Kathgodam Railway Station: काठगोदाम रेलवे स्टेशन उत्तराखंड के सबसे पुराने रेलवे स्टेशन में से एक है. रेलवे स्टेशन का यह नाम काठगोदाम शहर पर रखा गया है. काठगोदाम रेलवे स्टेशन सैलानियों के बीच भी मशहूर है क्योंकि यह नैनीताल के पास का स्टेशन है और इसकी नैनीताल से दूरी सिर्फ 35 किलोमीटर है. काठगोदाम कुमाऊं क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है. जिन यात्रियों को नैनीताल,अल्मोड़ा, रानीखेत, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जाना होता है उनके लिए काठगोदाम एक अहम स्टेशन है.


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क्या रहा है इतिहास: 1870 तक अंग्रेजों ने यहां पटरियों की नींव रख दी थी. 1884 में अंग्रेजों ने हल्द्वानी और इसके बाद काठगोदाम तक रेलवे लाइन बिछाई थी. शुरुआत में तो यहां बस मालगाड़ी ही चलती थी लेकिन आगे चलकर पैसेंजर ट्रेन भी चलने लगी. यहां पहली ट्रेन लखनऊ से पहुंची थी. तभी से कारोबार के लिहाज से इस जगह की अहमियत बढ़ गई.


आपको बता दें कि 19वीं सदी में काठगोदाम लकड़ियां के कारोबार का मुख्य केंद्र था. पहाड़ों से लकड़ियां यहां लाई जाती थीं. गोदाम के रूप में इस जगह का इस्तेमाल होता था इसलिए इसका नाम काठगोदाम हो गया. 19वीं सदी के खत्म होते-होते काठगोदाम 66 मील लंबे रोहिलखंड और कुमाऊं रेलवे के एक छोर पर हुआ करता था. बरेली से काठगोदाम के बीच लाइन बिछाई गई थी. हालांकि आम आदमी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता था.


यह साल 1943 था जब रोहिलखंड और कुमाऊं रेलवे भारत सरकार के नियंत्रण में आ गया. उस समय इसे अवध और तिरहुत रेलवे में ही मिला लिया गया था. बाद में जब देश आजाद हुआ तो 1952 में अवध और तिरहुत रेलवे को असम रेलवे और बॉम्बे, बड़ौदा और मध्य भारत रेलवे के कानपुर-अछनेरा खंड के साथ मिलाया गया और पूर्वोत्तर रेलवे बनाया गया.


काठगोदाम से कौन सी ट्रेनें चलती हैं: काठगोदाम से नई दिल्ली-काठगोदाम शताब्दी एक्सप्रेस, लखनऊ जंक्शन-काठगोदाम एक्सप्रेस, काठगोदाम एक्सप्रेस, रानीखेत एक्सप्रेस, उत्तराखंड संपर्क क्रांति एक्सप्रेस, बाघ एक्सप्रेस चलती हैं.


ग्रीन और ईकोफ्रेंडली स्टेशन: हिमालय की तलहटी में स्थित काठगोदाम रेलवे स्टेशन एक ग्रीन रेलवे स्टेशन है. खास बात यह है कि स्टेशन पर सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. यहां आपको प्लास्टिक या दूसरे तरह का कूड़ा कचरा ना के बराबर नजर आएगा.