UP Politics: यूपी निकाय चुनाव में बीएसपी मुस्लिम उम्मीदवारों को अधिक टिकट देकर एक बार फिर दलित मुस्लिम का समीकरण बनाकर बाजी मारने की फिराक में है. मायावती ने मेयर के लिए घोषित 10 में छह मुस्लिम व तीन दलित उम्मीदवार उतार कर अपने पत्ते खोल दिए हैं.


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राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीएसपी पिछले विधानसभा और उससे पहले लोकसभा चुनाव में अपने घटे जनाधार से काफी परेशान है. इसी कारण एक बार फिर उसने अपनी रणनीति बदलकर दलितों और मुसलमानों को एकसाथ लाने में जुटी है.


पार्टी का फोकस मुस्लिम और दलित गठजोड़ पर
बीएसपी के एक नेता की मानें तो बीएसपी ने दस में से 6 मुस्लिम महापौर उम्मीदवार उतारकर यह साफ कर दिया है कि उसका फोकस मुस्लिम और दलित गठजोड़ की तरफ है. इससे मुकाबला काफी कड़ा होने वाला है.


बीएसपी नेता ने कहा, ‘पिछले चुनाव के समीकरण को देखें तो पता चलता है कि आगरा, झांसी और सहारनपुर हमारी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी. दलितों का हमारी पार्टी के प्रति अटूट विश्वास है. इसलिए वो हमारे पाले में रहेंगे. मुस्लिमों ने सपा के साथ रहकर देख लिया है. उन्हे कुछ नहीं मिला है. इसलिए वो जानते हैं कि बीएसपीमें उनका भविष्य सुरक्षित है.’


बिगड़ सकता है सपा का गणित
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमोदकांत मिश्रा कहते हैं कि बीएसपी की इस रणनीति से सपा का समीकरण गड़बड़ हो सकता है. चूंकि सपा का भरोसा मुस्लिम पर बहुत रहता है.


आमोदकांत आगे कहते हैं कि साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपीने 88 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि एक भी नहीं जीता. विधानसभा चुनाव के बाद से ही मायावती मुस्लिमों पर डोरे डाल रही हैं. उनके अधिकतर बयानों में सपा से मुस्लिमों को सचेत करती दिखती हैं. इसीलिए निकाय चुनाव में बसपा, दलित और ओबीसी एक करके यह समीकरण देखना चाहती है, अगर यह पर प्रयोग सफल होता है. इसी को वह लोकसभा चुनाव में भी लागू कर सकती हैं.


(इनपुट - एजेंसी)


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