टनाटन तांबा पीटने वाली आवाजों से गुलजार टम्टा मोहल्ले में सन्नाटा, कंगाली के कगार पर अल्मोड़ा के कारीगर
Almora News : यहां कारीगरी कर बनाए गए तांबे के बर्तनों की देश ही नहीं विदेश में डिमांड होती थी. चार दशक पहले टम्टा मोहल्ले में हाथों से तांबे के बर्तन बनाने वाले शिल्पकार मोटा मुनाफा कमाते थे, लेकिन आज हस्त निर्मित ताम्र उद्योग खत्म होने के कगार पर आ गया है.
देवेन्द्र सिंह बिष्ट/अल्मोड़ा : अल्मोड़ा में हस्त निर्मित तांबा उद्योग खत्म होने के कगार पर है. यहां टम्टा मोहल्ले में हाथों से कारीगरी कर बनाए गए तांबे के बर्तनों की देश ही नहीं विदेश में डिमांड होती थी. चार दशक पहले टम्टा मोहल्ले में हाथों से तांबे के बर्तन बनाने वाले शिल्पकार मोटा मुनाफा कमाते थे, लेकिन समय की मार और आर्थिक तंगी ने आज हस्त निर्मित ताम्र उद्योग की कमर तोड़ दी है.
चार दशक पहले तक थी अलग पहचान
अल्मोड़ा का हस्त निर्मित ताम्र उद्योग चार दशक पहले उत्तराखंड की सबसे बड़ी पहचान हुआ करता था. सदियों से अल्मोड़ा के टम्टा मोहल्ले में शादी-विवाह, नामकरण, पूजा-पाठ, सजावट के सामान और रोजाना इस्तेमाल होने वाले तांबे के बर्तनों में मनमोहक कारीगरी की जाती रही है. नगर के वरिष्ठ लोग बताते हैं कि चार दशक पहले नगर के आसपास तांबे की खान हुआ करती थी, जहां से तांबा निकालकर शिल्पकार हस्त निर्मित तांबे के बर्तन बनाया करते थे. यहां ताम्र शिल्पकारों की कारीगरों ने शानदार काम कर राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी जीते हैं.
तांबा पीटने की आवाज मधुर संगीत की तरह गूंजती थी
चार दशक पहले अल्मोड़ा का हस्त निर्मित ताम्र उद्योग आसमान की ऊंचाइयों पर था. उस दौर में घरों में इस्तेमाल होने वाले सभी बर्तन तांबे के हुआ करते थे. देश-विदेश में भी तांबे के बर्तन की खूब मांग हुआ करती थी. यही वजह रही की टम्टा मोहल्ला में दिन-रात तांबा पीटने की आवाज मधुर संगीत की तरह गूंजती रहती थी. चार दशक पहले टम्टा मोहल्ले के ताम्र शिल्पियों के हाथ में हमेशा हथोड़ा और जेब में मोटा मुनाफा होता था, लेकिन आधुनिकता ने अल्मोड़ा के ताम्र उद्योग को जमीन पर ला दिया.
महज पांच परिवारों तक सिमटा कारोबार
आधुनिक समय में तांबे के स्थान पर स्टील, एल्यूमिनयम, प्लास्टिक सहित अन्य धातुओं का इस्तेमाल होने लगा. बढ़ते औद्योगिकरण और मशीनीकरण ने तांबे के उत्पादों में सैकड़ों डिजाइनों की महीन कारीगरी कर डाली. मशीनों से बने तांबे के बर्तन हस्त निर्मित तांबे से सस्ते होने के कारण ताम्र शिल्पियों के आर्थिक हालात बद से भी बदतर हो गई. परेशानियों से तंग आकर ताम्र शिल्पियों ने अपना पुस्तैनी काम छोड़ दिया. चार दशक पहले करीब 70 परिवार तांबे के बर्तन बनाते थे, लेकिन आज महज 5 परिवार तांबे के बर्तन बना रहे हैं.
युवा पुश्तैनी काम छोड़ पलायन को मजबूर
आधुनिकता, औद्योगीकरण और सरकारी उपेक्षा के चलते अल्मोड़ा नगर के ताम्र शिल्पी दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद 100 से 200 रुपये ही कमा पा रहे हैं. इसके कारण युवा पुश्तैनी काम छोड़ पलायन के लिए मजबूर हो गया है. अल्मोड़ा जिले के सबसे बड़े बर्तन कारोबारी अनोखे लाल हरिकिशन ताम्र शिल्पियों के बर्तनों को खरीदारों तक पहुंचा रहे हैं. अनोखे लाल जिले के 15 से अधिक ताम्र शिल्पी परिवारों से हस्त निर्मित तांबे के बर्तन, मूर्तियां, और सजावट के सामान बना रहे हैं.
विदेशी पर्यटकों में आज भी क्रेज
बर्तन कारोबारी का कहना है कि हस्त निर्मित तांबे के उत्पादों का विदेशी ट्यूरिस्टों में आज भी क्रेज है. भारत के कई क्षेत्रों के साथ अमेरिका, एब्रोड और इटली से आए पर्यटक तांबे के बने सामान 6 हजार रुपये तक मोटे दामों पर खरीद रहे हैं. इन सामानों पर ऐपण के 2 से 3 हजार अतिरिक्त मिल जाते हैं.
ताम्र उद्योग समाप्त होने के मुहाने पर
सदियों के सफर में अल्मोड़ा के ताम्र उद्योग ने कई दौर बदलते देखे हैं. आजादी के बाद सपा, बसपा कांग्रेस और बीजेपी सहित तमाम सरकारों की उपेक्षा भी देखी है. सैकड़ों परिवार पालने वाला ताम्र उद्योग अनदेखी के कारण अब समाप्त होने के मुहाने पर खड़ा है. अब भी अगर सरकार ने ताम्र उद्योग की सुध नहीं ली, तो कुछ ही सालों में अल्मोड़ा का ऐतिहासिक हस्त निर्मित ताम्र उद्योग खुद इतिहास बन जाएगा.
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