28 मई को यूपी के कैराना में बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के कारण लोकसभा उपचुनाव हो रहे हैं. बीजेपी और विपक्षी गठबंधन के बीच इस सीट पर सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है. इसको 2019 के आम चुनावों से पहले विपक्षी एकजुटता की परीक्षा और बीजेपी के प्रतिष्‍ठा से जोड़कर देखा जा रहा है. इस चुनावी शोर के साथ हालिया दौर में कैराना कई वजहों से सियासत के केंद्र में रहा है. कुछ समय पहले हिंदुओं के पलायन का मुद्दा राष्‍ट्रीय सुर्खियों का सबब बना. कुल मिलाकर हालिया वर्षों में कैराना सियासत कें केंद्र में जरूर रहा लेकिन इसकी पहचान पीढि़यों से सियासत के कारण नहीं बल्कि शास्‍त्रीय संगीत के मशहूर किराना घराना के कारण रही है.


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कैराना: अखिलेश यादव और मायावती प्रचार करने क्‍यों नहीं गए?


किराना घराना
कैराना से ही किराना घराना शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई है. कहा जाता है कि मुगल शहंशाह जहांगीर के दौर में आई भीषण बाढ़ के कारण उनके दरबार के कई मशहूर संगीतकारों, गायकों के घर नष्‍ट हो गए. नतीजतन शहंशाह ने कैराना कस्‍बे में उन सबको बसाया. यह घराना भारतीय शास्‍त्रीय संगीत और हिंदुस्‍तानी ख्‍याल गायकी परंपरा से जुड़ा है. यह उस्‍ताद अब्‍दुल करीम खां (1872-1937) की जन्‍म स्‍थली भी है. इन्‍हें ही इस घराना का वास्‍तविक संस्‍थापक माना जाता है और इस परंपरा के सबसे महत्‍वपूर्ण संगीतज्ञ माने जाते हैं. अपने भतीजे अब्‍दुल वाहिद खान के साथ उन्‍होंने किराना घराना गायकी को प्रसिद्धि दिलाई. उस्‍ताद अब्‍दुल वाहिद खान ने ख्‍याल गायकी में अति-विलंबित लय का परिचय दुनिया को कराया.


सवाई गंधर्व और भीमसेन जोशी. (बाएं से)

लोकसभा उपचुनाव : कितनों की किस्मत का फैसला करेगा कैराना


हिंदुस्‍तान के सभी घरानों में इस वक्‍त सबसे ज्‍यादा लोकप्रिय किराना घराना ही है और इस दौर में सबसे ज्‍यादा शास्‍त्रीय गायक इसी परंपरा से जुड़े हैं. सवाई गंधर्व, गंगूबाई हंगल, भीमसेन जोशी, उस्‍ताद अमजद अली खान जैसे भारतीय शास्‍त्रीय संगीत परंपरा से जुड़े अहम हस्‍ताक्षर इसी किराना घराना से जुड़े हैं.


उस्ताद अमजद अली खान (मध्य में) (फोटो साभार-amjadalikhan.in)

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए क्यों अहम है कैराना उपचुनाव?


कैराना
1. कैराना लोकसभा सीट में शामली जिले की 3 और सहारनपुर जिले की 2 विधानसभाएं शामिल हैं.


2. यहां 16 लाख वोटरों में सर्वाधिक 5 लाख मुस्लिम वोटर हैं. उसके बाद दलित वोटरों की संख्‍या दो लाख से अधिक है. इसके साथ ही प्रभावशाली जाट और गुर्जर जाति के बराबर यानी सवा लाख वोटर हैं. अन्‍य पिछड़ी जातियों के करीब तीन लाख वोटर हैं.


3. कैराना कस्‍बा शामली जिले में पड़ता है. 2011 में मायावती ने शामली को जिला घोषित करते हुए इसका नाम प्रबुद्ध नगर घोषित किया था. उसके बाद अखिलेश यादव ने 2012 में इसका नाम फिर से शामली कर दिया. उससे पहले कैराना, मुजफ्फरनगर की तहसील हुआ करता था.