चौरी-चौरा कांड से गोरखनाथ पीठ का भी रहा है गहरा नाता, जानिए इसके पीछे की कहानी
सीएम योगी के दादा गुरु महंत दिग्विजय नाथ ने चौरी चौरा कांड के दौरान क्रांतिकारियों को संरक्षण, आर्थिक मदद और अस्त्र-शस्त्र मुहैया कराया. वहीं गांधीजी की अगुवाई में चल रहे असहयोग आंदोलन के लिए अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी.
गोरखपुर: जंगे आजादी के आंदोलन में गोखरपुर के योगदान के जिक्र के बिना अधूरा है. आजादी की पहली क्रांति 1857 से लेकर चौरी चौरा कांड तक पूर्वांचल के रणबांकुरों की वीरता के किस्से मशहूर हैं.इन्हीं में से एक किस्सा उस समय पीठ में मौजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु ब्रह्मलीन दिग्वजयनाथ का भी है. 4 फरवरी 1922 को हुए चौरी चौरा कांड में महंत दिग्वजयनाथ का भी नाम सामने आया था.
चितौड़गढ़ की माटी का था असर
महंत दिग्वजयनाथ राजस्थान के चित्तौड़ के रहने वाले थे. वही चित्तौड़, जहां के महाराणा प्रताप आज भी देश प्रेम के जज्बे और जुनून की मिसाल हैं. चित्तौड़ की माटी की तासीर का असर दिग्विजयनाथ पर भी था. अपने विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने मंदिर प्रागंण में अपने धर्म का प्रचार कर रहे इसाई समुदाय को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था. उस समय गांधीजी की अगुवाई में पूरे देश में कांग्रेस की आंधी चल रही थी. दिग्विजयनाथ भी इससे अछूते नहीं रहे. उन्होंने जंग-ए-आजादी के लिए जारी क्रांतिकारी आंदोलन और गांधीजी की अगुआई में जारी शांतिपूर्ण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
असहयोग आंदोलन के लिए छोड़ दी थी स्कूल
एक ओर जहां उन्होंने उस समय के क्रांतिकारियों को संरक्षण, आर्थिक मदद और अस्त्र-शस्त्र मुहैया कराया. वहीं गांधीजी की अगुवाई में चल रहे असहयोग आंदोलन के लिए अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी. चौरीचौरा कांड (चार फरवरी 1922) के करीब साल भर पहले आठ फरवरी 1921 को जब गांधीजी का पहली बार गोरखपुर आना हुआ था, तब वह रेलवे स्टेशन पर उनके स्वागत और सभा स्थल पर व्यवस्था के लिए स्वयं सेवक दल के साथ मौजूद थे. नाम तो उनका चौरी-चौरा कांड में भी आया था, पर वह पूरे सम्मान के साथ बरी हो गए थे.
गांधी जी के इस फैसले से थे असहमत
देश के अन्य नेताओं की तरह चौरी-चौरा घटना के बाद गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन के वापस लेने के फैसले से वह भी असहमत थे. बाद के दिनों में जब गांधीजी द्वारा मुस्लिम लीग को कथित तौर पर तुष्ट करने की नीति से उनका कांग्रेस और गांधी से मोह भंग होता गया. इसके बाद उन्होंने वीर सावरकर और भाई परमानंद के नेतृत्व में गठित अखिल भारतीय हिंदू महासभा की सदस्यता ग्रहण कर ली.
1967 में पहली बार बने थे सांसद
महंत दिग्विजय नाथ 1967 में हिंदू महासभा के बैनर पर संसद में पहुंचे थे और दो साल बाद ही 1969 में उनका निधन हो गया था, उनके निधन पर देश भर के नेताओं ने शोक जताया था. अटल बिहारी वाजपेई ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा था कि "महंत दिग्विजय नाथ भारत के निर्माण में अपना योगदान दे रहे थे. वह स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने 1921 के असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था".
चौरी-चौरा शताब्दी समारोह का साल भर होगा भव्य आयोजन
गोरक्षपीठ की अगली तीन पीढिय़ों ने इस सिलसिले को न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि उसे भी विस्तार दिया. उनके शिष्य ब्रहमलीन महंत अवैद्यनाथ के बतौर उत्तराधिकारी उनके साथ दो दशक से लंबा समय गुजारने वाले सीएम योगी पर भी इस पूरे परिवेश का असर पड़ा. चौरी चौरा कांड के सौ वर्ष 5 फरवरी को पूरे हो रहे हैं. सीएम योगी इस ऐतिहासिक घटना को यादगार बनाने के लिए साल भर प्रदेश में भव्य कार्यक्रमों का आयोजन करवाएंगे.
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