Gandhi Jayanti: भारत की आजादी में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी के सम्मान में यूं तो देश-दुनिया में कितनी मूर्तियां, स्मृति चिन्ह और संग्राहलय और यहां तक कि विश्वविद्यालय भी हैं. लेकिन दिल्ली स्थित उनके समाधि स्थल राजघाट का सम्मान शायद सबसे ऊपर है. राष्ट्रीय दिवस और कई बड़े अवसरों पर प्रधानमंत्री और गणमान्य व्यक्ति यहां आकर श्रद्धाजंलि देते हैं तो विदेशी मेहमान भी राजधानी की यात्रा के दौरान यहां आना नहीं भूलते. लेकिन शायद आपको पता नहीं होगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश के बरेली में भी है. 


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राजघाट से चिता की राख लाकर बना स्मारक
इस गांधी स्मारक को महात्मा गांधी की चिता की भस्म को राजघाट से बरेली लाकर बनवाया गया था. आर्य समाज के कार्यकर्ता भूप नारायण आर्य ने इसे महात्मा गांधी की स्मृति में बनवाया था.


मुट्ठी भर भस्म ने लिया स्मारक का रूप
भूप नारायण आर्य गांधी जी के विचारों से गहराई से प्रभावित थे और वे राजघाट में गांधी जी के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे. अंतिम संस्कार के बाद भूप नारायण गांधी जी चिता की मुट्ठी भर भस्म अपने साथ बरेली ले आए थे. वो इससे गांधी जी का एक स्मारक बनवाना चाहते थे और इसमें उनका सहयोग किया उनके साथी मैकूलाल ने, जिन्होंने गांधी जी के स्मारक के लिए अपनी जमीन दान करने का प्रस्ताव रखा. फिर क्या था जहां आज स्मारक है सबसे पहले वहां 2 अक्टूबर 1948 को महात्मा गांधी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित की गई, जिसे बाद में संगमरमर की मूर्ति से प्रतिस्थापित कर दिया गया और इसे गांधी स्मारक का नाम दिया गया. 


गांधी स्मारक पर विशेष हवन
गांधी स्मारक स्थल पर हर साल 2 अक्टूबर और 31 जनवरी को आर्य समाज के लोग विशेष हवन करते हैं. भूप नारायण आर्य ने अपनी पूरी ज़िंदगी गांधी जी के विचारों को आगे बढ़ाने में बिताई, और उनके बाद उनके परिवार ने इस परंपरा को जारी रखा. मौजूदा समय में उनके पौत्र जितेंद्र कुमार यहां हर रविवार को हवन करते हैं. 


उपेक्षा का शिकार हो रहा बरेली गांधी स्मारक
बरेली में बिहारीपुर के सगरान में स्थित यह स्मारक महात्मा गांधी की विरासत को संजोए हुए है, भूप नारायण ने इस स्मारक की देख रेख के लिए एक समिति का गठन किया था लेकिन शायद अब ये समिति नाम की रह गई है. आर्थिक तौर पर समिति स्मारक की देखभाल नहीं कर पा रही है जिसकी वजह से यह स्थल उपेक्षा का शिकार हो रहा है. 


बरेली में गांधी जी का यह स्मारक अब जर्जर हो चुका है. लिंटर टूट चुका है और फर्श भी क्षतिग्रस्त हो गया है. समिति ने नगर निगम से कई बार अनुरोध किया है, लेकिन केवल 15 अगस्त, 26 जनवरी और 2 अक्टूबर को थोड़ी सफाई कर दी जाती है, जो गांधी जी के इस स्मारक को बचाए रखने के लिए नाकाफी है. ऐसे में बस यही उम्मीद है कि स्थानीय प्रशासन इसके महत्व को समझे और इसके जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाए. 


Disclaimer: लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है. 


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