Uniform Civil Code: क्या है समान नागरिक संहिता?, 1962 से भारत के इस राज्य में लागू है
What Is Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता यानी यूनिफार्म सिविल कोर्ड इस समय उत्तराखंड में चर्चा का विषय बना हुआ है. यहां आगे जानें क्या है समान नागरिक संहिता क्या है, कब और कैसे शुरू हुआ यह आंदोलन?....
Dehradun: सीएम पुष्कर धामी की सरकार मंगलवार 06 फरवरी 2024 को विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश करने वाली है. विपक्ष इसका विरोध कर रहा है. इस विधेयक को लेकर सभी ओर चर्चाएं हो रही है. आइए जानते हैं कि समान नागरिक संहिता क्या है. क्यों सरकार इसको लागू करना चाहती है औऱ इसके लागू होने के बाद क्या प्रभाव पडेगा. आगे जानें समान नागरिक संहिता की पूरी टाइमलाइन....
समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक कानून सुनिश्चित करेगी, जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे संपत्ति, विवाह, विरासत और गोद लेने आदि में लागू होगा। इसका मतलब यह है कि हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा व्यक्तिगत कानून तकनीकी रूप से भंग हो जाएंगे. आसान भाषा में कहे तो समान नागरिक संहिता का मतलब एक ऐसा प्रावधान जिसके लागू होने के बाद राज्य में विवाह, तलाक, संपति और गोद लेने जैसे नियम सबके लिए एक समान होंगे.
पहली बार कब उठा यह मामला?
समान नागरिक संहिता की उत्पत्ति औपनिवेशिक भारत में हुई, जब ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया गया था. यह भी सिफारिश की गई थी हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस तरह के संहिताकरण के बाहर रखा जाए. ब्रिटिश सरकार सभी नागरिकों को समान कानून देना चाहती थी.
इस समिति का हुआ गठन
ब्रिटिश सरकार ने व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों में हुई वृद्धि को देखते हुए 1941 में हिंदू कानून को संहिता बद्ध करने के लिए बीएन राव समिति बनाई. इस समिति का काम हिंदू कानूनों की आवश्यकता के प्रश्न की जांच करना था. समिति ने शास्त्रों के अनुसार, एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की, जो महिलाओं को समान अधिकार देगा.
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1956 में अपनाया गया हिंदू कोड बिल
समिति ने 1937 के अधिनियम की समीक्षा की और हिंदुओं के लिए विवाह और उत्तराधिकार के नागरिक संहिता की मांग की. राव समिति की रिपोर्ट का प्रारूप बीआर आंबेडकर की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति को प्रस्तुत किया था. 1952 में हिंदू कोड बिल को दोबारा पेश किया गया। बिल को 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में अपनाया गया.
भाजपा के एजेंडे में रहा हनेशा शामिल
समान नागरिक संहिता यानी यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा लंबे समय से बहस का केंद्र रहा है. भाजपा के एजेंडे में भी यह शामिल रहा है। पार्टी जोर देती रही है कि इसे लेकर संसद में कानून बनाया जाए. भाजपा के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी यह शामिल था.
इस राज्य में लागू है UCC
सामान नागरिक संहिता को लेकर बीच- बीच में लगातार आवाज उठती रही है, लेकिन देश में गोवा एक ऐसा राज्य है जहां 1962 में इसे लागू कर दिया गया था. गोवा सिविल कोड, गोवा का UCC है. यहां सभी धर्मों के लिए समान क़ानून लागू हैं. जैसे: गोवा में शादी के बाद (अगर शादी के वक़्त कोई ऐलान अलग से न किया गया हो), दोनों एक-दूसरे की संपत्ति के बराबर के हकदार होंगे. तलाक की स्थिति में पत्नी आधी संपत्ति की हकदार होती है. मां-बाप को कम से कम आधी संपत्ति अपने बच्चों के साथ साझा करनी होती है. जिसमें बेटियां भी बराबर की हिस्सेदार होती हैं. शादी के रजिस्ट्रेशन के 2 चरण होते हैं. पहले चरण में औपचारिक तौर पर शादी की घोषणा की जाती है. इस दौरान लड़का-लड़की और उनके मां-बाप का होना ज़रूरी है (अगर लड़की की उम्र 21 साल से कम है). इसके अलावा बर्थ सर्टिफिकेट, डोमिसाइल और रजिस्ट्रेशन की भी ज़रुरत होती है. दूसरे चरण में शादी का पंजीकरण होता है. इसमें दूल्हा-दुल्हन के अलावा 2 गवाह का होना ज़रूरी है. चाहे कोई किसी भी धर्म का हो, वो एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकता. गोवा में इनकम टैक्स पति-पत्नी दोनों की कमाई को जोड़कर लगाया जाता है. अगर पति और पत्नी दोनों कमाते हैं तो दोनों की कमाई को जोड़ा जाता है और कुल कमाई पर टैक्स लगाया जाता है.