80 के दौर में कांग्रेस की बोली तूती, संजय बनने वाले थे यूपी के सीएम, लेकिन मां इंदिरा गांधी बनी दीवार, जानें दिलचस्प किस्सा
Sanjay Gandhi Birthday Special: 80 के दौर में जब कांग्रेस को मध्यावधि लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता मिली, और यूपी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को दो-तिहाई बहुमत मिला तो संजय गांधी को विधायक तल का नेता चुन मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी हो रही थी, लेकिन संजय की इस ताजपोशी में कोई और नहीं बल्कि उनकी मां और मौजूदा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही आड़े आ गईं.
Sanjay Gandhi Birthday: संजय गांधी.....कांग्रेस के नेहरू गांधी परिवार का वो नेता जिसकी लोकप्रियता अपनी मां इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनसे कम नहीं थी. संजय गांधी इंदिरा गांधी के छोटे बेटे थे, जो राजनीति के जानकारों के मुताबिक इंदिरा गांधी की सरकार में एक समय इतने ताकतवर हो गए थे कि किसी संवैधानिक पद पर रहे बगैर हर सरकारी विभाग में उनकी तूती बोलती थी. 14 जनवरी को संजय गांधी के जन्मदिवस के अवसर उनसे जुड़ा एक ऐसा किस्सा सुनाते हैं जब संजय गांधी का उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था. उनको विधायक दल का नेता चुनने की सारी तैयारी हो गई थी, लेकिन फिर उनके आड़े कोई और नहीं बल्कि उनकी मां इंदिरा गांधी ही आ गईं थी, और वो देश के ऐसे राज्य के सीएम बनते-बनते रह गए जो हमेशा केंद्र की सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाता आया है.
कांग्रेस विधायक दल का नेता होना था तय
1980 का दौर था. लखनऊ की अशोका रोड पर कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की गाड़ियां कतार में खड़ी थीं. सड़क के दूसरी ओर स्थित लाल बहादुर शास्त्री भवन यूपी के मुख्यमंत्री का दफ्तर हुआ करता था. इसके पास कुछ सरकारी बंगले और पेड़ों के झुरमुट के बीच एक सफेद इमारत खड़ी थी. यह कांग्रेस का यूपी दफ्तर था, जहां से आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की सरकार की दिशा तय होने वाली थी.
इस दिन यूपी कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी थी. सभी की नजरें एक खास नाम पर थीं—34 साल के एक फायरब्रांड नेता, संजय गांधी. उनकी चर्चा मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में थी. सब कुछ लगभग तय माना जा रहा था. यहां तक कि विधायकों को दिल्ली ले जाने के लिए चार्टर्ड विमानों का इंतजाम भी हो चुका था. लेकिन आखिरी वक्त पर घटनाक्रम ऐसा बदला कि संजय गांधी मुख्यमंत्री की रेस से बाहर हो गए.
यूपी में कांग्रेस को मिला था बड़ा बहुमत
1980 के मध्यावधि लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को बड़ी सफलता मिली. इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली. यूपी में भी पार्टी ने दो-तिहाई बहुमत पाया. सीएम पद के लिए कई नाम चर्चा में थे, जैसे कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी. लेकिन पार्टी के आलाकमान को नया चेहरा चाहिए था.
संजय गांधी का उभार
संजय गांधी के मित्र अकबर अहमद डंपी ने उनका नाम आगे बढ़ाया. कांग्रेस विधायकों ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया और विधानमंडल दल की बैठक में प्रस्ताव भी पास किया. सभी विधायकों को चार्टर्ड विमानों से दिल्ली बुलाया गया ताकि फैसला पक्का हो सके.
दिल्ली में बढ़ी हलचल
सफदरजंग रोड पर स्थित इंदिरा गांधी के आवास पर गतिविधियां तेज थीं. संजय गांधी को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा पूरे जोर पर थी. यह तय माना जा रहा था कि अगर संजय यूपी के मुख्यमंत्री बनते हैं, तो उनका राष्ट्रीय राजनीति में कद और मजबूत हो जाएगा.
इंदिरा गांधी ने चला दांव
संजय इंदिरा गांधी के लिए बड़ी सपोर्ट थे लेकिन इंदिरा उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर उनकी भूमिका को सीमित नहीं करना चाहती थीं. वह चाहती थीं कि संजय एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरें. इसी वजह से, आखिरी समय में इंदिरा गांधी ने यह फैसला नामंजूर कर दिया और मुख्यमंत्री के तौर पर वीपी सिंह को शपथ दिलाई गई.
इस घटनाक्रम ने भारतीय राजनीति के एक दिलचस्प मोड़ को जन्म दिया, जहां संजय गांधी का बढ़ता कद एक नया आयाम लेने से पहले ही थम गया और इसकी जिम्मेदार कोई और नहीं बल्किन उनकी मां इंदिरा गांधी ही थी.
Disclaimer: लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. जी यूपीयूके इसकी प्रामाणिकता का दावा या पुष्टि नहीं करता.