Ramnath Kovind Birthday: भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपना 79वां जन्मदिन मना रहे हैं,  एक अक्टूबर 1945 को उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के एक दलित परिवार में हुआ. सुप्रीम कोर्ट के वकील से लेकर राज्यपाल और फिर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने का उनका सफर बड़ा ही रोचक और प्रेरणादायक रहा है. उत्तर प्रदेश से पहली बार राष्ट्रपति बनने का श्रेय भी रामनाथ कोविंद को ही जाता है. इतने बड़े ओहदों पर पहुंचने के बाद भी उनकी सादगी ऐसी रही कि जिसने भी देखा और सुना कायल हो गया. आइये उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मी इस शख्सियत के जन्मदिन पर उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्से और बातें आपको बताते हैं.   


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पढ़ाई में बड़े जुझारु थे कोविंद
सिविल सेवा में चयन के बाद भी नौकरी ठुकरा देना और सुप्रीम कोर्ट में कभी नामी वकील रहे पूर्व राष्ट्रपति को बचपन से ही पढ़ाई से बड़ा लगाव था. घर की माली हालत ठीक नहीं थी, कहने सुनने के लिए मां छोटी उम्र में ही चल बसी थी, लेकिन कोविंद को बचपन से ही पढ़ाई से बड़ा लगाव था. उनके बचपन के एक मित्र के अनुसार उन दिनों उनके क्षेत्र में जमकर बारिश हुआ करती थी, गांव-इलाके में कमर तक पानी भर जाता था. लेकिन रामनाथ कोविंद इतने जुझारु थे कि वो हर हालात में तमाम परेशानियों का सामना करते हुए स्कूल जाते थे, उन्होंने पढ़ाई से कभी मुंह नहीं फेरा. 
 
बेहद ईमानदार और सरल
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद बचपन से ही बेहद सरल और ईमानदार स्वभाव के थे. उनका स्कूल घर से करीब चार किलोमीटर दूर था. एक बार जब वो दोस्तों के साथ स्कूल जा रहे थे तो रास्ते में उनके एक दोस्त ने एक खेत से गन्ना तोड़ लिया. खेत मालिक ने देखा तो उसने दौड़ाकर लड़के को पकड़ लिया. यह देख पूर्व राष्ट्रपति ने अपने दोस्त की तरफ से माफी मांगी, इतना ही नहीं उन्होंने गन्ने के बदले पैसे देने का आग्रह भी किया, जिसके बाद किसान ने उनके दोस्त को छोड़ दिया.


पिता की परचून की दुकान चलाई
बचपन में पूर्व राष्ट्रपति कोविंद स्कूल से आकर खाली समय में अपने पिता की परचून की दुकान भी चलाते थे. उन दिनों उनके परिवार के पास खेती नहीं थी, उनके पिता ग्रामीणों को आयुर्वेदिक दवाइयां भी देते थे. कुछ बरस पहले तक पूर्व राष्ट्रपति के भाई प्यारेलाल के पास भी परचून की एक दुकान थी. 


सिविल सेवा ठुकरा कर वकील बने
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का चयन UPSC की परीक्षा पास कर संबद्ध सेवाओं में हो गया था, लेकिन उन्होंने यह नौकरी ठुकरा कर 1977 से 1993 तक दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 16 साल प्रेक्टिस की.  वे 1980 से 1993 तक सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के परमानेंट काउंसलर भी रहे. 


पहला चुनाव प्रचार स्कूटर से किया
रामनाथ कोविंद ने 1990 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार घाटमपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. चुनाव प्रचार के लिए बड़ी गाड़ी का इंतजाम नहीं होने पर उन्होंने स्कूटर से ही गांव-गांव घूमकर चुनाव प्रचार किया था. हालांकि ये चुनाव वो हार गए थे. 


परिवार के लोग पुकारते हैं 'लल्ला'
रामनाथ कोविंद पांच भाइयों में सबसे छोटे हैं इसलिए परिवार के सभी बड़े उन्हें 'लल्ला' कहकर पुकारते हैं. रामनाथ कोविंद के माता-पिता के निधन के बाद उन्हें भाभी विद्यावती ने पाला. रामनाथ कोविंद को अपनी भाभी विद्यावती के हाथ के कढ़ी-चावल बहुत पसंद हैं.


मोरारजी देसाई के एक्जीक्यूटिव एसिस्टेंट
बी.कॉम और एलएलबी की पढ़ाई के बाद मोरारजी देसाई ने 1971 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया में अपना रजिस्ट्रेशन कराया था. वह काफी समय तक मोरारजी देसाई के साथ भी जुड़े. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री बनते ही रामनाथ कोविंद को अपना एक्जीक्यूटिव एसिस्टेंट भी बनाया था.   


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