश्चित जिम्मेदारी के लिए जा रहा हूं. मैं अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेता हूं. इसलिए, मैं एससीओ बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए वहां जा रहा हूं और यही मैं करने जा रहा हूं.


संयुक्त राष्ट्र एक तरह से पुरानी कंपनी


जयशंकर ने बदलते वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में विश्व निकाय के बारे में आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1945 में स्थापित इस विश्व निकाय में शुरुआत में 50 देश थे, जो इन वर्षों में बढ़कर लगभग चार गुना हो गए हैं. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र एक तरह से वैसी पुरानी कंपनी की तरह है, जो पूरी तरह से बाजार के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है, लेकिन जगह (जरूर) घेर रही है. जब यह समय से पीछे होती है, तो इस दुनिया में आपके पास स्टार्ट-अप और नवाचार होते हैं, इसलिए अलग-अलग लोग अपनी तरह से चीजें करना शुरू कर देते हैं.


कोविड पर संयुक्त राष्ट्र ने क्या किया?


उन्होंने कहा कि आज आपके पास एक संयुक्त राष्ट्र है, लेकिन इसकी कार्यप्रणाली अपर्याप्त है, इसके बावजूद यह अब भी एकमात्र सर्वमान्य बहुपक्षीय मंच है. लेकिन, जब यह प्रमुख मुद्दों पर कदम नहीं उठाता है, तो देश अपने तरीके से रास्ते तलाश कर लेते हैं. उदाहरण के लिए पिछले पांच-10 वर्षों पर विचार करें, शायद हमारे जीवन में सबसे बड़ी बात कोविड थी. अब, कोविड पर संयुक्त राष्ट्र ने क्या किया? मुझे लगता है कि इसका उत्तर है- बहुत ज्यादा नहीं.


वह केवल मूकदर्शक बना हुआ


उन्होंने आगे कहा कि विश्व में दो संघर्ष चल रहे हैं, दो बहुत गंभीर संघर्ष, उन पर संयुक्त राष्ट्र कहां है, वह केवल मूकदर्शक बना हुआ है. इसलिए, जो हो रहा है, जैसा कि कोविड के दौरान भी हुआ, देशों ने अपने-अपने तरीके से काम किया, जैसे कि कोवैक्स जैसी पहल, जो देशों के एक समूह द्वारा की गई थी. जब बात बड़े मुद्दों की आती है, तो आपके पास कुछ करने के लिए सहमत होने के लिए एक साथ आने वाले देशों का एक बढ़ता हुआ समूह होता है.