Pran Pratishtha of Idol: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा का क्रार्यक्रम होना है. इस दौरान वहां भगवान श्री राम की पांच वर्ष की आयु वाली मूर्ति स्थापित की जाएगी. भगवान श्री राम की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के दौरान बहुत बड़ा धार्मिक अनुष्ठान किया जाएगा. सनातन धर्म के ग्रंथों के अनुसार मंदिर में भगवान की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के बिना उनका पूजन अधूरा माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती हैं और इसका क्या महत्व है. 


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इंसान जब भी किसी मंदिर में जाता है तो उसे विश्वास होता है कि भगवान  उसकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे. भगवान की मूर्ति के सामने लोग अपनी फरियाद कहते हैं. उनको यकीन होता है कि भगवान उनकी फरियाद जरूर सुनेंगे और पूरा भी करेंगे. मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा वाली भगवान की मूर्ति सजीव रूप मानी जाती है. यही कारण है कि भगवान अपने दुख-दर्द लेकर उनके दरबार में पहुंचते हैं. 


किसी भी भगवान की मूर्ति या चित्र तभी पूजनीय हो जाती है,जब उसकी प्राण-प्रतिष्ठा होती है. प्राण-प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के बाद ही मंदिर में भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनकी पूजा की जाती है. मंदिर में स्थापित की जाने वाली मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा से पहले महज एक पत्थर या मिट्टी की प्रतिमा मात्र होती है, लेकिन जब उनमें प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है तो ऐसा माना जाता है कि भगवान का उसमें वास हो जाता है. 


प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में विद्वान, पंडित और कर्मकांडी पूजा, मंत्रों का जाप, स्नान के जरिए भगवान की मूर्ति को स्थापित करते हैं. प्राण प्रतिष्ठा के समय जो पुजारी भगवान की प्रतिमा लेकर मंदिर में प्रवेश करता है तो सबसे पहले उस पुजारे के पैर धोए जाते हैं. इसके बाद मूर्ति को स्नान कराने के बाद वस्त्र पहनाए जाते हैं.


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इसके बाद भगवान की मूर्ति को पूर्व दिशा की ओर स्थापित किया जाता है और फिर मंत्रों के जरिए मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित किए जाते हैं. इसके बाद भगवान की प्रतिमा के चारों तरफ सुगंधित जल का छिड़काव कर उनको फूल अर्पित किए जाते हैं. 


जानकारों का कहना है कि गृहस्थ जीवन में घर में बने मंदिर में स्थापित किए जाने वाले भगवान की मूर्ति या तस्वीरों का प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान नहीं होता है. यह कार्य केवल मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्ति के लिए किया जाता है, क्योंकि जिस मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित किए जाते हैं, फिर कई सारे नियमों का पालन करना जरूरी होता है, जो रोजाना घरों में किया जाना लगभग असंभव होता है.


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उनका कहना है कि प्राण प्रतिष्ठित किए जाने के बाद खुद भगवान उस प्रतिमा में उपस्थित हो जाते हैं. प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान के लिए शुभ तिथि और मुहूर्त का होना अनिवार्य है. पंचाग देखकर, जिसके पांच अंग हैं. यानी कि नक्षत्र, तिथि, वार, योग कर्म देखकर ही शुभ कार्य किए जाते हैं. 


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