मोहम्‍मद गुफरान/प्रयागराज : तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक एवं आध्यात्मिक माघ मेला सजकर पूरी तरह से तैयार है. 15 जनवरी को मकर संक्रांति स्नान पर्व पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे और यहीं से माघ मेले की औपचारिक तौर से शुरुआत हो जाएगी. संगम तट पर 54 दिनों तक चलने वाले माघ मेले में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया है. 


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दुनियाभर से लोग प्रयाग पहुंचते हैं 
माघ महीने में संगम स्नान का विशेष महत्व है. यही वजह है कि देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर से लोग पवित्र त्रिवेणी की धारा में आस्था की डुबकी लगाने के लिए संगम तट पर पहुंचते हैं. माघ मास में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. सच्चे मन से मांगी गई कामना पूर्ण होती है. 


यह है मान्‍यता 
पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की रचना से पहले प्रयाग में ही पहला यज्ञ किया था. इसलिए माघ मास में यहां पर की गई साधना को विशेष फलदायी माना गया है. माघ मास में त्रिवेणी संगम तट पर एक माह का कठिन कल्पवास भी होता है. इस दौरान बालू की रेत पर कल्पवासी सोते हैं, एक समय का भोजन करते हैं और हर दिन सुबह, दोपहर और शाम को संगम स्नान करते हैं. पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाला कल्पवास माघी पूर्णिमा पर्व पर समाप्त होता है. इस दौरान की गई भक्ति साधना से मनुष्य जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है. 


श्रीरामचरित मानस में भी उल्‍लेख 
गोस्वामी तुलसीदास ने प्रयागराज के माघ मास का बखान श्रीरामचरित मानस में भी किया है. उन्होंने श्रीरामचरित मानस में लिखा माघ मकर गत रवि जब होई, तीरथ-पतिहि आव सब कोई. देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी. मतलब माघ मास में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं, उसमे देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्य सब आदरपूर्वक मां त्रिवेणी की गोद में स्नान करते हैं. यही वजह है कि दुनियां का सबसे बड़ा धार्मिक प्रयागराज का माघ मेला होता है. माघ मास में हर कोई संगम की रेती पर जप, तप और साधना के लिए पहुंचता है.