Uttarakhand News: उत्तराखंड के गंतोला गांव में आज तक सड़क नही बनी है, लोगों का कहना है कि नेता इलेक्शन के समय इसको बनाने के वादे तो कर देते हैं लेकिन बाद में सभी चीज़ों को भूल जाते हैं.  पैदल चलने की जगह न होने के चलते बीमार व्यक्ति को डोली की मदद से रास्ता पार करवाते हैं, वही स्कूली बच्चों को भी स्कूल जाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती है. चलने की व्यवस्था न होने के चलते यहां की स्थानीय महिलाओं ने ही खुद सड़क बनाने का फैसला लिया है , जिसमें यहां के युवा भी इनका खूब साथ दे रहे हैं. गतोला में क़रीब 54 परिवार रहते हैं जिनकी आबादी लगभग 300 है. ग्रामीण मे रोष भी है कि इन समस्याओं के चलते क्षेत्र का विकास भी नही हो पाया है और यहां के प्रमुख तीर्थ क्षेत्र शैलश्वर गुफा और गुप्त गंगा भी लोगों की नजरों से कोसों दूर है


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महिलाओ ने 27 दिन में खुद बनाई सड़क
हर पांच वर्ष मै चुनाव आते है, कभी लोकसभा के कभी विधानसभा के कभी जिला पंचायत के तो कभी नगरपालिका, नेता आते है बड़े बड़े लोक लुभावन वादे  करते हैं. आज भी पहाड़ की महिलाओं का जीवन पहाड़ जैसा ही विशाल और काफी मेहनत भरा है. यहां की महिलाएं परिवार के साथ खेत, जंगल, पालतू जानवरों की जिम्मेदारी तो निभाती ही हैं साथ ही अब अपने गांव का विकास भी खुद ही करने की जिम्मेदारी भी निभा रहीं हैं.


ऐसा ही कुछ  गंगोलीहाट के गंतोला गांव में हुआ है यहां की महिलाओं ने सरकार को आईना दिखाते हुए युवाओं के साथ मिलकर 27 दिन में तीन किमी सड़क खुद ही खोद डाली है.घर के दैनिक काम करने के बाद गंतोला गांव की महिलाएं हाथ में बेलचा, कुदाल, फावड़ा, गेठी लेकर निकल पड़ती हैं अपने गांव तक सड़क खोदने के काम में, जिन्हें गांव के विकास के आगे थकान बिल्कुल भी महसूस नहीं होती. अब मात्र 1 किलोमीटर सड़क खोदनी शेष रह गई है. 3 किलोमीटर सड़क खोदने में महिलाओं को 27 दिन का समय लगा.


राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड के कई गांवों में सड़क के लिए ग्रामीण संघर्ष ही कर रहे हैं. जिसे हुक्मरानों ने अभी तक नजरंदाज ही किया है. दरअसल गंगोलीहाट के मणकनाली से चार किमी सड़क के लिए लगातार मांग कर रहे गंतोला के ग्रामीणों को शासन-प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली. सरकारी अमले की अनदेखी से आहत गांव की महिलाओं और युवाओं ने ग्राम प्रधान भावना देवी के नेतृत्व में खुद ही सड़क बनाने का निर्णय लिया.


यहां के स्थानीय निवासी पुष्कर और सभी महिलाओं का कहना है कि बीमार व्यक्तियों को सड़क तक पहुंचाने के लिए डोली से मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है. इसके बाद ही उन्हें इलाज मिल पाता है. गांव के बुजुर्ग कई महीनों में अपनी पेंशन लेने जा पाते हैं. स्कूली बच्चे पैदल ही जंगलों का रास्ता पार कर स्कूल पहुंच रहे हैं ऐसे में जब किसी ने उनकी परेशानी नहीं सुनी तो खुद ही सड़क गांव तक पहुंचाने का फैसला लिया गया.


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