Uttarakhand First CM Story: जब साल 2000 में उत्तराखंड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, तो राज्य के पहले मुख्यमंत्री के चयन को लेकर गहमागहमी का दौर चल रहा था. राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि मुख्यमंत्री गढ़वाली होना चाहिए या कुमाऊंनी. लेकिन नाम सामने आया जनसंघ के अनुभवी नेता और अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी के साथी नित्यानंद स्वामी का. 


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भविष्यवाणी जो सच हुई
72 वर्षीय नित्यानंद स्वामी के लिए यह वह लम्हा था, जिसकी भविष्यवाणी उनके नाना ने उनके जन्म के समय कर दी थी. उन्होंने कहा था, “यह लड़का एक दिन राजा बनेगा.”और आखिरकार, 9 नवंबर 2000 को वह दिन आया जब नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री बने.  


शुरुआत से ही विरोध
हालांकि, मुख्यमंत्री बनने के साथ ही नित्यानंद स्वामी को अपनी ही पार्टी के भीतर विरोध का सामना करना पड़ा. शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा के कई बड़े नेता जैसे भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक और नारायण रामदास शामिल नहीं हुए.  


उनके विरोधियों का एक बड़ा तर्क यह था कि पहाड़ी राज्य का मुख्यमंत्री गैर-पहाड़ी कैसे हो सकता है. यह मुद्दा इतना बढ़ा कि अप्रैल 2001 में राज्य के सूचना एवं लोक संपर्क विभाग को बाकायदा एक विज्ञप्ति जारी करनी पड़ी, जिसमें बताया गया कि नित्यानंद स्वामी का परिवार पिछले सौ सालों से देहरादून में रह रहा है.  


स्वामी खुद भी इस आलोचना का जवाब देते हुए कहते थे, “उत्तराखंड में जितने भी लोग हैं, वे सब बाहर से आए हैं. फर्क बस इतना है कि कोई चार सौ साल पहले आया तो कोई सौ साल पहले. मेरे पिता 1922 में देहरादून आए थे. अगर गोविंद बल्लभ पंत और एनडी तिवारी जैसे नेता मैदानी होते हुए भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं, तो मेरे लिए सवाल क्यों?”  


मुख्यमंत्री कार्यकाल और उपलब्धियां
नित्यानंद स्वामी का कार्यकाल सिर्फ 11 महीने और 20 दिन का रहा. जिस पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया, उसी ने उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले उन्हें पद से हटाने का फैसला किया.  


उनके कार्यकाल में कुछ ऐसे फैसले भी हुए, जिन्हें आज भी सराहा जाता है. इनमें सबसे प्रमुख था आबकारी नीति में बदलाव. स्वामी ने शराब व्यापार को माफियाओं के चंगुल से निकालकर इसे निगमों और स्थानीय लोगों के लिए आय का स्रोत बनाया.  


सरल जीवन शैली के प्रतीक
अपने साधारण जीवन के लिए नित्यानंद स्वामी हमेशा याद किए जाएंगे. मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी उन्होंने कभी बड़े सरकारी बंगले या भवन में रहने का विकल्प नहीं चुना.  


नित्यानंद स्वामी का मुख्यमंत्री के रूप में सफर भले ही छोटा रहा हो, लेकिन उन्होंने उत्तराखंड की राजनीति और प्रशासन में एक खास छाप छोड़ी, जो आज भी याद की जाती है. 


Disclaimer: लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. जी यूपीयूके इसकी प्रामाणिकता का दावा या पुष्टि नहीं करता.