Veer Bal Diwas 2023: भारत में औरंगजेब के शासन काल के दौरान इस्लाम कबूल न करने वाले लोगों की हत्या कर दी जाती थी. ऐसे में अपने धर्म और देश के साथ खड़े गुरु गोविंद सिंह जी के बेटों को औरंगजेब ने जिंदा दीवारों में चिनवा दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद 26 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान की स्मृति में बीर बाल दिवस (साहिबजादा दिवस) मनाया जाने लगा. ऐसे में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ शहादत को समर्पित वीर बाल दिवस (साहिबजादा दिवस) के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में सम्मिलित होंगे.  


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औरंगजेब का सामना जब गुरु गोविंद सिंह जी के बेटों से हुआ तो उन्होंने इस्लाम कबूल करने से इंकार कर दिया. साथ ही इसका विरोध किया. औरंगजेब ने इसकी सजा में दोनों साहिबजादों को दीवार में चुनवाने का फैसला सुनाया. उस समय गुरू गोविंद सिंह के पुत्रों जोरावर सिंह और फतेहसिंह जी की उम्र मात्र 9 और 6 वर्ष थी. बताया जाता है, कि जिस समय दोनों को दीवार में चुनवाया जा रहा था तब भी वे जपजीसाहिब का पाठ कर रहे थे.


साहिबजादों का अंत में सिर धड़ से अलग कर दिया गया था. तलवार अपनी गर्दन तक आने के बाद भी उनमें लेश मात्र का डर नहीं था, बल्कि अपने देश धर्म के लिए बलिदान होने पर गर्व था. ऐसे वीर पुत्रों को समस्त भारत प्रणाम करता है. जिन्होंने अपने धर्म के लिए नन्हीं सी आयु में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. जिनके बलिदान की गाथा युगों युगों तक गाई जाएगी. 


क्या है पूरी कहानी 
आनंदपुर छोड़ते समय सरसा नदी पार करते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार बिछुड़ गया था. माता गुजरी जी और दो छोटे पोते साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के साथ गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दो बड़े भाइयों से अलग-अलग हो गए. अरमा नदी पार करते ही गरु गोबिंद सिंह जी पर शानों की सेना ने हमला बोल दिया. 
सरसा नदी पर बिछुड़े माता गुजरीजी और छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी 7 वर्ष और साहिबजादा फतेह सिंह जी 5 वर्ष की आयु में गिरफ्तार कर लिए गए थे.  सरहंद के नवाब वजीर खां ने उन्हें कैद कर लिया. कई बार उन्हें दरबार में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार के लालच और धमकियां देते रहे. 


दोनों साहिबजादे उन्हें गरज कर जवाब देते थे. कहते थे, कि हम अकाल पुर्ख (परमात्मा) और अपने गुरु पिताजी के आगे ही सिर झुकाते हैं, किसी ओर को सलाम नहीं करते. हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म और जुल्म के खिलाफ है. हम तुम्हारे इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे लेकिन झुकेंगे नहीं.  जिसके बाद वजीर खां ने उन्हें जिंदा दीवारों में चिनवा दिया. 


साहिबजादों की शहीदी के पश्चात बड़े धैर्य के साथ ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए माता गुजरीजी ने अरदास की और अपने प्राण त्याग दिए. तारीख 26 दिसंबर, पौष के माह में संवत् 1761 को गुरुजी के प्रेमी सिखों द्वारा माता गुजरीजी तथा दोनों छोटे साहिबजादों का सत्कारसहित अंतिम संस्कार कर दिया गया.