प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतर धार्मिक-विवाह के एक मामले में अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा कि महिला बालिग है, इसलिए उसे बिना किसी बाधा के अपनी शर्तों पर पति के साथ जीने का अधिकार है. जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ ने महिला के पति की तरफ से दाखिल की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. 


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दरअसल, एटा की रहने वाली एक महिला ने अंतर धार्मिक विवाह किया था. जिसके बाद महिला के पिता ने अपहरण और शादी के लिए मजबूर करने का मुकदमा दर्ज कराया था. इसके बाद एटा सीजेएम कोर्ट ने महिला को बाल कल्याण समिति भेज दिया था. इसके बाद उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके माता-पिता की हिरासत में भेज दिया.


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पति ने दाखिल की थी हाईकोर्ट में याचिका
महिला के पति ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी. इस पर सुनावाई के दौरान कोर्ट ने चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट के महिला को नारी निकेतन भेजने के आदेश को भी गलत ठहराया और कहा कि ट्रायल कोर्ट, CWC एटा ने  इस मामले में कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं किया गया. डिवीजन बेंच के सामने महिला ने पति के साथ रहने की इच्छा जताई थी. बयान सुनने के बाद खंडपीठ ने पाया कि महिला अपने पति के साथ रहना चाहती है. कोर्ट ने कहा, 'किसी भी तीसरे पक्ष के प्रतिबंध, रुकावट या किसी बाधा के बिना अपनी शर्तों पर पति के साथ जीने का अधिकार है.'


27 सितंबर को एटा कोतवाली देहात पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को कोर्ट ने की रद्द कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने एटा पुलिस को दंपत्ति को सुरक्षा देने का भी निर्देश दिया है. 


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