Janmashtami 2024: हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के भक्त इस दिन का सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं लेकिन यूपी में एक ऐसा भी जिला है, जहां के पुलिसकर्मी जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं, इस दिन को 'काला दिवस' कहा जाता है. ये है कुशीनगर जिला. जहां जन्माष्टमी के त्योहार से जुड़ी ऐसी भयानक घटना जुड़ी है, जिसका मंजर याद कर आज भी पुलिसकर्मियों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 


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क्या है पूरी कहानी?
घटना करीब 30 साल पुरानी है. 29 अगस्त 1994 को कुशीनगर में डाकू बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे. सूचना मिली तो पुलिस मोर्चा संभालने निकल पड़ी. जन्माष्टमी के चलते शहर में खुशियों का माहौल था. बेहद उत्साह से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के जश्न में डूबे लोगों को यह नहीं मालूम था कि यह दिन काला दिन साबित होने वाला है. इस काली तारीख को बहुचर्चित पचरुखिया कांड हुआ. रोंगटे खड़े कर देने वाली यह घटना अभी भी पुलिसकर्मियों के जेहन में जिंदा है.


डाकुओं का आतंक
कुशीनगर में उस वक्त जंगल में डाकुओं का ख़ौफ़ था. रेता और जंगल क्षेत्र में यह डाकू छिपे रहते थे, क्योंकि बिहार से सटा होने के चलते डाकुओं का जंगलराज चलता था. अपराध करने के बाद डाकू बिहार में शरण लेते थे. पुलिस ने इनका सफाया करने के लिए प्लान तैयार किया. डाकुओं के सफाए के लिए तीन टीमें बनाई गईं.


पचरुखिया कांड
पडरौना पुलिस सूचना मिली कि डाकू बेचू मास्टर व रामप्यारे कुशवाहा उर्फ सिपाही पचरुखिया के ग्राम प्रधान के घर डकैती डाल उनकी हत्या का योजना बना रहे थे. तत्कालीन कोतवाल योगेंद्र प्रताप ने यह जानकारी एसपी बुद्धचंद को दी. एसपी ने कोतवाल को थाने में मौजूद फोर्स के अलावा मिश्रौली डोल मेला में लगे जवानों को लेकर मौके पर पहुंचने का निर्देश दिया. बदमाशों की धर पकड़ के लिए टीम बनाई गई.  इसकी जानकारी कहीं से डाकुओं को लग गई.


6 पुलिसकर्मी शहीद
पुलिस नदी में डेंगी नाव पर सवार होकर निकली, जहां बदमाश दूसरी तरफ उनका इंतजार कर रहे थे. अचानक बदमाशों ने पुलिसकर्मियों पर फायरिंग शुरू कर दी. दोनों तरफ से फायरिंग के बीच पुलिसकर्मियों की नाव नदी में पलट गई. रात में पानी में  डूबने की वजह से 6 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. जिसमें  दो दारोगा और 4 सिपाही शामिल थे. इसके बाद से कुशीनगर के पुलिसकर्मी जन्माष्टमी का त्योहार नहीं मनाते हैं. 


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