Diwali 2024: दीपावली के दिन कुछ लोग जुआ भी खेलते हैं. वैसे तो जुआ खेलना एक बुरी आदत है लेकिन दिवाली के रोज जुआ खेला जाता रहा है. कुछ लोग कहते हैं कि इस दिन लोग जुआ इसलिए खेलते हैं जिससे कि वे अपने भाग्य की परीक्षा कर सकें. हालांकि कुछ लोग जुआ खेलने को शिव पार्वती की उस कथा से भी जोड़कर देखते हैं जिसमें कि खेल के दौरान शिवजी माता पार्वती से जुए के खेल में हार गए थे. विद्वान दीवाली के दिन जुआ खेलने को शास्त्र सम्मत मानते हैं. उनका कहना है कि कुछ लोग गलत तौर तरीके प्रयोग में ले आते हैं जिससे कि प्रथाएं बदनाम हो जाती है.


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ऐसा नहीं है कि लोग जुए की बुराई से परिचित नहीं हैं लेकिन फिर भी समाज में जुए को लेकर एक रोमांच का भाव रहता है. लोग इसे भाग्य से जोड़कर देखते हैं. आज जिस तरह लोग ताश से जुआ खेलते हैं पहले ऐसा नहीं होता था. समय के साथ जुआ खेलने के तौर तरीकों में भी बदलाव हुआ है. जुएं को लेकर सबसे मशहूर कहानी है पांडवों की.


पांडवों ने खेला था जुआ


महाभारत की कहानी तो एक तरह से जुएं के इर्द गिर्द ही दिखाई पड़ती है. जुआ खेलने के दौरान शकुनि और दुर्योधन ने पांडवों संग छल किया. इस तरह पांडव अपना राज्य हार गए. जुएं में युधिष्ठिर अपने भाइयों को हारे और फिर पत्नी द्रौपदी को भी हार बैठे. एक जुएं ने उनका जीवन बदल कर रख दिया. उनको जंगल जाना पड़ा. जुआ तो भारत में पौराणिक काल से खेला जाता रहा है. मदिरालय,वेश्यालयो में जुएं का खेल खेला जाता था. प्राचीन समय से देश में कई जुआघर रहे हैं. मगध आज के बिहार में कई जुआघर थे. सम्राट अशोक के शासन काल में भी लोग जुआ खेलते थे.


आपको बता दें कि पहले पत्थर या लकड़ी की गोटी से चौसर खेला जाता था. चौसर में चार भाग होते थे. हर भाग में 16 खाने होते थे. इसके लिए सफेद पत्थर के पासे बनाए जाते थे. जिसमें 1 से 6 तक अंक लिखे रहते थे. बाद में यह खेल बाजार में खेला जाने लगा. कई जगह तो कानूनी रूप से जुआ खेला जाने लगा. इस तरह कसीनो अस्तित्व में आए.


आज के समय में लोग ताश से जुआ खेलते हैं. कुछ लोग दिवाली के रोज जुआ खेलने को शुभ मानते हैं और विश्वास करते हैं कि इससे लक्ष्मी का आगमन होता है. पुराण कहते हैं कि जुआ खेलने से व्यक्ति को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है. ऐसे व्यक्ति के घर में लक्ष्मी वास नहीं करती और उसका ऐश्वर्य भी लुप्त हो जाता है. गरुड़ पुराण में तो जुआरियों के लिए कठिन सजा का प्रावधान है.